पी.डी.पी. को एक और झटका संस्थापक सदस्य व पूर्व मंत्री ने पार्टी छोड़ी

Friday, Jul 19, 2019 - 12:01 AM (IST)

महबूबा मुफ्ती ने 1999 में अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ मिल कर पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) बनाई जिसकी वह अब अध्यक्ष हैं। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने अपने जीवन में पार्टी पर मजबूती से नियंत्रण बनाए रखा परंतु उनके देहांत के बाद वह स्थिति न रही तथा पार्टी और सरकार पर से महबूबा का नियंत्रण ढीला होता चला गया। 

19 जून, 2018 को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद से महबूबा के त्यागपत्र देते ही उनकी कार्यशैली को लेकर पार्टी में असहमति की आवाजें उठने लगीं और पार्टी की बदहाली के लिए महबूबा की नीतियों और परिवार पोषण को जिम्मेदार ठहराते हुए कुछ ही समय के अंतराल में पार्टी के अनेक वरिष्ठï नेताओं ने विद्रोह करके पार्टी को अलविदा कह दिया। 

महबूबा की सरकार गिरने के बाद से अब तक अनेक पूर्व मंत्री, विधायक और वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ चुके हैं जिनमें पार्टी का ‘ङ्क्षथक टैंक’ माने जाने वाले पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू, अलताफ बुखारी, इमरान अंसारी और आबिद अंसारी के बाद इसके संस्थापक सदस्य, 3 बार केविधायक और 2 बार के कैबिनेट मंत्री रहे मोहम्मद खलील बंध का नाम भी जुड़ गया है। पी.डी.पी. को अलविदा कहने वाले श्री खलील पांचवें मंत्री हैं। पुलवामा क्षेत्र में पार्टी को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाने वाले श्री खलील ने महबूबा को अपने पत्र में लिखा :

‘‘जब पार्टी के मूल और संस्थापक सिद्धांतों से समझौता किया जा रहा हो तो ऐसे में पार्टी में बने रहना सही नहीं होगा। पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद से पार्टी खत्म होने की ओर बढ़ गई है। पुराने, निर्वाचित और अनुभवी लोगों को नजरअंदाज किया गया।’’ श्री खलील ने आरोप लगाया है कि विधायक और मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें कई बार अपमानित किया गया तथा पार्टी छोडऩे का निर्णय उनके लिए आसान नहीं था। 

उन्होंने पत्र में आगे लिखा, ‘‘निहित स्वार्थी तत्वों के कहने पर अनेक विनाशकारी निर्णय लिए गए। अपने वर्करों के हित, उनके भविष्य और उनके सपनों की खातिर उनसे विचार-विमर्श करके मैंने यह फैसला किया है कि पी.डी.पी. को अलविदा कहना ही नैतिक रूप से उचित है।’’ 28 जुलाई को 20वें स्थापना दिवस के कुछ दिन पूर्व खलील का पार्टी छोडऩा पी.डी.पी. को बहुत बड़ा झटका है और उनके त्यागपत्र से एक बार फिर यह स्पष्टï हो गया है कि महबूबा की परिवार पोषण वाली नीतियों तथा अन्य कारणों से पार्टी फूट की ओर बढ़ रही है और इसे बचाना अब महबूबा के लिए आसान नहीं होगा।—विजय कुमार  

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