...आखिर आनंदीबेन ने दिया मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा

Tuesday, Aug 02, 2016 - 11:48 PM (IST)

नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री काल के दौरान गुजरात सरकार में अनेक  मंत्रालय संभाल चुकी आनंदीबेन पटेल 22 मई, 2014 को गुजरात के पंद्रहवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करके राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। इनके गांव ‘खरोड़’ के लोग इन्हें आदरपूर्वक ‘फोई’ (बुआ) कह कर पुकारते हैं। इनका विवाह 1962 में ‘प्रिंसीपल मफ्त लाल पटेल’ से हुआ जिनसे इनके 2 बच्चे हैं परन्तु ये दोनों अब एक-दूसरे से अलग रह रहे हैं।

इनसे लोगों को बड़ी उम्मीदें थीं परन्तु येे उन पर खरी नहीं उतर पाईं। इनके संबंध में सकारात्मक कम और नकारात्मक समाचार ही अधिक सुनाई दिए। सबसे पहले इनकी बेटी ‘अनार’ पर अपने बिजनैस पार्टनर की कम्पनी को करोड़ों रुपए की जमीन कौडिय़ों के भाव दिलवाने का आरोप लगा।

इनके कार्यकाल में हार्दिक पटेल एक बड़ा भाजपा विरोधी चेहरा बन कर उभरा। अगस्त, 2015 में हाॢदक के नेतृत्व में चले ‘पाटीदार आंदोलन’ के बाद आनंदी की लोकप्रियता लगातार घटती ही चली गई है। आनंदी ने एक बड़ी भूल यह की कि उन्होंने हार्दिक के विरुद्ध तो राजद्रोह का मुकद्दमा ठोंक दिया परन्तु अहमदाबाद में आंदोलनकारी पटेलों पर लाठियां बरसाने वाले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की। हार्दिक के आंदोलन के चलते गुजरात की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाला भाजपा का बड़ा ‘पटेल वोट बैंक’ भाजपा के हाथों से खिसकने लगा है।

इस दौरान 18 वर्षों के ठहराव के बाद कांग्रेस में उभार के संकेत मिलने लगे हैं। पंचायत एवं नगर निगम चुनावों में कांग्रेस ने अपनी स्थिति सुदृढ़ बना ली है। भाजपा 31 में से 23 जिला पंचायतों में हार गई। शहरी क्षेत्रों में भाजपा की वोट भागीदारी 50 प्रतिशत से लुढ़क कर 43 प्रतिशत रह गई है और ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस के वोट 44 प्रतिशत से बढ़ कर 47 प्रतिशत हो गए है।

इतना ही नहीं, इसी 11 जुलाई को गुजरात के उना में तथाकथित गौ रक्षक दलों द्वारा दलितों पर निर्मम अत्याचारों की गूंज सड़क से संसद तक सुनाई दी तथा गुजरात के दलितों ने अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के साथ मिल कर भाजपा के विरुद्ध मोर्चाबंदी की कवायद शुरू कर दी है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी की भरपाई कर पाने में आनंदीबेन पटेल पूरी  नहीं उतरीं और इसके साथ ही प्रदेश भाजपा में भी उनके विरुद्ध असंतोष बढऩे लगा जिससे निपटने में भी वह असफल रहीं।

इस सारे घटनाक्रम के बीच इस वर्ष 7 फरवरी को जब आनंदीबेन ने  दिल्ली में भाजपाध्यक्ष अमित शाह से भेंट की तो उन्हें पद से हटाए जाने की चर्चा को बल मिला जिसे आनंदीबेन ने मात्र अटकलबाजी कह कर खारिज कर दिया था परन्तु प्रधानमंत्री के नजदीकी सांसद ओम प्रकाश माथुर की गुजरात बारे रिपोर्ट आते ही आनंदी को हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी।

हालांकि माथुर की रिपोर्ट के बाद गुजरात में आॢथक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा भी कर दी गई लेकिन आनंदीबेन के विरुद्ध पटेलों व अन्य अल्पसंख्यकों का आक्रोश ज्यों का त्यों बना रहा। इस घटनाक्रम को आने वाले बुरे दिनों का संकेत मानते हुए पार्टी नेतृत्व में भी यह सुगबुगाहट शुरू हो गई कि यदि आनंदीबेन के स्थान पर राज्य इकाई में बदलाव करके सत्ता संभालने में सक्षम किसी व्यक्ति को राज्य का मुख्यमंत्री न बनाया गया तो भविष्य में पार्टी के लिए मुश्किल हो सकती है।

 इस कारण उन्हें उनके पद से हटा देने में ही पार्टी नेतृत्व ने भलाई समझी और अंतत: बैकफुट पर आई आनंदीबेन ने 1 अगस्त को अचानक फेसबुक पर अपने त्यागपत्र की घोषणा करके सब अटकलों पर विराम लगा दिया। हालांकि आनंदीबेन ने पार्टी द्वारा अपने नेताओं के लिए सक्रिय राजनीति में रहने की आयु सीमा 75 वर्ष तय किए जाने को अपने त्यागपत्र का आधार बताया है परन्तु राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार अगले वर्ष होने वाले चुनावों को देखते हुए पार्टी आलाकमान के कहने पर उन्होंने यह निर्णय लिया है।

और अब जबकि आनंदीबेन त्यागपत्र दे चुकी हैं, अगले मुख्यमंत्री के लिए दौड़ तेज हो गई है जिसमें नितिन पटेल का नाम सबसे आगे बताया जाता है ताकि पटेल वोटों पर भाजपा का कब्जा बना रहे। यदि गुजरात में आनंदीबेन अपने पद पर बनी रहतीं तो चुनावी राज्यों पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, गोवा, हिमाचल के अलावा गुजरात में इसे विशेष रूप से हानि हो सकती थी जहां जन-आकांक्षाओं पर खरी न उतर पाने के कारण भाजपा पहले ही बैकफुट पर है।       —विजय कुमार
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