पाकिस्तान के परमाणु भंडार भी अब पूरी तरह सेना के नियंत्रण में आए
punjabkesari.in Monday, Dec 15, 2025 - 04:30 AM (IST)
2 दिन पहले ही 11 दिसम्बर को अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान को एक बहुत बड़ा पैकेज देते हुए 686 मिलियन डालर के एक सौदे में एफ-16 लड़ाकू विमानों के लिए उन्नत तकनीक बेचने की स्वीकृति दी और इसके अगले ही दिन एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में तुर्कमेनिस्तान में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान तथा रूस के राष्ट्रपति पुतिन के बीच चल रही बैठक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ जबरन घुस गए। इसी स्थान पर शहबाज शरीफ तथा पुतिन की मीटिंग होनी थी परंतु शहबाज शरीफ को 40 मिनट तक इंतजार करवाने के बावजूद पुतिन उनसे मिलने नहीं पहुंचे। इसी कारण शहबाज शरीफ जबरन एर्दोगान तथा पुतिन के बीच हो रही बैठक में घुस आए परंतु उन्होंने 10 मिनट बाद ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।
उक्त घटनाएं दर्शाती हैं कि आजकल ट्रम्प की मेहरबानी तथा पाकिस्तान को खुश करने और भारत के मुकाबले पर खड़ा करने के लिए ‘आई लव पाकिस्तान’ जैसे जुमले कह देने के कारण पाकिस्तान के नेता एक नई उड़ान भर रहे हैं। ट्रम्प ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर और उसके बाद शहबाज शरीफ को अपने साथ बिठा कर डिनर करवाया और भारत पर कटाक्ष करने के लिए पाकिस्तान पर नेमतों की बौछार कर रहे हैं। इसी दौरान अब एक और बड़ा बदलाव आया है, विशेषकर ‘आप्रेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान ने अपने परमाणु भंडार का ‘कंट्रोल’ बदलने का फैसला किया है, जिसके लिए पाकिस्तान के शासकों ने संविधान में संशोधन कर दिया है। वैसे तो हमेशा से सेना पाकिस्तानी सरकार पर भारी रही है। चुनाव जितवाना या हराना भी सेना की मर्जी पर निर्भर रहता है, परन्तु इस बार खुले आम सेना अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रही है।
सेना की ही सहायता से जीते 2024 के चुनावों में जीत का एहसान चुकाने के लिए पाकिस्तान के शासक 27वें संविधान संशोधन के जरिए सेना के आधुनिकीकरण के नाम पर सेना की सर्वोच्चता को स्वीकार करते हुए उसी की डगर पर चलने को खुशी-खुशी राजी हो गए हैं और अब पाकिस्तान की सेना में सेना की चार सितारा वाले पदों पर नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश भले ही प्रधानमंत्री द्वारा की जाएगी, परंतु वास्तव में नियुक्त उसे ही किया जाएगा जिसे सेना चाहेगी। इस नई व्यवस्था के परिणाम अत्यंत गंभीर हो सकते हैं। इससे वह संतुलन भी समाप्त हो जाएगा जो एक शांत लेकिन दक्षिण एशिया के नाजुक सुरक्षा पर्यावरण की स्थिरता का महत्वपूर्ण स्रोत है। वर्ष 2000 में पाकिस्तान ने अपने परमाणु भंडार के नियंत्रण के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली अपनी ‘राष्ट्रीय कमांड अथारिटी’ कायम की। इसके सदस्यों में प्रमुख कैबिनेट मंत्रियों के अलावा तीनों सेनाओं के प्रमुखों को सदस्यों के रूप में शामिल किया गया था ताकि किसी एक सेवा का इसके परमाणु स्रोत पर नियंत्रण न हो पाए और सुरक्षा पर कोई आंच न आए।
इस व्यवस्था के तहत सेना को एकतरफा तौर पर परमाणु नीति नियंत्रित करने से रोक दिया गया था, परंतु 27वें संशोधन ने यह संतुलन भंग कर दिया है। ज्वायंट चीफ आफ स्टाफ कमेटी (सी.जे.सी.एस.सी.) को समाप्त करके और सारी शक्तियां प्रतिरक्षा सेनाओं के मुखिया में निहित करके इस संशोधन द्वारा परमाणु सुरक्षा संतुलन को समाप्त कर दिया गया है, जो एक खतरनाक बात है। भारतीय वायुसेना द्वारा कार्रवाई जैसी स्थितियों में जल्दी कार्रवाई करने की बेचैनी से न्यूकलीय संयम का अनुशासन क्षीण हो सकता है जिसकी इस तरह की स्थितियों में सर्वाधिक जरूरत होती है। परन्तु जैसा कि पाकिस्तान की स्थापना के कुछ समय बाद से ही होता आया है, वहां लोकतंत्र कभी भी मजबूत नहीं हो पाया और न ही ऐसा दिखाई देता है कि भविष्य में कभी हो पाएगा।
