पाकिस्तान टूटने के कगार पर महंगाई, शियाओं पर अत्याचार, एल.ओ.सी. पर विद्रोह

Tuesday, Sep 12, 2023 - 04:10 AM (IST)

अपने अस्तित्व में आने के समय से ही पाकिस्तान भारी राजनीतिक उथल-पुथल का शिकार चला आ रहा है और वहां अल्पसंख्यक ङ्क्षहदुओं, ईसाईयों, अहमदियों और शिया मुसलमानों पर भारी अत्याचार जारी हैं। पिछले कुछ समय से अल्पसंख्यक शिया मुसलमानों पर हमले तेज हो गए हैं। हाल ही में शिया धर्म गुरु आगा-बाकर-अल-हुसैनी की गिरफ्तारी को लेकर गिलगित-बाल्तिस्तान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन जारी हैं। 

प्रदर्शनकारी उनकी रिहाई व कराकोरम हाईवे खोलने की मांग कर रहे हैं। हालात गृह युद्ध वाले हैं और कट्टरपंथी सुन्नी संगठनों व पाकिस्तानी सेना के दमन के विरुद्ध 8 लाख अल्पसंख्यक शियाओं ने विद्रोह कर दिया है। सड़कों पर उतरे शिया समुदाय का कहना है कि वे अब पाकिस्तानी सेना द्वारा शासित गिलगित-बाल्तिस्तान में नहीं रहना चाहते। वे ‘चलो-चलो कारगिल चलो’, ‘ये जो दहशतगर्दी है, उसकी वजह वर्दी है’ तथा ‘कारगिल हाईवे खोलो, हमें भारत जाना है’ नारे लगा रहे हैं। प्रेक्षकों के अनुसार वहां जिस तरह लोग उग्र हुए हैं उसे देखते हुए किसी भी समय स्थिति के गंभीर रूप धारण कर लेने की संभावना है। वास्तव में समूचे पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) में लोग क्रांति की ओर बढ़ रहे हैं। उनमें मुफ्त बिजली न देने, आटे की कमी, महंगाई और भारी टैक्सों जैसे मुद्दों को लेकर पाकिस्तान सरकार के विरुद्ध भारी नाराजगी है। 

इन मुद्दों को लेकर 4 सितम्बर को मुजफ्फराबाद में तथा 6 सितम्बर को मीरपुर डिवीजन में लोगों ने भारी प्रदर्शन किया। लोगों का कहना है कि,‘‘भारत सरकार कश्मीर घाटी के लोगों को जिस तरह की सुविधाएं दे रही है, वैसी ही हमें भी मिलनी चाहिएं। पाकिस्तान सरकार यदि हमें बुनियादी सुविधाएं नहीं दे सकती तो हमें भारत में मिल जाने दे।’’ लोगों का यहां तक कहना है कि‘‘यदि पाकिस्तान सरकार ने मुफ्त बिजली न दी तो वे पाकिस्तान को जाने वाली बिजली की लाइन ही उखाड़ फैंकेंगे।’’ राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार पाक अधिकृत कश्मीर के लोग अपनी मुक्ति के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगा रहे हैं। नियंत्रण रेखा के निकट रहने वाले लोगों ने नारे लगाए हैं, ‘‘मोदी से कहो कि हमें पाकिस्तान के अवैध कब्जे से आजादी दिलाएं। हम भूख से मर रहे हैं।’’ पाकिस्तान के शासकों की दमनकारी नीतियों के परिणामस्वरूप ही 1971 में तीसरे भारत-पाक युद्ध के नतीजे में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान इसके हाथ से निकल गया और स्वतंत्र ‘बंगलादेश’ अस्तित्व में आया। 

अपने देश का आधा हिस्सा गंवाने के बावजूद पाकिस्तान के शासकों ने कोई सबक नहीं सीखा, जिसके परिणामस्वरूप आधे बचे पाकिस्तान में भी आजादी के लिए विभिन्न आंदोलन चल रहे हैं। एक ओर बलूचिस्तान में आजादी के लिए संग्राम जारी है, तो दूसरी तरफ गिलगित-बाल्तिस्तान में भी लम्बे समय से आजादी की मांग चल रही है। वहां सक्रिय चरमपंथी शक्तियों ने तो अपने ‘स्वतंत्र देश’ का नाम भी  ‘बलवारिस्तान’ अर्थात ‘ऊंचाइयों का देश’ तय कर रखा है। ऐसे में पाकिस्तानी शासकों को अपने निकटतम पड़ोसी भारत से रिश्ते सुधारने की जरूरत है, परंतु अब भी उन पर कश्मीर का भूत ही सवार है। इसका ताजा प्रमाण  पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री काकड़ का बयान है कि ‘‘कश्मीर मुद्दा सुलझाए बिना भारत के साथ व्यापार संभव नहीं है।’’ 

दिल्ली में सम्पन्न जी-20 देशों के सम्मेलन से सिद्ध हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान किस कदर अलग-थलग पड़ चुका है। यहां तक कि मुस्लिम देश भी इससे दूर होते जा रहे हैं। पाकिस्तान के मुख्य आर्थिक मददगार सऊदी अरब के क्राऊन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के जी 20 सम्मेलन में भाग लेने भारत आने और पाकिस्तान आने की अपील ठुकरा देने से जहां पाकिस्तानी शासकों की किरकिरी हुई है वहीं पाकिस्तान की जनता में इसको लेकर हाहाकार मचा हुआ है तथा वे देश की इस हालत के लिए अपने शासकों को कोस रहे हैं। जहां तक पाकिस्तानी शासकों के कश्मीर राग का सम्बन्ध है कश्मीर तो पाकिस्तान का है ही नहीं और हमारे कश्मीर के जिस हिस्से पर उन्होंने जबरन कब्जा कर रखा है, वहां के लोग भी भारत में मिलने के लिए आंदोलन की राह पर चल पड़े हैंं। अत: पाकिस्तान के शासकों को भारत में ङ्क्षहसा भड़काने की बजाय अपना घर संभालने पर ध्यान देना चाहिए।—विजय कुमार 

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