कश्मीर में आतंकवादियों के गढ़ में पहली बार लगे ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे

Thursday, Feb 15, 2018 - 01:50 AM (IST)

केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक सहायता देती रही है और संकट की घड़ी में भारतीय सेना जान हथेली पर रख कर यहां के लोगों की सहायता कर रही है। इसके बावजूद वहां भारतीय सेना और पुलिस कर्मियों के विरुद्ध माहौल बना ही रहता है और उन्हें अनेक दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। 

यहां हर दूसरे दिन होने वाले बंद और प्रदर्शनों के कारण प्रदेश के पर्यटन और व्यवसाय को काफी नुक्सान होता रहा है। बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है और चाहे वे पुलिस में हों या सेना में, कश्मीरी बच्चे मारे जा रहे हैं जबकि अलगाववादी अपने बच्चे और परिवार प्रदेश से बाहर सुरक्षित स्थानों में रखते, शादी-विवाह रचाते, पढ़ाई और इलाज आदि करवाते हैं। एक ओर जम्मू-कश्मीर में सक्रिय अलगाववादियों द्वारा स्थानीय लोगों को रोजगार न देने की बात कही जाती है और दूसरी ओर उन्हीं के उकसावे में आतंकवादियों द्वारा अपने ही भाई-बंधुओं की हत्याएं की जा रही हैं। 

पाकिस्तान की स्थापना के समय से ही इसके पाले हुए आतंकवादियों तथा अलगाववादियों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद भड़काने, बगावत के लिए लोगों को उकसाने, पत्थरबाजी और हिंसा करवाने का सिलसिला अब तेज कर रखा है। आखिर अढ़ाई दशक के बाद अब घाटी के लोगों में असंतोष भड़कना शुरू हो गया है। इसका प्रमाण गत दिवस सुंजवां सैन्य स्टेशन में आतंकवादी हमले में मारे गए सुरक्षा बलों के सदस्यों के अंतिम संस्कार में देखने को मिला। सुंजवां सैन्य कैम्प पर हमले में मारे गए 6 सैनिकों व 1 सिविलियन में से 4 कश्मीर घाटी से सम्बन्ध रखते थे। शहीदों में जे.सी.ओ. मोहम्मद अशरफ मीर, हवलदार हबीबुल्ला कुरैशी, मो. इकबाल शेख और नायक मंजूर अहमद देवा शामिल थे। 

आतंकवादियों के गढ़ त्राल में मो. इकबाल शेख और उसके पिता के जनाजे में हजारों लोगों ने भाग लिया। इस दौरान लोगों ने सीमावर्ती कुपवाड़ा में ‘शहीद जे.सी.ओ. मोहम्मद अशरफ जिंदाबाद’ और ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाए। जम्मू-कश्मीर के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब गांव वालों और सेना के सदस्यों ने उन्हें एक साथ श्रद्धांजलि दी जो पाक प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध लोगों की बदलती हुई विचारधारा की द्योतक है। इसी की पुष्टि करते हुए ए.आई.एम.आई.एम. के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी कहा है कि ‘‘सुंजवां कैंप पर हुए आतंकवादी हमले में 7 में से 5 लोग कश्मीरी मुसलमान थे जो मारे गए हैं। जो मुसलमानों को आज भी पाकिस्तानी समझते हैं उन्हें इससे सबक लेना चाहिए।’’ 

जहां प्रकारांतर से असदुद्दीन ओवैसी ने स्वीकार किया है कि जम्मू-कश्मीर की हिंसा में स्थानीय मुसलमान मारे जा रहे हैं वहीं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री तथा नैकां नेता फारूक अब्दुल्ला ने 12 फरवरी को साफ शब्दों में कहा है कि आतंकवाद को बढ़ावा देकर पाकिस्तान कश्मीर को हासिल नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, ‘‘भारत सरकार को भी अपने अगले कदम के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि पाकिस्तान राज्य में हिंसा नहीं छोड़ेगा। पाकिस्तान को समझना चाहिए कि इससे इसे कुछ भी हासिल नहीं होगा और इसका नतीजा केवल मौतों तथा दोनों पक्षों में विनाश के रूप में निकलेगा।’’ ‘‘उन्हें सुलह का रास्ता अपनाना चाहिए ताकि दोनों देश खुशहाल हों। यदि यहां आतंकवाद बढ़ता है तो दोनों देशों में खून बहेगा लेकिन वे (पाकिस्तान) बर्बाद हो जाएंगे और वहां कुछ भी नहीं बचेगा।’’ ‘‘यदि आतंकवादी हमलों को रोकने के प्रति पाकिस्तान वाले ईमानदार होते तो वे यहां हमले करने के लिए आतंकवादियों को नहीं भेजते।’’ 

एक ओर जहां पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी घोषित जमात-उद-दावा का सरगना हाफिज सईद अपने स्कूलों और मदरसों में पढऩे वाले बच्चों को भारत के विरुद्ध जेहाद छेडऩे के लिए हिंसा का पाठ पढ़ा रहा है और उसने पाकिस्तान के छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में बंदूकें थमा दी हैं तो दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के लोगों में आतंकवादियों के प्रति बदलाव आता दिखाई दे रहा है। सुंजवां हमले में शहीद कश्मीरी जवानों के अंतिम संस्कार में पाकिस्तान विरोधी नारे लगना और असदुद्दीन ओवैसी द्वारा मुसलमानों के मारे जाने की बात कहना इसका मुंह बोलता प्रमाण है। इसी प्रकार डा. फारूक अब्दुल्ला द्वारा पाकिस्तान को दी गई यह सलाह भी बिल्कुल सही है कि हिंसा के रास्ते पर चल कर उसे तबाही के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।—विजय कुमार 

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