एक बार फिर ‘नीतीशे कुमार’

punjabkesari.in Friday, Nov 20, 2015 - 11:30 PM (IST)

बिहार में लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी का 15 वर्ष कुशासन रहा। इस अवधि में 900 करोड़ का चारा घोटाला हुआ तथा बिहार का भारी सत्यानाश हुआ। कानून व्यवस्था की स्थिति भी निरंतर बिगड़ती चली गई। 

अनेक जातीय नरसंहार हुए तथा नक्सली हिंसा बढ़ी। माफिया तथा बाहुबलियों का वर्चस्व बढ़ा। अपहरण, हत्याएं, जबरन वसूली की घटनाएं बढ़ीं। रेलगाडिय़ों के बिहार की सीमा में प्रवेश करते ही लुटेरों के डर से यात्री डिब्बों के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर देते थे। प्रदेश पिछड़ता चला गया, गरीबी बेतहाशा बढ़ती गई और रोजगार के लिए अन्य राज्यों को बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हुआ।
 
2005 के विधानसभा चुनावों में लालू को पराजित कर जद (यू)-भाजपा गठबंधन सत्ता में आया तथा स्वच्छ छवि और सफाई पसंद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। उन्होंने सबसे पहला कदम कानून व्यवस्था में सुधार  के लिए उठाया तथा पुलिस व प्रशासन को गतिशील किया।
 
 नीतीश कुमार ने राज्य के आधारभूत ढांचे के विकास पर भी ध्यान दिया। कोशिश हुई कि गांवों में लोगों को रोजगार दिया जाए। इससे कुछ हद तक विकास कार्य हुए। पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण तथा बालिकाओं में शिक्षा प्रसार के लिए कदम उठाए। उन्हें पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मुफ्त साइकिलें देने की योजना चलाई।
 
2010 में नीतीश ने भाजपा के साथ ही दोबारा चुनाव जीत कर संयुक्त सरकार बनाई परन्तु नरेन्द्र मोदी को भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया। लेकिन कुछ उतार-चढ़ाव के साथ उनको उसका फल भी मिला। लालू यादव उनके नए साथी बने और हाल ही में हुए चुनावों में महागठबंधन को बड़ी जीत मिली और नीतीश कुमार पांचवीं बार मुख्यमंत्री बन गए। 
 
इससे पूर्व 27 जुलाई, 2015 को जब उन्होंने अपनी सरकार के कार्यकाल की उपलब्धियों का रिपोर्ट कार्ड जारी किया था, उसमें उन्होंने कहा कि ‘‘बिहार किसी की कृपा से नहीं अपने युवाओं की मेहनत से आगे बढ़ेगा। केंद्र हमें सिर्फ विशेष राज्य का दर्जा दे दे हमें और कुछ नहीं चाहिए।’’ 
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नीतीश कुमार और लालू यादव के विरुद्ध जोशीले भाषणों और बिहार के लिए चुनावों से ऐन पूर्व 1.25 लाख करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की उपेक्षा करते हुए राज्य की जनता ने नीतीश कुमार के वायदों और दावों पर विश्वास किया और भारी बहुमत से नीतीश और लालू यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को सत्ता सौंप दी। 
 
पटना के गांधी मैदान में नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में सभी राजनीतिक दलों और विचारधाराओं के नेताओं ने भाग लेकर नीतीश कुमार की लोकप्रियता पर अपनी मोहर लगाई है लेकिन मुलायम सिंह यादव और नवीन पटनायक समारोह में शामिल नहीं हुए।
 
नीतीश कुमार जहां शुरू से ही कांग्रेस के विरोधी रहे हैं वहीं लालू यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती-दुश्मनी भी जगजाहिर है। दोनों की कार्यशैली में भी भारी अंतर है। नीतीश कुमार जहां विनम्र तथा अफसरशाही को स्वायत्तता प्रदान करने और खुला हाथ देने में विश्वास रखते हैं वहीं लालू यादव अफसरशाही पर राजनीतिक नियंत्रण के पक्षधर हैं। 
 
प्रदेश कांग्रेस का रवैया वही होने के आसार हैं जैसा नीतीश कुमार चाहेंगे। अत: इस सरकार में शामिल तीनों ही पक्षों को परस्पर तालमेल के साथ चलना होगा तभी यह सरकार बिहार की जनता की अपेक्षाओं पर पूरा उतर पाएगी।
 
लालू इन चुनावों में कितना मजबूत होकर उभरे हैं, यह इसी से स्पष्टï है कि नीतीश के बाद  लालू के छोटे बेटे तेजस्वी ने शपथ ली हालांकि लालू की पार्टी में ही उनसे कहीं अधिक वरिष्ठï विधायक मौजूद हैं। 
 
इससे बिहार में पुन: वंशवादी राजनीति के उभरने का स्पष्टï संकेत मिलता है। राजनीतिक प्रेक्षकों का भी कहना है कि लालू यादव का बेटा होना ही तेजस्वी की सबसे बड़ी योग्यता है। 
 
जो भी हो, इस चुनाव में महागठबंधन और भाजपा नीत गठबंधन दोनों के लिए ही सबक छिपा है। जहां नीतीश को लालू व कांग्रेस के साथ मिल कर अपने पिछले कार्यकाल वाला प्रदर्शन जारी रखना होगा वहीं लालू व कांग्रेस को भी अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर नीतीश का पूरा साथ देना होगा। 
 
भाजपा को भी यह बात समझ लेनी चाहिए कि मात्र निजी आक्षेप और आरोप लगाने की राजनीति सफल नहीं होती। इन चुनावों में भाजपा की हार उसके प्रचार अभियान की आक्रामकता की भी हार है।     

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