सम्पत्ति के लालच में आजकल की संतानें बनती जा रही हैवान

Saturday, Dec 22, 2018 - 12:26 AM (IST)

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जमाना बदल गया है और बच्चे माता-पिता की ओर से विमुख होते जा रहे हैं। अक्सर ऐसे बुजुर्ग मेरे पास अपनी पीड़ा व्यक्त करने आते रहते हैं जिनकी दुख भरी बातें सुन कर मन रो उठता है। हाल ही में ऐसी तीन घटनाएं सामने आई हैं :

पहली घटना बिहार में पटना के बिहटा की है जहां 19 जुलाई को मुनारिक राय नामक बुजुर्ग द्वारा पैंशन में हिस्सा नहीं देने पर नाराज बेटे अवधेश राय ने पहले तो उनसे झगड़ा किया और फिर पिता और माता दोनों की गोली मार कर हत्या करने के बाद भी उन पर धारदार हथियार से वार किए।

दूसरी घटना बंगाल के बालूरघाट शहर से सटे बड़ो काशीपुर कस्बे की है जहां 20 नवम्बर को 2 बेटों ने 2 बीघा जमीन अपने नाम लिखवाने के लिए अपनी वृद्ध माता मनोरमा और पिता कामाख्या तालुकदार को कमरे में बंद करके उनके शरीर पर गर्म और ठंडा पानी डाल कर उन्हें टार्चर करने के बाद गला रेत कर उनकी हत्या की कोशिश की।

सूचना मिलने पर पुलिस ने दरवाजा तोड़ कर वृद्ध दम्पति को गंभीर घायल हालत में वहां से निकाल कर अस्पताल में भर्ती करवाया। ऐसी ही एक अन्य घटना में 20 दिसम्बर को केरल के थिरुनवाया गांव में रहने वाली पथुमा नामक 68 वर्षीय विधवा महिला ने राज्य महिला आयोग में अपने बेटे सिद्दीक के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवाई है कि सम्पत्ति विवाद के चलते उसे परेशान, प्रताडि़त तथा अपमानित करने के लिए नीचता की सारी हदें पार करते हुए उसने जीते जी ही उसकी कब्र खोद डाली है।

सिद्दीक ने यह कब्र अपने घर के बगल वाले प्लाट में बनाई है। वह कब्र पर लगाने के लिए पत्थर भी ले आया और वहां एक बोर्ड भी लगा दिया कि ‘‘यह कब्र मेरी मां के लिए है। पुलिस ने सिद्दीक के विरुद्ध केस दर्ज कर लिया है।’’

उक्त घटनाएं इस कटु तथ्य का प्रमाण हैं कि आजकल की संतानें अपनी प्राचीन संस्कृति से विमुख होकर भगवान राम का आदर्श भुला बैठी हैं जिन्होंने अपने पिता महाराजा दशरथ द्वारा माता कैकेयी को दिया वचन सच सिद्ध करने के लिए 14 वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार कर लिया था।

राम के देश में संतानों द्वारा माता-पिता से ऐसा व्यवहार करना निश्चय ही दुखद है जिससे हमारी प्राचीन संस्कृति पर दाग लग रहा है। अत: सरकार और संत समाज सोचे कि इस बारे क्या करना है!    —विजय कुमार 

shukdev

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