अब रूसी-चीनी भाई-भाई

Monday, Jun 10, 2019 - 12:52 AM (IST)

पैंटागन का कहना है कि शुक्रवार को प्रशांत महासागर में दोनों देशों के ‘वार शिप्स’ के लगभग टकराने की स्थिति के लिए रूस ही जिम्मेदार है परंतु पूर्व चीन सागर में हुई इस घटना ने ‘ग्लोबल पावर’ के रूप में अमेरिका से मुकाबले के लिए चीन तथा रूस में बढ़ती दोस्ती को लेकर अवश्य चिंता की लकीरें खींच दी हैं।

एक पूर्व नेवी कैप्टन तथा इंटैलीजैंस सैंटर के डायरैक्टर कार्ल स्कस्टर के अनुसार, ‘‘रूसी आमतौर पर हमारे जहाजों को तब परेशान करते हैं जब वे रूसी प्रभाव वाले क्षेत्र (ब्लैक सी, बेरेन्ट्स सी तथा व्लादवोस्तोक के आस-पास) में होते हैं। शुक्रवार को रूस तथा अमेरिकी जहाजों के आमने-सामने आने के संबंध में ध्यान देने वाली बात है कि यह घटना चीन व रूस के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तथा व्लादिमीर पुतिन के बीच 70 सालों की दोस्ती को मनाने के लिए क्रैमलिन में हुई मुलाकात के दो दिन बाद हुई है।’’

दो दिन की इस वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच अनेक संधियों पर हस्ताक्षर हुए जिनमें व्यापार, ऊर्जा, हवाई जहाजों व हैलीकॉप्टरों के निर्माण से लेकर अंतरिक्ष में खोज तथा वैज्ञानिक, तकनीकी व नवीन खोजों के बारे में जानकारी सांझा करना तक शामिल है।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि चीन तथा रूस के संबंध ‘अभूतपूर्व ऊंचाई’ पर पहुंच चुके हैं तो शी जिनपिंग ने पुतिन को अपना सबसे ‘करीबी दोस्त’ और ‘महान सहयोगी’ बताया।

दोनों की मुलाकात को ‘पांडा डिप्लोमेसी’ भी कहा जा रहा है क्योंकि चीन ने रूस को चीन के राष्ट्रीय प्रतीक दो ‘जायंट पांडा’ भेंट किए हैं।

अमेरिका तथा चीन के बीच व्यापार वार्ता के रूप में शुरू हुई बातचीत बेहद ठंडे दौर में पहुंच गई जब सोमवार को तिनानमिन स्क्वेयर जनसंहार की 30वीं वर्षगांठ पर अमेरिका ने खुल कर इसका जिक्र करते हुए हांगकांग में छात्रों की प्रार्थना सभा में उनका समर्थन किया। यह एक ऐसा दिन है जिसे चीन अपनी इतिहास की किताबों, जनता की याददाश्त तथा राजनीतिक स्तर पर पूरी तरह मिटा चुका है।

ऐसे हालात में चीन तथा रूस की दोस्ती व सहयोग नए क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं। इसमें सुरक्षा परिषद में दो स्थायी सदस्यों के रूप में हाथ मिलाना और ईरान, कोरिया एवं सीरिया का समर्थन, वेनेजुएला में शांति लाने के प्रयास करने से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया में संयुक्त नीति का सक्रियता से पालन करना शामिल है। ध्यान रहे कि दोनों देशों में तानाशाही विचारधारा वाले नेता सत्तासीन हैं। यानी इस बात में कोई शक नहीं कि ‘अब रूसी-चीनी भाई-भाई’ हैं। - विजय कुमार

Advertising