अब ‘पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी’ ने भाजपा नेतृत्व को ‘दिखाईं आंखें’

Sunday, Jul 29, 2018 - 02:29 AM (IST)

देश की सबसे बड़ी पार्टी बनने और अपने सहयोगी दलों के साथ देश के 19 राज्यों पर शासन करने के बावजूद भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसी कारण इसके अपने तथा सहयोगी दलों के नेताओं के बगावती सुर रह-रह कर उभरते रहते हैं। 

पिछले कुछ समय के दौरान टी.डी.पी. और शिव सेना ने भाजपा का साथ छोड़ा और जद (यू) ने बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर पार्टी को आंखें दिखाईं। जद (यू) नेता संजय सिंह ने 28 जून को भाजपा नेतृत्व को आगाह करते हुए कहा था कि, ‘‘2014 और 2019 के चुनाव में बहुत अंतर है। बिहार में नीतीश कुमार के बिना चुनाव जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।’’ तेदेपा और शिव सेना तो नहीं माने परंतु जद (यू) को शांत करने में भाजपा नेतृत्व किसी तरह सफल हो गया है लेकिन समस्या यहीं पर समाप्त नहीं हुई तथा पिछले लगभग मात्र 15 दिनों में ही पार्टी या इससे जुड़े नेताओं की नाराजगी सामने आई है। 

वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व सांसद चंदन मित्रा तथा हरियाणा के मास्टर हरि सिंह ने भाजपा को अलविदा कह दिया और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री लाल सिंह ने भाजपा से दूरी का संकेत देते हुए अपना अराजनीतिक ‘डोगरा स्वाभिमान संगठन’ गठित कर लिया है। यही नहीं, जहां कुछ ही समय पूर्व भाजपा को अलविदा कहने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री यशवंत सिन्हा ने अपने पुत्र एवं केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा मॉब लिंचिंग के आरोपियों को सम्मानित करने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए स्वयं को ‘नालायक बेटे का लायक बाप’ बताया, वहीं गुजरात के पूर्व वरिष्ठï भाजपा नेता शंकर सिंह वाघेला अपने बेटे महेंद्र सिंह वाघेला के भाजपा में शामिल होने से नाराज होकर स्वयं ‘अज्ञातवास’ में चले गए। 

जैसे कि इतना ही काफी नहीं था, अब बिहार में भाजपा के एक और सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने भी मोदी सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। लोजपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने चेतावनी दी है कि, ‘‘हमारा धैर्य टूट रहा है।’’ पिछले 4 महीनों से श्री पासवान यह मांग करते आ रहे हैं कि केंद्र सरकार को अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून का मूल स्वरूप कायम रखने के लिए अध्यादेश लाना चाहिए। इसके साथ ही वह इस कानून को कथित रूप से कमजोर करने संबंधी फैसला देने वाले सुप्रीमकोर्ट के जज जस्टिस ए.के. गोयल (रिटायर्ड) को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का प्रमुख बनाने के फैसले का विरोध तथा जस्टिस गोयल की नियुक्ति रद्द करने की मांग कर रहे हैं परंतु उनकी मांग अभी तक स्वीकार नहीं की गई है। 

उन्होंने चेतावनी भरे अंदाज में कहा, ‘‘एस.सी./एस.टी. समुदायों के लोग राजग सरकार द्वारा छले गए महसूस कर रहे हैं क्योंकि सरकार ने अब तक अध्यादेश लाकर सुप्रीमकोर्ट के 20 मार्च के फैसले को नहीं पलटा।’’ ‘‘2 अप्रैल को देश भर में दलित संगठनों ने आंदोलन किया था। वैसा ही आंदोलन कुछ अन्य दलित संगठन 9 अगस्त को भी करने वाले हैं। दलित अब अपना धैर्य खो रहे हैं। अत: हम चाहते हैं कि सरकार 9 अगस्त से पहले ही अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून का मूल स्वरूप बनाए रखने के लिए अध्यादेश जारी करे।’’ 

‘‘यदि सरकार ने तब तक हमारी मांग नहीं मानी तो हमारी ‘दलित सेना’ (लोजपा से संबंधित संगठन) भी इस आंदोलन में सड़कों पर उतरने को मजबूर होगी। राजग सरकार को हमारा समर्थन मुद्दों पर आधारित है। सरकार ने यदि हमारी बात सुन ली होती तो यह नौबत नहीं आती।’’ आज जबकि भाजपा नेतृत्व और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2019 में एक बार फिर सत्तारूढ़ होने की आकांक्षा है, ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि जैसे उन्होंने बिहार में नीतीश और जद (यू) की नाराजगी दूर करके उन्हें शांत किया है, उसी प्रकार लोजपा तथा अन्य सहयोगी दलों व अपने सदस्यों में पनप रहा असंतोष भी दूर करें। 

भाजपा नेतृत्व को यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि आज देश में दलित, मुसलमान और ईसाई समुदाय के लोगों के साथ-साथ छोटा व्यापारी वर्ग भी सत्तारूढ़ दल से नाराज चल रहा है अत: सुधारात्मक पग उठाकर और सहयोगी दलों की नाराजगी दूर करके ही भाजपा अगले चुनावों में जीत हासिल कर सकती है।—विजय कुमार 

Pardeep

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