अब बेटियों और दामादों को भी करनी होगी अपने बुजुर्गों की देखभाल

Saturday, Dec 07, 2019 - 01:30 AM (IST)

भारत में बड़ी संख्या में बुजुर्ग अपनी ही संतानों द्वारा उपेक्षा, अपमान और उत्पीडऩ का शिकार हो रहे हैं जिन्हें उनके बेटे-बेटियों ने उनकी जमीन, जायदाद अपने नाम लिखवा लेने के बाद उन्हें बेसहारा छोड़ दिया है। हालत यह है कि 90 प्रतिशत बुजुर्गों को अपनी जरूरतों के लिए अपने बेटों-बहुओं, बेटियों तथा दामादों के हाथों दुव्र्यवहार एवं अपमान झेलना पड़ रहा है। इसी कारण संतानों द्वारा अपने बुजुर्गों की उपेक्षा को रोकने व उनके ‘जीवन की संध्या’ को सुखमय बनाना सुनिश्चित करने के लिए सर्वप्रथम हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था। 

इसके अंतर्गत पीड़ित माता-पिता को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया गया व दोषी पाए जाने पर संतान को माता-पिता की सम्पत्ति से वंचित करने, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां न देने तथा उनके वेतन से समुचित राशि काट कर माता-पिता को देने का प्रावधान है। संसद द्वारा पारित ‘अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक देखभाल व कल्याण विधेयक-2007’ के द्वारा भी बुजुर्गों की देखभाल न करने पर 3 मास तक कैद का प्रावधान किया गया है तथा इसके विरुद्ध अपील की अनुमति भी नहीं है। इसी कड़ी में असम सरकार ने 2017 में अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करने तथा उनकी देखभाल का दायित्व पूरा नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध एक बड़ा कदम उठाते हुए वित्तीय वर्ष 2017-18 से उन्हें दंडित करने के अलावा उनके वेतन का एक हिस्सा काट कर उपेक्षित बुजुर्ग माता-पिता को देने का फैसला किया ताकि वे अपनी जरूरतें पूरी कर सकें। 

कुछ अन्य राज्य सरकारों मध्य प्रदेश, दिल्ली आदि ने भी ऐसे कानून बनाए हैं परंतु देश के सभी राज्यों में ऐसे कानून लागू नहीं हैं। अपने माता-पिता से बेेटे और बहुएं तो दुव्र्यवहार करते ही हैं, बेटियां और दामाद भी इसमें पीछे नहीं हैं। अभी गत 22 नवम्बर को ही नालागढ़ के वार्ड नंबर 5 में पुलिस को दी शिकायत में एक पीड़ित वृद्धा ने कहा कि कुछ वर्ष पहले उसके पास रहने के लिए आई उसकी बेटी ने जमीन अपने नाम करवा ली और फिर उसे किराएदार बता कर घर से निकाल दिया। 

ऐसी ही घटनाओं को देखते हुए अब केंद्र सरकार ने अपने 2007 के ‘अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक देखभाल व कल्याण कानून’ का दायरा बढ़ाकर सिर्फ खून की संतानों को ही नहीं बल्कि अपने दामादों और बहुओं को भी बुजुर्ग पारिवारिक सदस्यों की देखभाल और उनकी गरिमा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार ठहराने का फैसला किया है। अब 5 दिसम्बर, 2019 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कानून में इस आशय के लिए पारित संशोधनों को स्वीकृति दे दी है जिसमें कानूनी माता-पिता, दादा-दादी और नाना-नानी को भी शामिल कर लिया गया है। 

संसद में अगले सप्ताह पेश किए जाने वाले इस विधेयक में अधिकतम गुजारा-भत्ते की वर्तमान 10,000 रुपए की सीमा हटाने का भी प्रस्ताव है। नए कानून के अंतर्गत गुजारा भत्ता की राशि वरिष्ठ नागरिकों, माता-पिता, बच्चों और रिश्तेदारों के जीवन स्तर के अनुसार तय की जाएगी। संशोधनों के अनुसार कानून में दर्ज ‘भरण पोषण’ शब्द की व्याख्या करते हुए इसमें आवास, सुरक्षा और कल्याण को भी शामिल किया जाएगा। देखभाल न करने वाले बेटे-बहुओं, बेटी तथा दामादों को वर्तमान अधिकतम 3 मास कैद के स्थान पर 6 महीने करने का भी प्रस्ताव है। प्रस्तावित संशोधनों में गोद लिए बच्चों के साथ-साथ सौतेले बेटे-बेटियां भी शामिल हैं। 

केंद्र, राज्य, अद्र्ध सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्थाओं में वरिष्ठ नागरिकों की परिभाषा एक समान करने का भी प्रस्ताव है ताकि उन्हें उस समय मिलने वाले लाभ प्रभावित न हों। नए कानून के अनुसार संबंधित ट्रिब्यूनल को मासिक गुजारा भत्ता बारे आवेदन 90 दिनों के भीतर और आवेदक की आयु 80 वर्ष से अधिक होने पर 60 दिनों के भीतर निपटाना होगा। ‘आश्रय गृह’ के पंजीकरण तथा रख-रखाव के लिए अपनाए जाने वाले न्यूनतम मापदंडों सहित घरेलू सेवा प्रदान करने वाली एजैंसियों के पंजीकरण तथा वरिष्ठ नागरिकों के लिए प्रत्येक पुलिस थाने में एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने का प्रस्ताव भी किया गया है। 

केंद्र सरकार द्वारा ‘अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक देखभाल व कल्याण कानून-2007’ में प्रस्तावित संशोधनों से जहां इस कानून की त्रुटियां दूर होंगी वहीं बेटियों और दामादों तथा उनकी संतानों को भी जवाबदेह बनाने से उन पर आश्रित परंतु उपेक्षित बुजुर्गों को सम्मानपूर्वक और गरिमापूर्ण जीवन जीने में कुछ सहायता भी अवश्य मिलेगी।—विजय कुमार  

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