नहीं थम रहा पुलिस हिरासत व जेलों से अपराधियों की फरारी का लगातार सिलसिला

Friday, Dec 08, 2017 - 03:00 AM (IST)

देश भर की जेलें घोर अव्यवस्था की शिकार हैं। वहां से कैदियों के भागने और जेल के अंदर हर तरह के अपराध होने की घटनाएं आम हैं और यहां तक कि हाई सिक्योरिटी जेलें भी इस समस्या से मुक्त नहीं। 

एक ओर तिहाड़ जेल से चाल्र्स शोभराज द्वारा अधिकारियों को नशीली मिठाई खिलाकर फरार होने जैसी घटनाओं ने जेलों में सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाए हैं तो दूसरी ओर जेलों से अदालतों में पेशी के लिए ले जाए जाने वाले विचाराधीन कैदियों की फरारी और उनके सहयोगियों द्वारा उन्हें पुलिस की हिरासत से निकाल ले जाने की घटनाएं भी अब आम हो गई हैं: 

13 नवम्बर को शिमला के ओल्ड बस स्टैंड पर बेकरी की सप्लाई देने आया कंडा जेल में उम्र कैद की सजा काट रहा कैदी ‘दर्शन कुमार उर्फ बंटी’ पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया। 17 नवम्बर को जीरा अदालत में पेशी पर ले जाने के दौरान एक कैदी ‘बलविंद्र सिंह उर्फ गोलू’ पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया। पुलिस दल उसे जीरा अदालत ले जा रहा था तभी मोटरसाइकिल पर सवार 2 नकाबपोशोंं ने बंदूक के दम पर उसे पुलिस हिरासत से छुड़वा लिया। 

26 नवम्बर को राजौरी की ढांगरी जिला जेल में बंद विचाराधीन कैदी ‘मो. रियाज’ पुलिस को चकमा देकर उस समय फरार हो गया जब पुलिस उसे सैशन कोर्ट में पेश करके वापस जिला जेल ला रही थी। 01 दिसम्बर को एस.एन. मैडीकल कालेज, आगरा के टी.बी. वार्ड से हत्या का आरोपी कैदी ‘सुखदेव’ पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया। 03 दिसम्बर को हाजीपुर सदर अस्पताल से कैदी ‘अनिल पासवान’ वार्ड के बाथरूम का वैंटीलेटर काट कर पाइप के सहारे फरार हो गया। 05 दिसम्बर रात को शिमला से 14 किलोमीटर दूर आदर्श कंडा जेल की बैरक नं. 4 में बंद नेपाली मूल के 3 विचाराधीन कैदी ‘लीलाधर खड़क उर्फ ललित’, ‘प्रताप सिंह’ और ‘प्रेम बहादुर उर्फ प्रकाश’ जेल की पिछली दीवार फांद कर फरार हो गए। इनमें से एक के विरुद्ध हत्या और 2 के विरुद्ध दुष्कर्म के मामले चल रहे हैं। 

सभी कैदी रात के 10 बजे तक अपनी एक ही बैरक में थे। जेल स्टाफ के अनुसार कैदी जेल परिसर में पड़ी भवन निर्माण में काम आने वाली सामग्री  जिसमें कुछ पाइप और लोहे की छड़ें आदि शामिल थीं, की सहायता से 16 फुट ऊंची बाहरी दीवार फांद कर फरार हुए। यह सामान वहां कैदियों के निर्माणाधीन खंड के लिए रखा गया था। दीवार चढ़ते समय उन्होंने अपने जूते उतार दिए और अंदर वाले गेट की छड़ें काटने के लिए इस्पात के ब्लेड का इस्तेमाल किया। रात की गश्त पर सिर्फ 2 गार्ड थे जबकि रात के समय थ्रीलेयर सिक्योरिटी का नियम है। यह बात भी आश्चर्यजनक है कि जेल में अभी तक सी.सी.टी.वी. कैमरे चालू नहीं किए गए हैं। 358 कैदियों की क्षमता वाली जेल में इस समय 240 बंदी हैं जिनमें आई.एस.आई.एस. का संदिग्ध सदस्य भी शामिल है। 

हिमाचल प्रदेश में जेल से फरारी का यह पहला मौका नहीं है तथा 2010 के बाद से अभी तक ऐसे आधा दर्जन मामले हो चुके हैं। इसी वर्ष हमीरपुर और मंडी जेलों से फरारी के 2 मामलों में 6 कैदी निकल भागे थे। अभी यह लेख लिखा ही जा रहा था कि 7 दिसम्बर को फगवाड़ा की सब-जेल से 2 कैदियों ‘अमनदीप सिंह’ तथा ‘राजविन्द्र सिंह’ द्वारा जेल के संतरी की आंखों में मिर्च-मसाला मिली गर्म चाय फैंक कर फरार होने का समाचार आ गया जबकि फरार होने की कोशिश कर रहे एक अन्य कैदी ‘पवन कुमार’ को जेल गार्द ने काबू कर लिया है। 

बंदी अपराधियों का पुलिस कर्मचारियों के कब्जे से और जेल परिसरों से फरार होना मुख्यत: उनकी सुरक्षा में तैनात कर्मचारियों की चूक और लापरवाही का ही प्रमाण है जो अनेक असुलझे प्रश्र खड़े करता है जिनका उत्तर तलाश कर उन कमजोरियों को दूर करने की आवश्यकता है। यदि ऐसा नहीं किया जाएगा तो कैदी इसी तरह फरार होते रहेंगे। कानून व्यवस्था का मजाक उड़ता रहेगा और अन्य अपराधियों के हौसले बढ़ते रहेंगे।—विजय कुमार 

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