सरकारी खटारा बसों बारे सड़क परिवहन मंत्री ‘नितिन गडकरी’ का सही बयान

punjabkesari.in Sunday, Feb 03, 2019 - 12:50 AM (IST)

रेलगाडिय़ों के बाद बसें भारत में लोगों के आवागमन का मुख्य साधन हैं परंतु सरकार संतोषजनक परिवहन सेवाएं उपलब्ध कराने में विफल रही है। राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही बसें पर्याप्त देखभाल और मुरम्मत न होने के कारण यात्रियों के लिए सुविधा की बजाय असुविधा का कारण बन रही हैं। रखरखाव ठीक ढंग से न होने के कारण इनमें ब्रेकडाऊन की शिकायत तो आम है ही इसके अलावा भी इनमें अनेक त्रुटियां पाई जाती हैं। रोडवेज वर्कशापों में पूरे कर्मचारी और पुर्जे न होने से बसों की पूरी मेंटेनैंस नहीं हो रही।

परिणाम यह है कि बड़ी संख्या में देशभर में सरकारी बसें खतरे भरा सफर कर रही हैं और कंडम होने के बावजूद मात्र जुगाड़ पर ही चलाई जा रही हैं। अनेक स्थानों पर अवधि पार (एक्सपायर्ड) टायर व पुर्जे लगी बसें चलाकर यात्रियों के प्राण खतरे में डाले जा रहे हैं। डैंटिंग और पेंटिंग करके चलाई जा रही सरकारी खटारा बसें आए दिन रास्तों में बंद हो जाती हैं तो कभी टायर-ट्यूब फटने और कभी बेकाबू होकर या वर्षा और धुंध में वाइपर के काम न करने के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो जाती हैं।

गत वर्ष 1 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के बस्ती में खराब रोडवेज बस को धक्का लगाने के लिए उतरे यात्रियों को पीछे से आ रहे ट्रक ने रौंद दिया जिससे 6 लोगों की मृत्यु हो गई। अनेक बसों की खिड़कियां और सीटें आदि टूटी हुई होती हैं जिससे यात्रियों को बैठ कर यात्रा करने की बजाय खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती है। कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश परिवहन की एक बस का वीडियो वायरल हुआ जिसमें बरसात के कारण बस की छत टपकने लगी और यात्रियों को बस के अंदर ही छाता खोलना पड़ा। जितनी तेजी से बस जा रही थी उतनी ही तेजी से पानी अंदर यात्रियों की सीटों पर गिर रहा था।

अनेक स्थानों पर बसें बड़ी संख्या में इंजन, टायर एवं पुर्जों आदि के अभाव में ऑफ द रोड पड़ी हैं। इससे एक ओर जहां बसों के रूट पूरे न होने के कारण यात्रियों को असुविधा हो रही है वहीं संबंधित राज्यों की सरकारों को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुक्सान हो रहा है। अनेक ग्रामीण क्षेत्रों के रूट पर चलने वाली बसों को बंद कर देने या ग्रामीण रूटों पर सरकारी बसें न चलाने से यात्रियों को असुविधा हो रही है। यह भी कहा जाता है कि यदि ग्रामीण रूटों पर सरकारी बसें चलाई भी जाती हैं तो प्राइवेट ट्रांसपोर्टर सांठगांठ करके उन्हें बंद करवा देते हैं।

सरकारें बसों का किराया तो लगातार बढ़ाती जा रही हैं परंतु सुविधा के नाम पर लोगों को कुछ नहीं मिलता। यह बात समझ से बाहर है कि सरकारें खटारा और सड़क पर चलने के अयोग्य हो चुकी बसों को किस मजबूरी के अंतर्गत चलाना जारी रखे हुए हैं। आमतौर पर इस बात को लेकर संशय ही बना रहता है कि सरकारी बसें समय पर आएंगी भी या नहीं। इस समस्या के प्रति प्रशासकीय उदासीनता का एक प्रमाण गत वर्ष अक्तूबर में मिला जब सरकारी बसों की खस्ता हालत का खुलासा करने वाले तमिलनाडु पथ परिवहन निगम के एक ड्राइवर को ही निलंबित कर दिया गया।
 

विभाग के अधिकारियों को लिखित में शिकायत देने के बाद भी विभागीय अधिकारी ध्यान नहीं देते और अब तो केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी सरकारी बसों की बुरी हालत की स्वीकारोक्ति कर ली है। विश्व बैंक के सहयोग से देश में लंदन के मॉडल पर परिवहन सेवा शुरू करने के लिए हुए समझौते के मौके पर नई दिल्ली में 31 जनवरी को बोलते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘सरकारी बसों में हॉर्न को छोड़ कर सब कुछ बजता है और इन बसों में तो खिड़की बंद करने की प्रतियोगिता कराई जा सकती है।’’

प्रशासकीय उदासीनता के कारण ही जहां सरकारी बसों के बेड़े में कमी आ रही है और भारी घाटा पड़ रहा है वहीं प्राइवेट यात्री परिवहन फल-फूल रहा है और अनेक प्राइवेट बस आप्रेटर यात्रियों से अधिक किराया वसूल रहे हैं। राज्यों में सरकारें तो बदलीं परंतु सरकारी बसों की हालत में सुधार नहीं हुआ। यदि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल को छोड़ दें तो देश के अधिकांश राज्यों में सरकारी बसें घाटे में ही चल रही हैं।

ऐसे में श्री गडकरी की सरकारी बसों की खराब हालत बारे टिप्पणी बिल्कुल सही है जिस पर ध्यान देते हुए संबंधित राज्यों को अपनी परिवहन सेवा में सुधार लाने के समुचित प्रयास करने, बसों के रख-रखाव की मॉनीटरिंग करने के लिए एक समिति बनाने और इस बारे यात्रियों तथा अन्य माध्यमों से प्राप्त होने वाले फीड बैक पर ध्यान देने की जरूरत है।     —विजय कुमार 


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