नक्सलवादियों द्वारा सुरक्षा बलों पर लगातार हमले जारी

Monday, Apr 24, 2017 - 10:52 PM (IST)

‘नक्सलवादियों’ की उत्पत्ति बंगाल के गांव नक्सलबाड़ी से हुई। शुरू से इनकी विचारधारा माक्र्सवादी-लेनिनवादी थी जो बाद में माओवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और माओवादियों वाले रास्ते पर चल निकले। इन्होंने अपनी आय के लिए अनेक उचित-अनुचित तरीके अपना रखे हैं जिसमें छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले से विदेशों को निर्यात किए जाने वाले लौह अयस्क की वैगनों को ‘लूट’ कर करोड़ों रुपए कमाना भी शामिल है।

किंरदूल से हर दिन विशाखापट्टïनम के लिए लौह अयस्क से भरी वैगनें रवाना होती हैं। नक्सलवादी गिरोहों के सदस्य ट्रैक तोड़कर वैगनों को पलट देते हैं जिससे लौह अयस्क रेल पटरियों के आसपास बिखर जाता है। माफिया के लोग इसे उठाकर बाजार में बेच देते हैं व इसकी बिक्री से मिलने वाले करोड़ों रुपए में से नक्सलवादियों का हिस्सा उनके पास पहुंच जाता है।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार हमारे देश में नक्सलवाद आतंकवाद से भी बड़ा खतरा बन चुका है। ये इस समय न सिर्फ सरकार के विरुद्ध छद्म युद्ध में लगे हुए हैं बल्कि कंगारू अदालतें लगा कर मनमाने फैसले भी सुना रहे हैं, लोगों से जब्री वसूली, लूटपाट तथा हत्याएं कर रहे हैं। निम्र में दर्ज हैं देश में लगातार जारी नक्सली हिंसा के चंद ताजा उदाहरण : 

11 मार्च को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलवादियों के हमले में 12 सी.आर.पी.एफ. के जवान शहीद कर दिए गए।
16 मार्च को उड़ीसा के कालाहांडी जिले में कार्लापट गांव में 7 महिलाओं सहित 20 के लगभग सशस्त्र नक्सलवादियों ने रात के समय घर में सो रहे 3 ग्रामीणों को जगाकर उनका अपहरण कर लिया।

19 मार्च को झारखंड के गुमला जिले के पालकोठाना क्षेत्र में ‘झुतरा’ नामक एक व्यक्ति को मुखबिर होने के संदेह में गोली मार दी। 
09 अप्रैल को उन्होंने गढ़चिरौली के भाम्भरागढ़ में रात 9 बजे ‘लालसू’ नामक व्यक्ति को पकड़ कर डंडों से बेरहमी से पीटने के बाद मार डाला।
13 अप्रैल को इन्होंने बीजापुर जिले के चौखन पाल गांव से ‘चैतु उईका’ नामक ग्रामीण को लाठी-डंडों से खूब पीटने के बाद रस्सी से गला घोंटकर पत्थर से उसका सिर कुचल दिया।

16 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में सी.आर.पी.एफ. के जवानों ने माओवादियों द्वारा अरनपुर-जगरगुंडा मार्ग के कोंडा पारा में तैनात सी.आर.पी.एफ. के 231 बटालियन कैम्प को उड़ाने की साजिश को नाकाम किया। 
16 अप्रैल को ही बिहार में गया के बांके बाजार क्षेत्र में गोजना गांव के निकट एस.पी.ओ. छोटू को मार कर उसकी आंखें भी निकाल दीं। 
18 अप्रैल को छत्तीसगढ़ में सुकमा जिले में माओवादियों के हाथों मारी गई युवती का शव जगरगुंडा राहत शिविर में फांसी पर झूलता हुआ बरामद हुआ। 
18 अप्रैल को ही बिहार-झारखंड के सीमांत इलाके में मुखबिरी के संदेह में नक्सलवादियों ने शिवनाथ यादव व उसके बेटे गुड्डू  को मार डाला।

और अब 24 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के बेहद घने जंगल वाले ‘चिंतागुफा’ इलाके में, जिसे ‘नक्सलवादियों की राजधानी’ के तौर पर भी जाना जाता है, 300 नक्सलवादियों ने एक बड़े हमले में पुलिस दल पर गोलीबारी करके सी.आर.पी.एफ. की 74वीं बटालियन के 26 जवानों को शहीद और अनेकों को घायल कर दिया जबकि कुछ जवान लापता हैं। नक्सलवादी उनके हथियार भी लूट कर ले गए।

उक्त उदाहरणों से स्पष्टï है कि न सिर्फ नक्सलवादियों ने लोगों की हत्या से पूर्व उन्हें क्रूरतम रूप से टार्चर करने को भी अपनी कार्यशैली का एक अभिन्न अंग बना लिया है बल्कि वे अपने हमलों में तीव्रता लाते जा रहे हैं। इनके आगे सरकार असहाय नजर आती है और लगातार इनकी गतिविधियों का जारी रहना भारतीय सुरक्षाबलों की चूक और हमारे रणनीति निर्धारकों की ढुलमुल नीतियों का ही नतीजा है।

नक्सलवादियों के प्रति भी हमारी केंद्र और राज्य सरकारें  लगातार अपना स्टैंड बदलती रही हैं और एक आम बहाना यह है कि कानून-व्यवस्था राज्यों की समस्या है लिहाजा इससे निपटने का जिम्मा भी राज्यों का ही है।

अत: देश को इनके लगातार बढ़ रहे खतरे से मुक्त करवाने के लिए माओवादग्रस्त इलाकों में विकास की गति तेज करने और इनके विरुद्ध उसी प्रकार सैन्य कार्रवाई करने की आवश्यकता है जिस प्रकार श्रीलंका सरकार ने लिट्टो उग्रवादियों के विरुद्ध कार्रवाई करके 6 महीने में ही अपने देश से उनका सफाया कर दिया था।                               —विजय कुमार

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