नरेन्द्र मोदी के गुजरात में ‘दीपक तले अंधेरा’

Monday, Feb 29, 2016 - 12:55 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को पूर्णत: डिजीटल और स्वच्छ बनाने के लिए तरह-तरह के प्रोत्साहन दे रहे हैं और दुनिया भर में डिजीटल इंडिया का बखान कर रहे हैं परंतु स्वयं उनके अपने गुजरात में यह लक्ष्य पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा। नरेन्द्र मोदी के गृह जिले मेहसाणा के ही एक गांव ने 12 फरवरी को अविवाहित महिलाओं के मोबाइल फोन रखने पर पाबंदी लगा दी है जो उत्तरी गुजरात के अन्य गांवों में भी बढ़ाई जा सकती है क्योंकि राजनीतिक रसूख वाला ठाकुर समुदाय रबाड़ी तथा वांकर जैसे पिछड़े समुदायों के सहयोग से इस पाबंदी को विस्तार देने का प्रयास कर रहा है।

 
अहमदाबाद से 100 कि.मी. दूर सूरज गांव की पंचायत ने कुछ खाप पंचायतों जैसा तालिबानी फरमान जारी किया है कि इस नियम का उल्लंघन करने वाली महिला को 2100 रुपए जुर्माना भरना होगा, जबकि इसकी सूचना देने वालों को 200 रुपए ईनाम मिलेगा। 
 
गांव के सरपंच देवशी वांकर के अनुसार, ‘‘लड़कियों को मोबाइल से क्या काम? मध्यवर्ग के लिए इंटरनैट समय और पैसे की बर्बादी है। लड़कियों को अपने वक्त का सदुपयोग पढ़ाई और दूसरे कामों में करना चाहिए।’’ इस पाबंदी से एकमात्र छूट यह है कि यदि कोई रिश्तेदार किसी लड़की से बात करना चाहे तो उसके माता-पिता अपने मोबाइल से उसकी बात करवा सकते हैं। समुदाय के नेताओं को लगता है कि लड़कियों द्वारा मोबाइल फोन के इस्तेमाल से समाज में संकट उत्पन्न हो रहा है। 
 
उत्तरी गुजरात में समुदाय के एक नेता रायकरणजी ठाकुर के अनुसार, ‘‘लड़कियों के फोन इस्तेमाल करने की आदतों से समाज में काफी संकट पैदा हो रहे हैं। कम उम्र की लड़कियां गुमराह होती हैं। इसके परिणामस्वरूप परिवार टूट सकते हैं और रिश्ते खत्म हो सकते हैं।’’  उनके अनुसार यह पाबंदी गांव वालों का ही विचार है। 
 
यही नहीं गुजरात सरकार का दावा है कि शेष देश की तुलना में वहां सर्वाधिक शौचालयों का निर्माण करवाया गया है, जबकि नरेन्द्र मोदी के  गृह नगर वडनगर और आनंदीबेन पटेल के गृह नगर वीजापुर के स्कूलों में लड़के और लड़कियों के शौचालय ही नहीं हैं। यहां तक कि वडनगर के नवनिर्मित सरकारी प्राइमरी स्कूल में भी शौचालय की सुविधा नहीं है।
 
उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी और आनंदीबेन पटेल दोनों का ही गृह जिला मेहसाणा है और 2012 में करवाए गए सर्वे के अनुसार यहां 14291 परिवारों के पास शौचालय नहीं थे और उनमें से अभी तक केवल 2178 परिवारों के लिए ही राज्य सरकार शौचालय बनवा सकी है।
 
राज्य के स्कूलों में 17287 शौचालय बनाए जाने थे लेकिन अभी तक 4661 शौचालय ही बनवाए जा सके। इसी प्रकार आंगनबाडिय़ों में 8016 शौचालयों के लक्ष्य के मुकाबले में केवल 2643 शौचालय ही बनाए जा सके हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि गुजरात के ग्रामीण इलाकों में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के लिए 2.11 लाख शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया था परन्तु इनमें से अभी तक केवल 82000 शौचालय ही बनवाए जा सके हैं।  
 
इतना ही नहीं गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के लिए 5.70 लाख शौचालय बनाने के लक्ष्य में से अभी 4.33 लाख शौचालयों का निर्माण ही किया जा सका है।  सार्वजनिक शौचालयों की श्रेणी में 431 शौचालय बनाए जाने थे परन्तु इस श्रेणी में भी केवल 5 शौचालय ही बनाए जा सके हैं।  
 
स्वयं भाजपा के दावों के अनुसार नरेंद्र मोदी के गुजरात को देश में विकास का मॉडल माना जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में गुजरात जैसे प्रगतिशील राज्य में लड़कियों पर इस प्रकार के प्रतिबंध लगाने की अनुमति देना एक प्रतिगामी कदम है। परन्तु एक गुजरात राज्य की ही यह कहानी नहीं है। कुछ इसी प्रकार की स्थिति देश के अन्य अनेक राज्यों में भी है। ऐसे में ‘मेक इन इंडिया’ की ही नहीं बल्कि ‘मेकिंग आफ इंडिया’ की आवश्यकता है।
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