पंजाबियों में एकजुटता लाने वाले श्री मदन लाल खुराना नहीं रहे

Saturday, Nov 03, 2018 - 05:04 AM (IST)

केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में संसदीय मामले एवं पर्यटन मंत्री के अलावा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल रहे भाजपा के कद्दावर नेता श्री मदन लाल खुराना का 27 अक्तूबर को 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह पांच वर्ष पूर्व ब्रेन हैमरेज का शिकार हुए थे और उसके बाद से बिस्तर पर ही थे। 

स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी भी इसी रोग से ग्रस्त थे और मेरी धर्मपत्नी स्वदेश चोपड़ा जी का निधन भी इसी रोग के कारण कई वर्ष बिस्तर पर रहने के बाद हुआ। अभी भी इस रोग से ग्रस्त वरिष्ठï नेता जार्ज फर्नांडीज तथा जसवंत सिंह बिस्तर पर पड़े हैं। हालांकि अस्थिमज्जा (Bone Marrow) के प्रत्यारोपण द्वारा इस रोग के इलाज की दिशा में इस समय जर्मनी में कार्य हो रहा है परंतु अभी तक चिकित्सा जगत इस संबंध में किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा।

श्री खुराना के साथ हमारे संबंध उस समय बढऩे शुरू हुए जब हमने 1 जनवरी, 1983 को दिल्ली से ‘पंजाब केसरी’ का प्रकाशन शुरू किया। ‘पंजाब केसरी’ का दिल्ली संस्करण शुरू करने के बाद पहली बार जब मैं दिल्ली गया तो श्री खुराना ने मुझे अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया जिसमें भारतीय जनता पार्टी के सभी प्रमुख नेता शामिल हुए थे। इसके बाद हमारा संपर्क बढ़ता ही चला गया। यह भी एक संयोग ही था कि हम दोनों का जन्म अविभाजित भारत के लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में हुआ है। जब हमने श्री अटल बिहारी वाजपेयी को ‘पंजाब केसरी समूह’ द्वारा संचालित ‘शहीद परिवार फंड समारोह’ में आतंकवाद पीड़ितों को दी जाने वाली सहायता के वितरण के लिए आमंत्रित किया तब वह पहली बार श्री वाजपेयी के साथ 3 फरवरी, 1985 को जालंधर आए। 

समय के साथ-साथ श्री खुराना से हमारे संबंध मजबूत होते चले गए और वह 29 मई, 1994,  23 नवम्बर, 1997, 19 जून, 2005 को शहीद परिवार फंड समारोहों में पीड़ितों को सहायता वितरण के लिए जालंधर आए। पंजाबी होने के नाते वह पंजाब के हालात को लेकर अत्यंत चिंतित रहते और उन्होंने पंजाब का संकट सुलझाने के लिए श्री प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में अकालियों के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी की भेंट हमारे घर पर ही करवाई। उस समय श्री बादल ने कहा था कि पंजाब की त्रासदी के दौरान न सिर्फ गांवों में बच्चियों से बलात्कार हुए हैं बल्कि पंजाब के किसान भी लूटे गए हैं। उनका यह भी कहना था कि आतंकवाद के चलते पंजाब में मरने वाले 25,000 लोगों में अधिक हानि सिख परिवारों को ही पहुंची है। 

दिल्ली में श्री खुराना ने पूज्य लाला जी और रमेश जी के नाम पर हमारे कहे बगैर ही एक सड़क और एक चौक का नामकरण करवाया। बाकायदा समारोह का आयोजन करके मधुबन चौक से वजीरपुर पीतमपुरा तक जाने वाली सड़क का नाम ‘लाला जगत नारायण मार्ग’ और रिंग रोड के ऊपर केशवपुरम व वजीरपुर को जोडऩे वाले चौराहे का नाम ‘रमेश चंद्र चौक’ रखा गया। जब भी मैं दिल्ली में होता और उन्हें अवसर मिलता तो वह मुझे अपने यहां अवश्य आमंत्रित करते थे। उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी से मिलती-जुलती कुर्सी अपने घर में रखी हुई थी जिस पर वह बैठा करते। 

एक बार श्री खुराना ने मुझसे कहा कि भाजपा मुझे राज्यसभा में भेजना चाहती है अत: मैं इसके लिए हां कह दूं। मैंने धन्यवाद सहित इंकार करते हुए कहा कि 1984 के बाद हमारे परिवार ने फैसला किया था कि हमारा कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं जाएगा क्योंकि किसी पार्टी से जुडऩे पर अखबार की निष्पक्षता प्रभावित होती है। मैंने उनको यह भी बताया कि अतीत में मुझे ज्ञानी जैल सिंह द्वारा भी इस तरह का प्रस्ताव मिला था परंतु मैंने उन्हें भी यही उत्तर दिया था। एक बार जब वह जम्मू मेल से आए और हम उन्हें लेने जालंधर छावनी रेलवे स्टेशन पर गए तो प्लेटफार्म छोटा होने के कारण श्री खुराना को रेल लाइनों में ही उतरना पड़ा। इसके बाद उन्होंने हमारे साथ मिल कर रेलवे प्लेटफार्म लम्बा करने का मुद्दा रेल मंत्रालय से उठाया और जालंधर छावनी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 1 का विस्तार हुआ। 

वह एक ऐसे नेता थे जिन पर समूचे राजनीतिक जीवन के दौरान कोई दाग नहीं लगा और वह ‘दिल्ली का शेर’ कहलाते थे। उन्होंने दिल्ली में भाजपा को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यही नहीं एक सच्चे पंजाबी होने के नाते उन्होंने हिन्दू-सिखों को एकजुट करने में जो योगदान दिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।—विजय कुमार 

Pardeep

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