जल का दुरुपयोग कहीं पृथ्वी पर युद्ध का कारण न बन जाए

punjabkesari.in Wednesday, Mar 30, 2016 - 11:50 PM (IST)

बेशक हम प्रकृति के अनमोल वरदान ‘जल’ को मुफ्त की चीज समझ कर फिजूल बहाने में जरा भी संकोच नहीं करते लेकिन जल ही जीवन है और इसके महत्व का उस समय पता चलता है जब हमें जोरों की प्यास लगी हो और सूखा गला तर करने के लिए पानी न मिल रहा हो। 
 
लाख समझाने के बावजूद बहुत से लोग जल का महत्व न समझते हुए इसे बेदर्दी से बहा रहे हैं और इस तथ्य की ओर से उन्होंने बिल्कुल ही आंखें मूंद रखी हैं कि जल का बेरहमी से दुरुपयोग भविष्य में धरती को बंजर बनाने वाला है और अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा। 
 
महाराष्ट के कई इलाके वर्षों से सूखे की मार झेल रहे हैं। विशेष रूप से गर्मियों में वहां पानी की भारी कमी हो जाती है। राज्य के 65 प्रतिशत गांव सूखे की लपेट में हैं और अकेले विदर्भ में ही इनकी संख्या 12,000 है। 
 
इसी क्षेत्र के किसान देश में सर्वाधिक आत्महत्याएं कर रहे हैं। अनेक गांवों में तो महिलाएं सुबह-सवेरे कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाती हैं। मानसून आने में तीन महीने से भी ज्यादा समय बाकी है परंतु भारत की वित्तीय राजधानी मुम्बई और दूसरे नगरों पुणे, नवी मुम्बई तथा ठाणे आदि में पानी की भारी कमी महसूस की जा रही है।
 
महाराष्टï सरकार राज्य में पानी की समस्या हल करने में असफल रही है जिससे विशेष रूप से राज्य के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में कृषि और जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। 7 डैम पूरी तरह सूख गए हैं, अन्य बड़े डैमों में केवल 5 प्रतिशत पानी रह गया है जबकि दरम्याने और छोटे डैमों में 3 से 6 प्रतिशत पानी ही बचा है। 
 
महाराष्ट के सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों ने पानी के लिए अपने मवेशी तक बेचने शुरू कर दिए हैं। मराठवाड़ा से कम से कम 1 लाख लोग पलायन कर चुके हैं तथा 21 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। अनेक सूखाग्रस्त इलाकों में मालगाडिय़ों से टैंकरों में पानी पहुंचाया जा रहा है और पुलिस के पहरे में बांटा जा रहा है ताकि लड़ाई-झगड़ा न हो।
 
पिछले साल सितम्बर से ही पुणे में वैकल्पिक दिनों में 600 टैंकरों से पानी की सप्लाई की जा रही है। अभी से यह हालत है तो गर्मी बढऩे के साथ-साथ इसमें और वृद्धि होती चली जाएगी। इसी को देखते हुए पुणे के मेयर प्रशांत जगताप ने सभी सरकारी विभागों, स्कूलों और मान्यता प्राप्त संस्थानों को सर्कुलर जारी करके पीने के पानी की बचत के लिए उनके यहां आने वाले लोगों को आधा गिलास ही पानी देने का अनुरोध किया है।
 
शहर के छोटे-बड़े होटलों को भी आदेश दिया गया है कि वे विजिटर्स, गैस्ट व ग्राहकों को उतना ही पानी दें जितनी उन्हें जरूरत हो। इसीलिए हाल ही में कई होटल मालिकों ने छोटे गिलास इस्तेमाल करने शुरू कर दिए हैं। पंजाब में पानी की ऐसी ही बेकद्री के संबंध में हमें एक पाठक श्री प्रेम शर्मा ने होशियारपुर से पत्र लिखा है :
 
‘‘जब से पंजाब में सरकारी ट्यूबवैल लगे हैं हर गांव में पांच-छ: घंटे  जितनी देर मोटरें चलती रहती हैं, गांवों में लगाए हुए नलों में टूटियां न होने के कारण उतनी देर तक नालियों में पानी बेकार बहता रहता है।’’
 
‘‘कभी-कभार लाऊड स्पीकर पर घोषणा की जाती है कि कोई भी टूटी व्यर्थ चलती पकड़ी जाने पर जुर्माना किया जाएगा पर कभी कोई जांच करने नहीं आता और यदि कोई व्यक्ति किसी को समझाने की कोशिश करता भी है तो वह उलटा उसके गले पड़ जाता है। अत: यदि सरकार पानी की बर्बादी रोकना चाहती है तो उसे घर-घर में यथाशीघ्र वाटर मीटर लगाने चाहिएं।’’
 
पानी की बर्बादी के संबंध में श्री शर्मा के विचार सही हैं इसीलिए जहां कहीं भी मैं जाता हूं आधा गिलास पानी ही लेता हूं और थाली में जूठन भी बिल्कुल नहीं छोड़ता तथा दूसरों को भी यही सलाह देता हूं। ऐसा करके हम काफी सीमा तक पानी की बर्बादी रोक सकते हैं। आप भी ऐसा ही करें तथा दूसरों को भी इसकी प्रेरणा दें। 
 
आज जो लोग पानी का मोल नहीं समझते उन्हें जाकर महाराष्टï्र के विदर्भ क्षेत्र के गांवों के प्यासे खेतों को देखना चाहिए जहां पानी न मिलने के कारण जगह-जगह से जमीन फट गई है और वहां के लोगों की आंखों में अपनी दुर्दशा पर बहाने के लिए आंसू भी नहीं बचे। अपने लिए ही नहीं, भावी पीढिय़ों के लिए भी जल बचाकर रखना आवश्यक है।    
   —विजय कुमार  

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