पंजाब में शांति के एक और मसीहा श्री के.पी.एस. गिल चल बसे

Friday, May 26, 2017 - 10:32 PM (IST)

पंजाब में अशांति का दौर 9 सितम्बर, 1981 को पंजाब केसरी ग्रुप के संस्थापक पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी को आतंकवादियों द्वारा शहीद किए जाने से शुरू हुआ और उसके बाद हालात लगातार बिगड़ते चले गए। 12 मई, 1984 को श्री रमेश चंद्र जी की शहादत तक पंजाब धू-धू कर जलने लगा था और इसमें अमृतसर, गुरदासपुर, पठानकोट, भटिंडा, तरनतारन आदि जिले तथा कपूरथला का मंड इलाका सर्वाधिक प्रभावित था। राज्य भर में अशांति, असुरक्षा का वातावरण पैदा हो गया और जगह-जगह एक ही समुदाय के निर्दोष लोगों की हत्याएं होने लगीं। यहां तक कि लाशें उठाने वाला भी कोई नहीं मिलता था। 

प्रदेश में पूरी तरह से आतंकवादियों का सिक्का चल रहा था। टी.वी. के एंटीना तोड़ दिए गए और लोगों ने अपने घरों के बाहर बत्तियां जलानी बंद कर दी थीं। इनके आदेश पर स्कूलों के छात्रों की पोशाकें बदल गईं। राष्ट्रीय गीत गाना बंद हो गया, गांवों के कुत्ते मार दिए गए ताकि रात को जब वे गांवों में जाएं तो कुत्ते भौंक कर लोगों को सावधान न कर सकें। गांवों में महिलाओं से बलात्कार और लूट-खसूट की घटनाएं बढ़ गईं। सड़कें और बाजार वीरान हो गए। पुलिस बल भी थानों में दुबक कर बैठे रहते और शाम 4-5 बजे ही थाने बंद हो जाया करते थे। 

इलैक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर भी ‘आतंकवादी’ तथा ‘आतंकवाद’ शब्दों का प्रयोग बंद हो गया और उसकी जगह ‘खाड़कू’ शब्द का इस्तेमाल होने लगा अखबारों में आतंकवादियों के एक-एक पृष्ठï के विज्ञापन और एक-एक पृष्ठï के फरमान छपने लगे। खालिस्तानियों की बताई हुई लाइन पर न चलने वाले पत्रकारों और राजनीतिज्ञों को ‘सोध’ देने की धमकियां दी जाने लगीं। अखबारों के अनेक सम्पादकों, पत्रकारों, छायाकारों, ड्राइवरों, हॉकरों को शहीद कर दिया गया जिसमें पंजाब केसरी ग्रुप के अनेक सदस्य भी शामिल थे। 

कुछ इस तरह के माहौल में पंजाब में 1 से 6 जून 1984 के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर हरिमंदिर साहिब में आतंकवादियों को निकालने के लिए भारतीय सेना ने ‘आप्रेशन ब्लू स्टार’ किया। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार इसमें 493 आतंकवादी और नागरिक मारे गए। पंजाब में आप्रेशन ब्लू स्टार के बाद आतंकवाद और बढ़ा तथा उस भयावह दौर में जूलियस रिबैरो को मार्च 1986 में पंजाब पुलिस का महानिदेशक नियुक्त किया गया जिन्होंने अप्रैल 1988 में इस पद से निवृत्त होने तक पंजाब में आतंकवादियों से टक्कर ली। 

अप्रैल, 1988 में श्री के.पी.एस. गिल उनकी जगह पंजाब के पुलिस महानिदेशक बनाए गए। वह 2 बार पंजाब के डी.जी.पी. रहे-पहली बार वह 1990 तक और फिर 1991 से 1995 में भारतीय पुलिस सेवा से रिटायर होने तक। अपने पहले कार्यकाल के दौरान मई, 1988 में उन्होंने हरिमंदिर साहिब में छिपे आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए आप्रेशन ‘ब्लैक थंडर’ का नेतृत्व किया। इस सफल मानी जाने वाली कार्रवाई में लगभग 67 आतंकियों ने आत्मसमर्पण किया तथा 43 आतंकवादी मुकाबले में मारे गए। श्री गिल का कहना था कि वह भारतीय सेना द्वारा ‘आप्रेशन ब्लू स्टार’ के दौरान हुई गलतियों को नहीं दोहराना चाहते। 

1992 के चुनावों के बाद 31 अगस्त, 1995 में आतंकवादियों द्वारा उनकी हत्या किए जाने तक श्री बेअंत सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने जहां पंजाब का नेतृत्व संभालने के बाद आतंकवाद का खात्मा करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं पुन: 1991 से डी.जी.पी. नियुक्त किए गए श्री गिल ने भी इसमें श्री बेअंत सिंह को पूर्ण सहयोग दिया। श्री बेअंत सिंह अपनी जान की परवाह न करते हुए सुबह-सवेरे ही गांवों के दौरे पर निकल जाते और लोगों से मिल कर उनका हौसला बढ़ाते। पंजाब में आतंकवाद के उन्मूलन में उनके योगदान के लिए ही उन्हें याद किया जाता है। स्व. बेअंत सिंह के साथ मिल कर श्री गिल ने पंजाब में आतंकवाद को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसका सबसे ज्यादा श्रेय श्री बेअंत सिंह के बाद श्री के.पी.एस. गिल को ही जाता है। 

पुलिस सेवा से निवृत्त होने के बाद भी श्री गिल विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रहे। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में उपचाराधीन थे। 26 मई दोपहर के समय उनका 82 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। बेशक वह आज हमारे बीच नहीं रहे परंतु पंजाब में शांति व्यवस्था बहाल करने में उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा। जो बादा कश थे पुराने, वो उठते जाते हैं,कहीं से आबे बका-ए-दवाम ले साकी॥—विजय कुमार

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