महबूबा मुफ्ती की केंद्र सरकार को चेतावनी और गंभीर नतीजों की धमकी

Saturday, Jul 14, 2018 - 04:05 AM (IST)

पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की बहन रूबिया सईद का 1989 में अपहरण कर लिया गया जब इनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद केंद्र सरकार में गृह मंत्री थे। रूबिया को अपहरण के कुछ दिनों बाद कुछ आतंकवादियों की रिहाई के बदले छोड़ दिया गया जिसके लिए विपक्षी दलों ने सरकार की भारी आलोचना की और इसके बाद जम्मू-कश्मीर के हालात खराब होते गए। 

बहरहाल, देश के किसी राज्य की दूसरी मुस्लिम मुख्यमंत्री बनने का श्रेय प्राप्त करने वाली महबूबा मुफ्ती ने 4 अप्रैल, 2016 को भाजपा के सहयोग से जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार बनाई परंतु कानून व्यवस्था नियंत्रित करने में असफल रहने के कारण भाजपा द्वारा पी.डी.पी. से समर्थन वापस ले लेने पर 19 जून, 2018 को उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद तेजी से बदलते घटनाक्रम में एक ओर जहां भाजपा तथा अन्य दलों द्वारा जम्मू-कश्मीर की कानून व्यवस्था की स्थिति के लिए महबूबा मुफ्ती को जिम्मेदार बताया जा रहा है वहीं स्वयं पी.डी.पी. के अंदर भी महबूबा की कार्यशैली को लेकर असहमति की आवाजें उठने लगी हैं। 

पी.डी.पी. की बदहाली के लिए महबूबा की नीतियों को जिम्मेदार करार देते हुए अनेक वरिष्ठï पी.डी.पी. नेताओं और विधायकों ने महबूबा के विरुद्ध विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया है जिनमें पूर्व मंत्री इमरान रजा अंसारी, विधायक आबिद हुसैन अंसारी, विधायक मोहम्मद अब्बास, अब्दुल मजीद, जावेद हुसैन बेग तथा एम.एल.सी. यासिर रेशी आदि शामिल हैं। बहरहाल अब जबकि पानी सिर से गुजरने की नौबत आ गई है किसी भी तरीके से अपनी पार्टी को बचाने में जुटी महबूबा ने पी.डी.पी. नेताओं का अपमान करने वाली जुंडली से मुक्ति पाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। 

इसी बीच मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद 13 जुलाई को महबूबा मुफ्ती ने श्रीनगर में एक प्रैस कांफै्रस में केंद्र को चेतावनी दी कि उनकी पार्टी को तोडऩे के केंद्र के किसी भी प्रयास के अत्यंत खतरनाक परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कि, ‘‘यदि 1987 की तरह, जब लोगों के वोटों पर डाका डाला गया था, पी.डी.पी. को तोडऩे का प्रयास हुआ और एम.यू.एफ. (मुस्लिम यूनाइटिड फ्रंट) को कुचलने के प्रयास हुए, तो इसके परिणाम बेहद खतरनाक होंगे।’’ महबूबा ने वर्ष 1987 के विधानसभा चुनाव के बाद हुए उस घटनाक्रम को याद किया जिसके चलते यूनाइटिड जेहाद कौंसिल के चेयरमैन और हिजबुल मुजाहिदीन के संस्थापक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी सलाहुद्दीन, जोकि अब पाकिस्तान में है और जे.के.एल.एफ. प्रमुख मोहम्मद यासीन मलिक उभरे थे। उन्होंने कहा कि वर्ष 1987 में लोगों के वोटों पर डाका डाला गया तो उससे एक सलाहुद्दीन और एक यासीन मलिक तैयार हुआ। 

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में यह आम धारणा है कि वर्ष 1987 के विधानसभा चुनाव में धांधली करके मोहम्मद यूसुफ शाह समेत मुस्लिम यूनाइटिड फ्रंट के तमाम नेताओं को नैशनल कांफ्रैंस और कांग्रेस ने जानबूझ कर हरवाया और बाद में यही यूसुफ शाह पी.ओ.के. जाकर सलाहुद्दीन बना और कश्मीर घाटी में 1989 से आतंकवाद के बुरे दिन शुरू हुए। इस प्रकार महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार एवं भाजपा को यह चेतावनी देने का प्रयास किया है कि पी.डी.पी. में सेंंध लगाना राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टिï से कितना खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि यदि कश्मीर घाटी के लोगों का भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था से विश्वास खत्म हो गया तो कई और सलाहुद्दीन भी पैदा हो सकते हैं तथा स्थिति और भी खराब हो जाएगी। 

मुफ्ती के उक्त बयान पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैकां नेता उमर अब्दुल्ला का कहना है कि यदि वह केंद्र सरकार को धमकी दे रही हैं तो इसका मतलब है कि वह हताश हैं। बेशक पी.डी.पी. के विधायक टूट रहे हैं परंतु यह देखना महबूबा का काम है कि ऐसा क्यों हो रहा है। भाजपा ने तो ऐसा कोई अभियान नहीं छेड़ा है और स्वयं भाजपा नेता राम माधव कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने का उनकी पार्टी का कोई इरादा नहीं है। लिहाजा अब यह महबूबा मुफ्ती पर है कि वह केंद्र सरकार को धमकियां देना छोड़ कर आत्ममंथन करें और देखें कि पार्टी में विद्रोह के स्वर क्यों उभर रहे हैं और नाराजों को कैसे राजी किया जाए। घर अपना सम्भालिए, चोर किसे नूं न आखिए।—विजय कुमार 

Pardeep

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