आतंकवादियों के विरुद्ध अब ‘सीरिया तथा मक्का के सर्वोच्च धर्म गुरुओं का फतवा’

Tuesday, Apr 05, 2016 - 11:54 PM (IST)

धर्म गुरुओं और धर्म प्रचारकों का समाज में विशेष स्थान है। इसी कारण समय-समय पर मुसलमान मुफ्ती (धर्म प्रचारक) भी उन मुद्दों पर फतवे जारी करते रहते हैं जिन्हें वे समाज के हित में उचित मानते हैं। आज जबकि विश्व के अन्य भागों में आतंकवाद जोरों पर है तथा आई.एस., लश्कर-ए-तोयबा और तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों द्वारा निर्ममतापूर्वक निर्दोषों का खून बहाया जा रहा है, इस खून-खराबे को रोकने के लिए अनेक मुसलमान मुफ्तियों द्वारा अवाज उठाई जा रही है। 
 
विश्व में मुस्लिम समुदाय की बदनामी का कारण बन रहे आई.एस. तथा अन्य इस्लामी गिरोहों के विरुद्ध गत वर्ष नवम्बर में  भारत के 1000 मुफ्तियों ने संयुक्त राष्टï्र को अब तक का सबसे बड़ा फतवा भेजा था और इसमें आई.एस. की करतूतों को गैर इस्लामी तथा गैर इंसानी बताया था। इसी शृंखला में शिया धर्म गुरु तथा आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष डा. कल्बे सादिक ने 6 दिसम्बर को लखनऊ में कहा कि : 
 
‘‘इस्लाम से आतंकवाद का कोई संबंध नहीं है। कुरान में कहा गया है कि जहां इस्लामी निजाम होगा वहां जुल्म नहीं होगा और जहां जुल्म और अत्याचार है तुम समझ लो कि वहां अल्लाह का निजाम नहीं है। इस्लाम का निजाम ही दुनिया से जुल्म का खात्मा करना है। बेगुनाहों पर जुल्म करने और उनका खून बहाने का नाम ही आतंकवाद है।’’ 
 
8 दिसम्बर 2015 को बरेली में आला हजरत दरगाह में उर्स-ए-रिजवी के आखिरी दिन लगभग 70,000 मुस्लिम धर्म प्रचारकों ने आतंकी संगठनों आई.एस., तालिबान व अल कायदा के विरुद्ध फतवे जारी करते हुए इनके विचारों को गैर इस्लामी और अमानवीय तथा इनकी गतिविधियों को इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध बताते हुए कहा कि ऐसे लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं। इस उर्स में भाग लेने आए 15 लाख अनुयायियों से आतंकवाद के विरुद्ध शपथ पर हस्ताक्षर भी करवाए गए। 
 
इसी सिलसिले में अब सीरियाई गणतंत्र के मुफ्ती आजम (सर्वोच्च इमाम) डा. अहमद बदरुद्दीन हसन ने मुम्बई के डा. अब्दुर रहमान अंजारिया के नाम 26 मार्च को लिखे पत्र में 1000 भारतीय इमामों व मुफ्तियों द्वारा इस्लामिक स्टेट के विरुद्ध जारी किए गए फतवे का समर्थन करते हुए इस्लामिक स्टेट की गतिविधियों को गैर इस्लामिक तथा अमानवीय बताते हुए उनकी भारी ङ्क्षनदा की है। 
इसी प्रकार भारत यात्रा पर आए मक्का के इमाम शेख सालह बिन मोहम्मद बिन इब्राहिम अल तालिब ने 3 अप्रैल को लखनऊ में ‘इस्लाम तथा विश्व शांति’ विषय पर आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सैमीनार में बोलते हुए कहा कि :
 
‘‘धर्म के नाम पर निर्दोषों की हत्याएं की जा रही हैं। सारा विश्व आतंकवाद से पीड़ित है। इस्लाम में आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं है। इस्लाम अमन और शांति का पैगाम देता है। कुछ मुस्लिम देशों की मस्जिदों, स्कूलों, मदरसों में आतंकी घटनाएं हो रही हैं।’’ 
 
‘‘इस्लाम व मुसलमान ही आतंकियों के सर्वाधिक शिकार हो रहे हैं। इस्लाम वह है जो हमें हजरत मोहम्मद साहब ने सिखाया है। आतंकवाद व अन्याय का समर्थन करने के लिए लाए गए बदलाव इस्लाम का हिस्सा नहीं हैं। पवित्र कुरान में अल्लाह ने कहा है कि निर्दोष की हत्या करना समूची मानवता की हत्या करने के समान है।’’
 
इसी मौके पर अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सईद मोहम्मद रबे हसनी नादवी ने कहा कि,‘‘ इस्लाम पूर्णत: आतंकवाद और इसमें संलिप्त होने वाले लोगों के विरुद्ध है।’’ अमरीकी विदेश मंत्रालय द्वारा 19 जून, 2015 को जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि 2014 में 95 देशों में हुए 13,500 आतंकी हमलों में 33,000 लोगों की जान गई जिनमें इस्लामिक स्टेट तथा अन्य आतंकवादी गिरोहों का हाथ पाया गया। 
 
इसी प्रकार अमरीका की ही एक अन्य रिपोर्ट में बतलाया गया है कि पिछले 5 वर्षों से विश्व में आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में मरने वालों में 82 से 97 प्रतिशत तक मुसलमान ही थे। इस परिप्रेक्ष्य में मक्का के इमाम शेख सालह अल तालिब तथा अन्य विद्वानों का कथन बिल्कुल सही सिद्ध होता है कि आतंकवाद का सर्वाधिक शिकार मुसलमान ही हो रहे हैं। अत: तमाम आतंकवादी गिरोहों के विरुद्ध न सिर्फ फतवे जारी करने बल्कि इन्हें लागू करवाने के लिए समस्त विश्व को एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है।
    —विजय कुमार  
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