‘घर अपना संभालिए चोर किसे नूं न आखिए’

Saturday, Oct 22, 2016 - 01:45 AM (IST)

लगभग 26 वर्षों से अशांत चले आ रहे जम्मू-कश्मीर में इस वर्ष 8 जुलाई को हिज्ब कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद चल रहे राष्ट्र विरोधी प्रदर्शनों, हड़तालों आदि को 104 दिन हो चुके हैं। इस दौरान लगभग 100 लोगों की मृत्यु तथा सैंकड़ों लोग घायल हुए हैं तथा घाटी में जनजीवन क्रियात्मक रूप से पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो कर रह गया है।

इस बीच भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा 28-29 सितम्बर की मध्य रात्रि को पाकिस्तान के साथ लगती नियंत्रण रेखा पर सर्जिकल स्ट्राइक में 40 आतंकवादियों को मार गिराने के बाद 17 अक्तूबर को बारामूला शहर में पूरी घेराबंदी करके एक साथ 700 मकानों की तलाशी का अभियान चलाया गया।

इस दौरान 44 संदिग्ध आतंकवादी पकड़े गए तथा काफी मात्रा में मोबाइल फोन एवं हथियार, आपत्तिजनक सामग्री, पाकिस्तानी और चीनी झंडे बरामद  करने के बाद भी छापेमारी का सिलसिला जारी रखा गया है। 

सुरक्षा बलों की उक्त दो सफल कार्रवाइयों के बाद अब 19 अक्तूबर को प्रदेश सरकार ने राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में कथित तौर पर शामिल विभिन्न सरकारी विभागों के 12 कर्मचारियों को सार्वजनिक सुरक्षा कानून के प्रावधानों के अंतर्गत भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देने तथा ‘जम्मू-कश्मीर सरकार कर्मचारी आचरण कानून 1971’ के नियम संख्या 14 व 21 के उल्लंघन के आरोप में नौकरी से हटा दिया है जबकि कुछ अन्य फरार हैं। 

उल्लेखनीय है कि सरकार विरोधी प्रदर्शनों में कुछ सरकारी कर्मचारियों के भी हिस्सा लेने की सूचनाओं के बाद सरकार ने कई बार इन्हें चेतावनी भी दी, फिर भी उन्होंने अपनी गतिविधियां जारी रखीं तो सरकार के निर्देश पर पुलिस ने छानबीन कर प्रदर्शनों में संलिप्त कर्मचारियों की सूची तैयार कर प्रदेश के मुख्य सचिव को सौंपी थी।  

इनमें कश्मीर वि.वि. के सहायक रजिस्ट्रार, राजस्व विभाग का पटवारी, शिक्षा विभाग, पी.एच.ई. वन व मछली पालन विभाग के कर्मचारी शामिल हैं। अधिकारियों के अनुसार ये ड्यूटी पर न जाकर हर रोज घाटी में होने वाले प्रदर्शनों में भाग लेते और युवाओं को सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी आदि के लिए उकसाने के अलावा स्वयं भी पत्थरबाजी में शामिल होते रहे हैं। 

इस संबंध में जारी आदेश में कहा गया है कि ‘‘इन कर्मचारियों को नौकरी में बनाए रखना न सिर्फ एक गलत परम्परा को जन्म देगा बल्कि यह तोड़-फोड़, विध्वंस और राष्ट विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने वालों को पुरस्कृत करने के समान होगा।’’

उल्लेखनीय है कि राज्य की गुप्तचर एजैंसियों ने ऐसे 182 कर्मचारियों की शिनाख्त की थी जिन पर घाटी में सक्रिय अलगाववादियों की मिलीभगत से लोगों को उकसाने और युवाओं को ङ्क्षहसा के लिए उकसाने तथा भारत विरोधी प्रदर्शनों को भड़काने का संदेह है। इस सूची में शामिल अन्य कर्मचारियों के रिकार्ड की जांच अभी की जा रही है। 

कहा यह भी जाता है कि सत्तारूढ़ पी.डी.पी. के कुछ मंत्रियों ने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से इस मामले में थोड़ा नर्म रवैया अपनाने और अधिकांश अधिकारियों को आरोपों के दायरे से बाहर रखने के लिए दबाव भी डाला था। 

उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी राज्य कर्मचारियों को देशविरोधी गतिविधियों में सम्मिलित पाया जा चुका है और उनमें से कुछ को तो पद से हटाया भी गया था। 1990 में देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में राज्य सरकार द्वारा हटाए गए 5 कर्मचारियों में वर्तमान शिक्षा मंत्री नईम अख्तर भी शामिल थे। 

दूसरी ओर सरकारी कर्मचारियों के संगठन इम्प्लाइज ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने 12 कर्मचारियों को बर्खास्त करने की कड़ी आलोचना करते हुए इसे ‘सरकारी दहशतगर्दी’ करार दिया है। 

इसके साथ ही बारामूला जिले में 21 अक्तूबर को भी 2 अलग-अलग अभियानों के दौरान विभिन्न स्थानों पर मारे गए छापों में लगभग 2 दर्जन संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है।

प्रदेश में हालात खराब करने में लगे अधिकारियों तथा कर्मचारियों की पहचान करके पुलिस द्वारा संदिग्धों को पकडऩे तथा छापों का सिलसिला जारी रखना एक सही पग है। 

पहले अपने घर में छिपे हुए देश विरोधी तत्वों और उनके शरणदाताओं का सफाया किए बिना सीमा पार बैठे शत्रुओं से सफलतापूर्वक कैसे निपटा जा सकता है क्योंकि किसी पर दोषारोपण करने से पूर्व अपने घर को व्यवस्थित कर लेना जरूरी होता है।                     

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