पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में ममता बनर्जी सब पर भारी

punjabkesari.in Thursday, Jul 13, 2023 - 04:47 AM (IST)

ममता बनर्जी की पार्टी ‘तृणमूल कांग्रेस’ ने 2010 के कोलकाता नगर निगम के चुनावों में बहुमत के साथ जीत दर्ज की और 2011 में राज्य विधानसभा के चुनाव में बंगाल में 34 वर्षों का वाम दलों का शासन समाप्त करके 22 मई, 2011 को ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। अपनी पार्टी की यही सफलता उन्होंने 2016 और 2021 के विधानसभा चुनावों में भी दोहराने के साथ-साथ इस दौरान 2013, 2018 और अब 2023 में पंचायत चुनावों में अपनी पार्टी का वर्चस्व कायम रखते हुए सफलता का रिकार्ड कायम किया है।

राज्य में गत 8 जून को शुरू हुई चुनाव प्रक्रिया के बाद हुई हिंसा में 36 लोगों की जान जा चुकी है। अकेले 8 जुलाई को ही पंचायत चुनाव में मतदान के दौरान हुई हिंसा में 18 लोगों की जान गई जिनमें तृणमूल कांग्रेस के 10, भाजपा के 3, कांग्रेस के 3 और लैफ्ट के 2 लोग शामिल थे। राज्य में चुनावों में देसी बमों का भी खुला इस्तेमाल किया गया जिसके बारे में सभी दल एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस ने इसे भाजपा और माकपा की साजिश बताया है।

विरोधी दलों, विशेषकर भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि इन चुनावों में इतने लोगों की मौत लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है और भाजपा ने राज्य में चुनावों के दौरान हुई हिंसा की जांच के लिए 4 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग कमेटी भी गठित की है। ममता बनर्जी ने कहा है कि बंगाल के दिल में तृणमूल राज करता है और उन्होंने इसे अपने लोगों की जीत करार देते हुए मतदाताओं को उनके जबरदस्त समर्थन और प्यार के लिए धन्यवाद दिया और चुनावों में हुई हिंसा की निंदा करते हुए प्रत्येक मृतक के परिवार को 2 लाख रुपए सहायता देने की घोषणा की है।

उल्लेखनीय है कि 2019 के चुनावों के बाद राज्य में वाम दल हाशिए पर चले गए हैं तथा भाजपा मुख्य विरोधी दल बन गई है लेकिन चुनावी हिंसा पहले की तरह ही लगातार जारी है। ममता बनर्जी द्वारा शुरू की गई विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं का इन पंचायत चुनावों में पार्टी को विजय दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा। इनमें महिलाओं को मासिक आर्थिक सहायता, स्कूली छात्राओं को साइकिल और वजीफे तथा ग्रामीण सड़कों का निर्माण आदि शामिल हैं।

लोगों पर ममता बनर्जी के निजी प्रभाव और महिला मतदाताओं पर उनकी मजबूत पकड़ का इसमें मुख्य योगदान रहा। हालांकि इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का वोट प्रतिशत कुछ कम हुआ है और भाजपा ने अपनी स्थिति में कुछ सुधार किया है, परंतु राज्य के मतदाताओं पर ममता बनर्जी का करिश्मा यथावत कायम है, जो इस बात का प्रमाण है कि मतदाता उनके साथ जुड़े हुए हैं। इस बीच कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 12 जुलाई को उन याचिकाओं को खारिज कर दिया है जिनमें मांग की गई थी कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव यकीनी बनाने के लिए संविधान और कानून के बुनियादी सिद्धांतों का पालन न करने के कारण 2023 के पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया जाए।

इन पंचायत चुनावों के परिणामों के कुछ राजनीतिक संकेत भी मिलते हैं। ये परिणाम जहां अगले वर्ष लोकसभा के चुनावों पर प्रभाव डाल सकते हैं, वहीं भाजपा विरोधी दलों के प्रस्तावित गठबंधन की रूपरेखा तय करने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। तृणमूल कांग्रेस द्वारा इस मामले में सीटों के बंटवारे को लेकर लचीला रुख अपनाने पर पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष के लोकसभा चुनाव परिणाम पिछले चुनाव परिणामों से बेहतर हो सकते हैं, परंतु यदि भाजपा विरोधी दलों  में सीटों को लेकर सहमति नहीं बनी तो फिर मुख्य मुकाबला तृणमूल कांग्रेस तथा भाजपा के बीच ही होगा। इसी वर्ष मई में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की विजय और अब पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की भारी सफलता भाजपा नेतृत्व के लिए विचार करने का विषय है। -विजय कुमार


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