मालदीव-सऊदी अरब गठजोड़ से पनपेगा आतंकवाद का एक और पालना

Sunday, Mar 12, 2017 - 10:55 PM (IST)

भारत में आम तौर पर लोग मालदीव को विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय हनीमून स्थलों और सैर-सपाटे तथा छुट्टियां मनाने के लिए एक बढिय़ा स्थान के रूप में जानते हैं। यह हिन्द महासागर में लगभग 1192 छोटे-बड़े द्वीपों पर आधारित एशिया का सबसे छोटा देश है। यहां मात्र 200 द्वीपों पर ही आबादी है। इसका 99 प्रतिशत भाग पानी और केवल 1 प्रतिशत भाग ही जमीन है और सभी द्वीप नौकाओं द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं। 

हाल ही में यह द्वीप देश अपनी पर्यावरणीय महत्ता के चलते चर्चा में आया जब यह पता चला कि सऊदी अरब के वर्तमान सम्राट सलमान बिन अब्दुल अजीज बिन सलमान अलसऊद एक महत्वपूर्ण अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के लिए इस नन्हे द्वीप देश की यात्रा पर आने वाले हैं। इसके अंतर्गत मालदीव सरकार द्वारा अपना फाकिर नामक एटोल 99 वर्ष की अवधि के लिए सऊदी अरब को लीज पर दिया जाने वाला है ताकि वह इसे एक विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में विकसित कर सके।

सऊदी अरब ने मालदीव सरकार को आश्वासन दिया है कि विचाराधीन एटोल का विकास अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त एक विश्वस्तरीय शहर के रूप में किया जाएगा जिसमें नवीनतम मैडीकल बुनियादी ढांचा, शिक्षा संस्थाएं और पर्यटन केंद्र शामिल होंगे। यह परियोजना फलीभूत होने पर खाड़ी के क्षेत्रों से हजारों की संख्या में पर्यटकों को आकॢषत करेगी। यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान सरकार ने भी इस संबंध में सहायता करने की पेशकश की है। 

हालांकि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से मालदीव का ईस्वी पूर्व 4 से ही भारत के साथ संबंध रहा है और मालदीव द्वीप समूह  का 12वीं ईस्वी में इस्लामीकरण हुआ। सन् 1887 से 1965 तक अंग्रेजों के अधीन रहने के बावजूद यह भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों संबंधी अपने रिकार्ड की आलोचना के रोष स्वरूप सन् 2016 तक  राष्ट्रमंडल का सदस्य रहा। 

ट्यूनिशिया के बाद मालदीव ने आतंकवादी संगठन आई.एस. को विदेशी लड़ाकू भेजने के मामले में सबसे बड़ा योगदान किया है और हाल ही में सऊदी अरब की वहाबी मूवमैंट ने भी मालदीव पर काफी प्रभाव डाला है। इन हालात में अनेक लोगों का यह मानना है कि यह बढ़ रहे रिश्ते भारत के लिए आर्थिक मामलों पर ध्यान की बजाय सुरक्षा की दृष्टि से चिंतित होने का बहुत बड़ा कारण हैं। 

उल्लेखनीय है कि भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताएं इस तथ्य से भी उजागर होती हैं कि सुधारीकृत मालदीव वासी न सिर्फ सीरिया बल्कि बंगलादेश तक पहुंचे। मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का रवैया भारत विरोधी है, जबकि मालदीव के भूतपूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद का रवैया भारत समर्थक था। इन हालात में यामीन चीन, पाकिस्तान या सऊदी अरब के साथ अपने रिश्ते बढ़ा रहा है। 

मालदीव पर नजर रखने वाले यह भी मानते हैं कि भारत को इस मामले में चिंतित होना जरूरी है क्योंकि मालदीव और सऊदी अरब के गठजोड़ से इस क्षेत्र में आतंकवाद का एक और पालना बन सकता है। इस समय जबकि आई.एस.आई.एस. अपना धंधा बंद करने जा रहा है अत: इसके कार्यकत्र्ताओं के अपने-अपने देशों में जाकर वहां सक्रिय होने की आशंका भी जताई जा रही है। 

हालांकि इस तरह की बातें लोगों में काफी भय पैदा करने वाली हैं परन्तु भारत को सावधान रहने की आवश्यकता है और वह रियाद और माले के नेताओं के बीच आर्थिक संबंधों को मात्र एक साइड शो मानकर इसकी उपेक्षा न करे। इस बात पर ध्यान देना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि अतीत में मालदीव में 1978 से लेकर 2008 तक शासन करने वाले तानाशाह गय्यूम के शासनकाल के दौरान मालदीव से बड़ी संख्या में युवक उच्च शिक्षा प्राप्त करने पाकिस्तान जाते और वहां से कट्टरवादी बनकर लौटते रहे हैं। 

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