भारत में जन्म दर में बड़ी गिरावट विवाह की आयु में देरी, साक्षरता मुख्य कारण

punjabkesari.in Wednesday, Oct 05, 2022 - 03:50 AM (IST)

भारत में जन्म दर (‘जनरल फर्टिलिटी रेट’ अर्थात जी.एफ.आर.) के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट ‘सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम-2020’ जारी की गई है। इसके अनुसार शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में जन्म दर में अधिक गिरावट आई है। शहरी क्षेत्रों में जहां जन्म दर में गिरावट 15.6 प्रतिशत दर्ज की गई, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 20.2 प्रतिशत रिकार्ड की गई है।  ‘जन्म दर’  (जी.एफ.आर.) से मतलब एक वर्ष में 15 से 49 आयु वर्ग के बीच की प्रति 1000 महिलाओं द्वारा जन्म देेने वाले बच्चों की संख्या से है। 

इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2008 से 2010 तक 3 वर्ष की अवधि में औसत ‘जन्म दर’ 86.1 थी जो 2018-2020 (तीन वर्ष का औसत) की अवधि के दौरान घट कर 68.7 रह गई है। जन्म दर में कमी के लिए विशेषज्ञ साक्षरता को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। उनके अनुसार भारत में पिछले एक दशक के दौरान लोगों की जन्म दर में 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ (एम्स) की प्रसूति तथा स्त्री रोग विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष डा. सुनीता मित्तल के अनुसार :

‘‘जन्म दर में जो गिरावट आई है उसने देश की जनसंख्या वृद्धि में कमी के साथ-साथ इसमें ठहराव आने का अच्छा संकेत दिया है। जन्म दर में आने वाली इस कमी का मुख्य कारण विवाह की आयु में वृद्धि, महिलाओं की साक्षरता दर में सुधार, लड़कियों के स्कूल जाने की अवधि में वृद्धि तथा आधुनिक गर्भ निरोधक उपायों का आसानी से उपलब्ध होना है।’’ हालांकि जन्म दर में कमी के चलते भारत में गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल के मामलों में वृद्धि हुई है। 

वर्ष 2021 में प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि इस समय 13 करोड़ 90 लाख से अधिक भारतीय महिलाएं और लड़कियां परिवार नियोजन के लिए गर्भनिरोधकों के आधुनिक प्रचलित तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं। इसी बीच ‘नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (5)’ अर्थात ‘एन.एफ.एच.एस. (5)’ के ताजा आंकड़ों के अनुसार भी भारत में सभी धर्मों तथा जातीय समूहों में कुल जन्म दर में कमी आई है। 

इस सर्वे के अनुसार जहां ‘नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (4)’ 2015-16 में जन्म दर 2.2 थी, वहीं ‘नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (5)’ 2019-2021 में यह घट कर 2.0 पर पहुंच गई है। इसके अनुसार जन्म दर में कमी का यह मतलब है कि अब दंपति औसतन 2 बच्चे पैदा कर रहे हैं जिससे परिवारों का आकार छोटा हुआ है। हालांकि परिवार छोटा रखने के लोगों के कुछ अपने कारण भी हैं। इसमें वित्तीय स्थिति मुख्य है। लोगों का एक वर्ग अभी भी ऐसा है जो बेटे की चाह में स्वयं को 2 बच्चों तक सीमित न रख कर 2 से अधिक बच्चे पैदा कर रहा है। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन धर्मों या सामाजिक समूहों में गरीबी अधिक तथा शिक्षा का स्तर खराब है, वहां जन्म दर अधिक है। 

‘पापुलेशन फाऊंडेशन आफ इंडिया’ की एग्जीक्यूटिव डायरैक्टर पूनम मुटरेजा का कहना है कि 50 के दशक (1951) में भारत में जन्मदर (‘टोटल फर्टिलिटी रेट’) लगभग 6 थी, अत: इस लिहाज से वर्तमान आंकड़ा बड़ी उपलब्धि है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि जो महिलाएं शिक्षित हैं, उनके बच्चे कम हैं। इसमेंं ‘मिशन परिवार विकास योजना’ ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस आंकड़े तक पहुंचने का मतलब है कि अगले तीन से चार दशक में देश की जनसंख्या स्थिर हो जाएगी। यदि ऐसा होता है तो यकीनन यह एक अच्छा बदलाव होगा। 

इस समय जबकि अधिकांश विश्व ‘जनसंख्या विस्फोट’ की समस्या का सामना कर रहा है, जनसंख्या की वृद्धि रुकने से सरकार पर लोगों को अनिवार्य जीवनोपयोगी सुविधाएं प्रदान करने का बोझ घटेगा। इससे जहां एक ओर सरकारी कोष का इस्तेमाल लोगों को अधिक सुविधाएं प्रदान करने में किया जा सकेगा वहीं अधिक सुविधाएं मिलने से लोगों के स्वास्थ्य और जीवन स्तर में सुधार होगा और वे अपनी आने वाली पीढिय़ों को भी अच्छी शिक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करके बेहतर भविष्य दे सकेंगे।—विजय कुमार


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