‘खोया जनाधार’ पाने की कोशिश में ‘महबूबा दे रहीं विवादास्पद बयान’

Friday, Apr 19, 2019 - 03:16 AM (IST)

मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती ने 1999 में ‘पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी’ (पी.डी.पी.) बनाई जिसकी अब महबूबा अध्यक्ष हैं। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने भाजपा से गठबंधन करके 1 मार्च, 2015 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तथा 7 जनवरी, 2016 को उनकी मृत्यु के बाद महबूबा ने भी भाजपा के ही सहयोग से 4 अप्रैल, 2016 को सरकार बनाई। 

परंतु कानून-व्यवस्था के मामले में विफल रहने के कारण 19 जून, 2018 को भाजपा द्वारा महबूबा सरकार से समर्थन वापस लेने और महबूबा द्वारा मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद तेजी से बदलते घटनाक्रम में पी.डी.पी. के अंदर महबूबा का विरोध होने लगा और कई नेता पार्टी छोड़ गए। भाजपा से गठबंधन जारी रहने तक तो महबूबा के तेवर ठीक-ठाक रहे परंतु गठबंधन समाप्त होते ही वह विवादास्पद बयान देने लगीं। 

25 फरवरी, 2019 को महबूबा ने कहा कि ‘‘यदि धारा 35-ए पर हमला किया गया तो मुझे नहीं पता कि कश्मीर के लोग तिरंगे की बजाय कौन सा झंडा उठा लेंगे। आग से मत खेलें और 35-ए का बाजा न बजाएं। अगर ऐसा हुआ तो आप वह देखेंगे जो 1947 से अब तक नहीं हुआ।’’ 30 मार्च को महबूबा ने फिर कहा, ‘‘यदि सरकार ने धारा-370 समाप्त की तो जम्मू-कश्मीर का भारत से रिश्ता भी समाप्त हो जाएगा क्योंकि तब यह मुस्लिम बहुल राज्य भारत का हिस्सा बना रहना पसंद नहीं करेगा।’’ 8 अप्रैल को भाजपा के घोषणापत्र में धारा-370 और 35-ए समाप्त करने के वादे पर टिप्पणी करते हुए महबूबा ने धमकी भरे अंदाज में ट्वीट किया, ‘‘यदि भाजपा ऐसा करती है तो भारतीय संविधान जम्मू-कश्मीर पर लागू ही नहीं होगा। उन्होंने यह भी लिखा कि न समझोगे तो मिट जाओगे, ऐ हिन्दोस्तान वालो, तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में।’’ 

15 अप्रैल को महबूबा ने भाजपा पर चुनाव जीतने के लिए बालाकोट जैसे हमले करने के लिए आधार तैयार करने का आरोप लगाया। और अब 17 अप्रैल को महबूबा ने दावा किया कि कश्मीर में जंगलराज है और हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि लोगों ने जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ विलय को लेकर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘‘कश्मीर में कोई कानून मौजूद नहीं है। राजमार्ग पर नागरिकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने का आदेश तानाशाही से कम नहीं था। ऐसा नहीं लगता कि हम उस भारत के साथ हैं जिसका विलय शेख अब्दुल्ला व महाराजा हरि सिंह ने किया था। वह भारत हिन्दुओं, मुसलमानों, सिखों और सबका था परंतु आज इतना उत्पीडऩ व अत्याचार हुआ है कि कश्मीरी कांपते हैं और सोचते हैं कि हमने किस भारत के साथ विलय किया था।’’ 

इस समय जबकि बड़ी संख्या में महबूबा की पार्टी के सदस्यों ने उनका साथ छोड़ दिया है, ऐसे बयान उनकी भारी बौखलाहट को ही दर्शाते हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य अलगाववादियों को खुश करना और इनकी सहायता से प्रदेश में अपना खोया हुआ आधार दोबारा पाना है। महबूबा मुफ्ती को मालूम होना चाहिए कि कश्मीर भारत का अटूट अंग है और भारत के साथ इसका विलय स्थायी है। भले ही लोकसभा चुनावों के सिलसिले में घाटी में मतदान कम हुआ है परंतु उसके पीछे घाटी में सक्रिय आतंकवादियों और अलगाववादियों का भय ही कारण है। 

लोगों का मतदान के लिए आना इस बात का प्रमाण है कि वे राष्ट्र की मुख्य धारा में जुडऩा चाहते हैं और महबूबा तथा अन्य अलगाववादी नेताओं के राष्ट्र विरोधी बयानों का उन पर कोई असर होने वाला नहीं है। महबूबा के काफिले पर पथराव और उसके अगले ही दिन त्राल कस्बे में नैशनल कांफ्रैंस के नेता अशरफ भट्ट के घर पर एक चुनावी सभा के दौरान हमले से यह बात एक बार फिर स्पष्टï हो गई है कि अलगाववादी और उनके पाले हुए आतंकवादी किसी के सगे नहीं हैं। 

लिहाजा महबूबा तथा अन्य नेताओं को अलगाववादियों की बोली बोलने के स्थान पर कश्मीर और कश्मीरियत तथा यहां के लोगों की भलाई की बात ही करनी चाहिए। देश को तोडऩे वाली बातें करने से सिवाय राज्य का नुक्सान होने के और कुछ हासिल नहीं होगा। महबूबा की नीतियां सही होतीं तो उन पर पथराव क्यों होता? फिर भी यदि वह समझती हैं कि प्रदेश के लोग उनके साथ हैं तो इस समय चल रहे चुनावों में वह अपने पक्ष में वोट डलवा कर बहुमत सिद्ध करें।—विजय कुमार  

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