महाराष्ट्र : अभी नाटक चालू आहे आगे-आगे देखिए होता है क्या

Wednesday, Jul 05, 2023 - 04:36 AM (IST)

कभी कोई चुनाव न हारने वाले शरद पवार 4 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहने के अलावा केंद्र में रक्षा और फिर कृषि मंत्री रहे लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कभी भी वह स्थान नहीं पा सके जिसके वह सर्वाधिक इच्छुक थे। राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए नरसिम्हा राव का खुले तौर पर समर्थन करने के बाद शरद पवार का प्रधानमंत्री बनने का सपना टूट गया और उन्होंने सोनिया से विद्रोह करके 1999 में अपनी अलग ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी’ (राकांपा) बना ली। शरद पवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले इनके भतीजे अजित पवार शुरू से ही राकांपा में उतार-चढ़ाव से गुजरते रहे हैं। इन्हें पहला झटका उस समय लगा जब शरद पवार ने 2004 में राकांपा द्वारा अधिक सीटें जीतने के बावजूद मुख्यमंत्री का पद कांग्रेस को देने का फैसला किया। 

तब अजित पवार ने समझा कि चाचा शरद पवार ने ऐसा शायद उन्हें मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए किया है। इसके बाद उन्हें कभी महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला। पार्टी में सत्ता के लिए टकराव 2006 में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के राजनीति में प्रवेश से और बढ़ गया। फिर 2009 में अजित पवार को एक और झटका लगा जब उनकी उपेक्षा करके ओ.बी.सी. नेता छगन भुजबल को उप-मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया। नवम्बर, 2019 में अजित पवार ने अपने चाचा के विरुद्ध विद्रोह करके देवेंद्र फडऩवीस के साथ मिलकर अल्पकालिक सरकार बनाने में सहयोग दिया। शरद पवार उस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए थे परन्तु अजित पवार उचित अवसर की प्रतीक्षा में रहे। 

इसी वर्ष 10 जून को शरद पवार द्वारा अजित पवार की बजाय अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बना देने पर यह फूट सार्वजनिक हो गई। अंतत: अजित पवार ने भाजपा के साथ मिलकर 2 जुलाई को ‘खेला’ कर दिया और अपने लगभग 30 से अधिक विधायकों के साथ शिंदे-भाजपा सरकार से हाथ मिलाकर उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए। 

अजित पवार के करीबी विधायकों को भी मंत्री पद दिए गए हैं और इस गठबंधन को उन्होंने एक नया नाम ‘महायुति गठबंधन’ दिया है। अजित पवार के इस कदम को शरद पवार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इस बीच जहां अजित पवार ने राकांपा पर अपना अधिकार जताया है, वहीं शरद पवार ने कहा है कि यह तो जनता ही बताएगी कि पार्टी किसकी है! शरद पवार ने कहा है कि अजित पवार के विद्रोह को उनका आशीर्वाद नहीं है तथा उन्होंने सांसद प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे को पार्टी से निकालने के अलावा अजित पवार समेत शिंदे सरकार में मंत्री पद की शपथ लेने वाले 9 विधायकों के विरुद्ध अयोग्यता की याचिका विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष दायर कर दी है। वहीं अजित पवार गुट ने भी जयंत पाटिल को राकांपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया है। 

शिवसेना उद्धव ठाकरे ने दावा किया है कि अजित पवार ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे की जगह लेने के लिए भाजपा का हाथ थामा है और वह जल्दी ही राज्य के मुख्यमंत्री होंगे पर भाजपा ने इन अटकलों को खारिज किया है। जहां अजित पवार को झटका देते हुए शरद पवार के विरुद्ध बगावत के 24 घंटे के भीतर ही उनके खेमे में एक सांसद और 2 विधायक लौट आए हैं, वहीं मंगलवार का दिन महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल भरा रहा। 

शिवसेना उद्धव ठाकरे के विधायक सुनील प्रभु ने जहां सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल करके महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बागी विधायकों के विरुद्ध शीघ्र फैसला लेने का आदेश देने की अपील की है, वहीं उद्धव ठाकरे ने इस घटनाक्रम को लेकर समूचे महाराष्ट्र का दौरा करने और हर जिले में जनसभाएं करने की घोषणा की है। इस बीच मंगलवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में राकांपा के संकट के बावजूद महा विकास अघाड़ी (एम.वी.ए.) की ओर से महाराष्ट्र में राज्यव्यापी यात्रा शुरू करने की घोषणा की गई जिसके बारे में शरद पवार से भेंट करके उन्हें सूचित कर दिया गया। इस बीच बुधवार को शरद पवार तथा अजित पवार दोनों ही गुटों की बैठक अलग-अलग होने जा रही है, जिसमें विरोधी विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की जाएगी। 

भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने कहा है कि ‘‘कई दल राजग में शामिल होने जा रहे हैं और इसकी शुरुआत राकांपा ने कर दी है।’’ लोगों की नजरें अब इस पर टिकी हैं कि इस टूट के बाद शरद पवार का अगला कदम क्या होगा? अजित पवार के इस फैसले का महा विकास अघाड़ी के भविष्य पर और अजित पवार के महाराष्ट्र सरकार में शामिल होने का शिंदे गुट पर क्या प्रभाव पड़ेगा तथा अजित पवार का सहारा लेकर 2024 के चुनावों में भाजपा शरद पवार के प्रभाव वाले क्षेत्रों में कितनी पैठ बना सकेगी?—विजय कुमार

Advertising