चंद खाप महापंचायतों के ‘सराहनीय निर्णय’

Thursday, Nov 05, 2015 - 02:14 AM (IST)

‘खाप’ अथवा ‘सर्वखाप’ एक सामाजिक प्रशासन प्रणाली तथा संगठन है जो पुरातन काल से हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में प्रचलित है। इसी जनतांत्रिक प्रणाली को आधार मानकर महाराजा हर्षवर्धन ने 643 ई. में ‘सर्वखाप पंचायत’ की स्थापना की थी। ‘खाप’ पंचायतें झगड़ों का कोर्ट-कचहरी से बाहर आपस में मिल-बैठ कर निपटारा करती हैं।

अतीत में खाप पंचायतों द्वारा लिए गए कुछ ‘तालिबानी’ निर्णयों की भारी आलोचना हुई परंतु बदलते माहौल के साथ अब खाप पंचायतें भी बदल रही हैं और अपनी बिरादरी के लोगों को भी बदलने के लिए प्रेरित कर रही हैं जिनमें से चंद निम्र में दर्ज हैं : 
 
ऑनर किलिग के लिए बदनाम हरियाणा के हिसार जिले में नारनिद गांव की सतरोल खाप पंचायत ने 21 अप्रैल, 2014 को अपनी बैठक में 600 से अधिक वर्ष पुरानी परम्परा त्यागते हुए अपने अधीन 42 गांवों में अंतर्जातीय विवाहों की अनुमति दे दी है। 
 
सतरोल खाप पंचायत के प्रधान श्री इंद्र सिंह के अनुसार, ‘‘आज जमाना बदल गया है। यह निर्णय हरियाणा के बिगड़े हुए लिंगानुपात के कारण लिया गया है वैसे भी आज के दौर में ‘लव रिलेशनशिप’ बहुत आम हो गई है।’’
 
यू.पी. के भैंसवाल गांव की खाप पंचायत ने 40 गांवों में रहने वालों को 14 सितम्बर, 2014 को आदेश जारी करके कहा कि ‘‘गांव वाले सिर्फ 2 बच्चे ही पैदा करें क्योंकि परिवार नियोजन करने से आने वाली पीढ़ी को अच्छी शिक्षा मिल  सकेगी और उनका विकास हो सकेगा। अधिक बच्चे पैदा होने से गरीबी व पिछड़ापन फैलता है और देश का विकास भी बाधित होता है।’’ 
 
राजस्थान में बेरवाल खाप ने 6 अप्रैल, 2015 को बेरवाल गौत्र के गांवों की पंचायतों में कन्या संतान को बढ़ावा देने के लिए कन्या भू्रण हत्या रोकने, लड़कियों की शिक्षा पर अधिक ध्यान देने, फिजूलखर्ची व झगड़े रोकने तथा कन्या पक्ष को अनावश्यक आॢथक बोझ से बचाने हेतु विवाह में दहेज के लेन-देन और डी.जे. आदि पर पाबंदी लगाने का निर्णय किया है। इस पंचायत के अंतर्गत राजस्थान के अलावा हरियाणा के 10 जिलों में बेरवाल गौत्र के लोग रहते हैं। 
 
और अब हरियाणा की ‘अखिल भारतीय रोड़ महासभा’ ने 25 अक्तूबर को लिए अपने निर्णय में विवाह समारोहों में दहेज के अलावा ‘रिंग सैरेमनी’ पर फिजूल के खर्च, डी.जे. एवं शराब परोसने तथा वर-वधू को नकद उपहार देने पर किए जाने वाले अनावश्यक खर्च के विरुद्ध अपनी बिरादरी में जागरूकता अभियान आरंभ किया है। 
 
महासभा ने ‘ब्रह्मभोज’ तथा ‘रस्म पगड़ी’ के आयोजन न करने का भी निर्णय लेते हुए चेतावनी दी गई है कि इन निर्णयों का विरोध करने वाले बिरादरी के लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। 
 
महासभा के प्रधान नसीब सिंह करसा के अनुसार, ‘‘हरियाणा में लगभग 275 रोड़ बहुल गांव हैं जबकि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी 55 गांवों में इस बिरादरी के लोग रहते हैं। लोगों द्वारा विवाह समारोहों और किसी व्यक्ति की मृत्यु पर लाखों रुपए खर्च करने की कुरीति सी चल पड़ी है।’’
 
‘‘विवाह से पहले भी रिंग सैरेमनी जैसे अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं। एक सामान्य परिवार भी सिर्फ रिंग सैरेमनी पर ही 1-2 लाख रुपए खर्च कर देता है। इसी फिजूलखर्ची के कारण जमीनें बिक रही हैं। कृषि पर लोगों की निर्भरता समाप्त होने के कारण समाज में अनेक बुराइयां उत्पन्न हो रही हैं जिन्हें दूर करने के लिए हमने यह अभियान चलाया है।’’
 
‘‘विवाह समारोहों में शराब पीकर युवक भटक जाते हैं। अत: हमने विवाह के सिलसिले में एक ही समारोह आयोजित करने का निर्णय किया है। इसी प्रकार किसी व्यक्ति की मृत्यु पर भी सभी रस्में एक ही दिन में निपटाने का निर्णय लिया गया है और महासभा इस सिलसिले में 70 बैठकें कर चुकी है।’’
 
आमतौर पर लोगों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देने की आदत होती है, लेकिन यदि कन्या भ्रूण हत्या, ऑनर किलिंग, फिजूलखर्ची और शराब के सेवन जैसी बुराइयों बारे खाप पंचायतों के उक्त निर्णयों का संबंधित पंचायतों के साथ-साथ संबंधित राज्य सरकारें व अन्य पंचायतों के लोग भी समर्थन करने लगें तो वह दिन दूर नहीं जब समाज इन कुरीतियों के चंगुल से मुक्ति प्राप्त कर सकेगा। 
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