लंदन अग्निकांड और भारत के लिए इसके सबक

Monday, Jun 26, 2017 - 12:20 AM (IST)

पश्चिम लंदन के ग्रेनफैल टावर में लगी भयंकर आग में कम से कम 79 लोगों की जान चली गई और अनेक घायल हुए। इस दुर्घटना के बाद इसकी जांच तथा प्रभावित लोगों के पुनर्वास के प्रयास ही शुरू नहीं हुए, लंदन में हाऊसिंग पॉलिसी पर पुनर्विचार भी शुरू हो गया है। 

जांचकत्र्ताओं द्वारा पता लगाने के बाद कि इमारत के महत्वपूर्ण हिस्से सेफ्टी टैस्ट में फेल हो चुके थे, पुलिस का कहना है कि वह इस भीषण अग्निकांड के मामले में हत्या का मामला दर्ज करने पर विचार कर रही है। इमारत में आग एक फ्रिज के फ्रीजर में लगी आग से फैली थी। जैसा कि पहले अनुमान लगाया जा रहा था, आग जानबूझ कर नहीं लगाई गई थी परंतु अभी भी इस बात का पता नहीं चल सका है कि आखिर इमारत में आग इतनी तेजी से क्यों फैल गई। 

विशेषज्ञों ने इससे पहले इमारत पर चढ़ाए गए आवरण की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा था कि हो सकता है कि इसकी वजह से ही 21 जून को लगी आग ने 24 मंजिला इस इमारत को इतनी तेजी से अपनी चपेट में ले लिया हो। माना जाता है कि निर्माण गुणवत्ता को सुनिश्चित बनाने पर जोर देने वाली बिल्ंिडग रिसर्च एस्टैब्लिशमैंट नामक एक पूर्व सरकारी संस्था ने इमारत पर चढ़ाए गए आवरण तथा इंसुलेशन को सुरक्षा परीक्षणों में असफल पाया था। इस बात पर ध्यान देना होगा कि आमतौर पर ऐसे मामलों में कम्पनियों पर आपराधिक आरोप नहीं लगाए जाते हैं। ग्रेनफैल बिल्डिंग में लगी आग की जांच के नतीजे सामने आने के साथ ही पता चला है कि 600 अन्य मकानों पर भी उसी तरह का आवरण चढ़ा है। अग्निशमन अधिकारियों का कहना है कि वे उन निवासियों की सुरक्षा का भरोसा नहीं दे सकते हैं। 

इस वजह से 5 कैमडन टावर ब्लॉक्स में रहने वाले लोगों को आग के खतरे को देखते हुए अपने आवास खाली करने को कहा गया है। इन टावरों पर भी उसी तरह का एल्युमिनियम का आवरण चढ़ा हुआ है जैसा कि ग्रेनफैल टावर पर था। तुरंत अग्निरोधी बंदोबस्त ठीक करने के लिए चालकोट एस्टेट में 800 परिवारों ने अपने घर खाली कर दिए। इन परिवारों को 4 सप्ताह तक अपने रिश्तेदारों या दोस्तों के पास रहने की हिदायत दी गई है, अन्यथा सरकार उन्हें रहने के लिए स्थान उपलब्ध करवा सकती है। सरकार ग्रेनफैल टावर में आग लगने के बाद बेघर हुए लोगों के पुनर्वास पर तेजी से काम कर रही है, हालांकि लोग भी इनकी मदद के लिए आगे आए हैं और इनके लिए शोज तथा अन्य माध्यमों से धन जमा किया जा रहा है।

वहां कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि लंदन वालों को अपने जरूरतमंद नगरवासियों की सहायता के लिए अतिरिक्त टैक्स जमा करने चाहिएं। इस मामले के बाद जो अन्य धारणा सामने आ रही है वह है जेनोफोबिया (विदेशी लोगों को नापसंद करना)। अनेक राजनीतिज्ञों ने कहा है कि लंदन में विदेशियों तथा रईस अंग्रेजों ने बड़ी संख्या में जो घर खरीद कर खाली छोड़ रखे हैं उन्हें अग्निकांड पीड़ितों के लिए खोल देना चाहिए। हालांकि ऐसा होगा नहीं फिर भी गरीब-अमीर के बीच बढ़ती खाई से ध्यान बंटाने में यह बात सहायक होगी। 

दूसरी ओर इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाया जा रहा है कि चूंकि लंदन में मकान तथा जमीन बेहद महंगी है, सरकार अपने लोगों को अच्छी गुणवत्ता वाले आवास उपलब्ध नहीं करवा सकी है। इस भीषण अग्निकांड के पीड़ितों की व्यथा पर जहां दुख होता है वहीं भारत में हमें अपने लिए भी इसे खतरे की घंटी समझना चाहिए। देश में इस तरह की आपदा कभी भी आ सकती है क्योंकि निर्माण संबंधी कानूनों का कम ही पालन हमारे यहां हो रहा है। इमारतों के मध्य दूरी, अग्निरोधी सामग्री तथा बिजली की सुरक्षित तारों के प्रयोग को नजरअंदाज करने के साथ-साथ अग्निशमन मानकों को भी लागू करने पर हमारे यहां कोई जोर नहीं है। दिल्ली के उपहार सिनेमा और डबवाली जैसे अग्निकांड भी शायद लोगों तथा कम्पनियों को जनता की सुरक्षा का कोई पाठ नहीं पढ़ा सके। 

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