‘कोरोना’ के दुष्परिणामों के कारण पढ़े-लिखे युवकों को भी करनी पड़ रही मजदूरी

Wednesday, Jun 10, 2020 - 10:30 AM (IST)

लॉकडाऊन में ठप्प पड़ी अर्थव्यवस्था से बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है। इस कारण जहां अनेक अच्छे-भले कारोबारी सब्जी की रेहडिय़ां लगाने को मजबूर हो गए वहीं शिक्षा प्राप्त अनेक युवा अपना और अपने परिजनों का पेट पालने की खातिर मजदूरी करने लगे हैं। आर्थिक विश्लेषकों के थिंक टैंक ‘सैंटर फॉर मॉनीटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी’ (सी.एम.आई.ई.) के अनुसार विभिन्न राज्यों में बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है। सर्वाधिक वृद्धि झारखंड में हुई जो मार्च में 8.2 से बढ़कर मई में 59.2 प्रतिशत हो गई। बिहार में यह दर 46.2, उत्तर प्रदेश में 20.8 और बंगाल में 17.4 प्रतिशत है। सी.एम.आई.ई. के अनुसार गत वर्ष इसी अवधि में 86 मिलियन नौकरियों के मुकाबले में इस वर्ष अप्रैल में वेतनभोगी नौकरियों की संख्या घट कर 68.4 मिलियन हो गई है।  

65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में सर्वाधिक बेरोजगारी पैदा हुई है जबकि 25 से 29 वर्ष आयु वर्ग के रोजगारों में भी कमी आई है जो अप्रैल में 30.8 मिलियन के मुकाबले मई में घट कर 30.5 मिलियन रह गए। सी.एम.आई.ई. के अनुसार शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। हालत यह है कि लाखों रुपए खर्च करके बी.बी.ए., एम.बी.ए. और एम.ए.बी.एड. तक की डिग्री लेने वाले युवा भी नौकरी छूट जाने के कारण मनरेगा में काम करने को मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के जुनैदपुर में चल रही मनरेगा परियोजनाओं में अनेक बी.बी.ए., एम.ए. बी.एड. एम.बी.ए. आदि की शिक्षा प्राप्त युवक मिट्टी ढो रहे हैं जिसके बदले में उन्हें लगभग 200 रुपए दिहाड़ी मिलती है। 

जुनैदपुर में लॉकडाऊन से पहले 20 मजदूर काम करते थे परन्तु अब इनकी संख्या बढ़ कर 100 हो गई है। इनमें से 20 से अधिक डिग्रीधारी हैं जिनकी लॉकडाऊन के कारण अच्छी-भली ‘व्हाइट कॉलर’ नौकरी छूट जाने के परिणामस्वरूप आॢथक हालत खराब हो गई और वे मजदूरी करने को विवश हो गए। अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह स्थिति ऐसी है कि इससे उबरने में देश को काफी समय लग जाएगा, ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि देश के युवाओं को किसी भी परिस्थिति का सामना करने और हर तरह का काम करने के लिए सक्षम बनाया जाए।     —विजय कुमार

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