दिल्ली और दिल्ली की सरकारों के दिल मिलें

Wednesday, Jun 10, 2020 - 10:32 AM (IST)

दिल्ली में कोरोना का संकट सुरसा के मुंह की तरह खुलता जा रहा है, ऐसे में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने यह फैसला कर लिया कि दिल्ली के अस्पतालों में बाहर वालों का इलाज नहीं होगा तो उसका यह फैसला दिल्ली वालों को तो अच्छा लगा लेकिन दिल्ली में लाखों लोग ऐसे भी रहते हैं और बरसों से रहते हैं, जिनके आधार-कार्ड और पहचान-पत्रों पर उनके गांवों के पते जुड़े हुए हैं। ऐसा होने से उन्हें कभी किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता। ये लोग कौन हैं? ये प्राय: वे लोग हैं, जिन्हें हम प्रवासी मजदूर कहते हैं। वंचित, गरीब, पिछड़े, अशिक्षित, मेहनतकश लोग! अगर ये अचानक कोरोना के संकट में फंस जाएं तो ये क्या करेंगे? 

क्या इलाज के लिए अपने गांव या प्रदेश में दौड़ेंगे? उनके पास इलाज के लिए तो पैसे हैं  ही नहीं (खाने के लिए भी नहीं), वे टैक्सी, बस, रेल या जहाज का किराया कहां से लाएंगे और उससे बड़ी समस्या यह कि उन्हें इलाज मिलने में तीन-चार दिन की देर भी लग सकती है। इसके अलावा जो लोग नोएडा, गुडग़ांव, गाजियाबाद वगैरह में रहते हैं और दिल्ली में काम करते हैं और दिल्ली को अपनी कर्मभूमि समझते हैं, उन्हें बीमार पडऩे पर दिल्ली में इलाज नहीं मिलना तो घोर अन्याय है। इस अन्याय के विरुद्ध दिल्ली के उच्च न्यायालय ने 2018 में एक कड़ा फैसला भी दिया था कि जिस रोगी के पास दिल्ली का मतदाता-पहचान पत्र नहीं है, उसे कई सुविधाओं से वंचित किया जाता है। 

उसे संविधान की धारा 21 का उल्लंघन बताया गया। इसीलिए दिल्ली के उप-राज्यपाल ने दिल्ली सरकार के प्रावधान को रद्द करके ठीक ही किया लेकिन इस मामले को भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच राजनीतिक फुटबाल बनाने से कहीं बेहतर यह होगा कि केंद्र सरकार तहेदिल से राज्य सरकार के साथ सहयोग करे ताकि दिल्ली में कोई भी व्यक्ति सही समय पर सही इलाज से वंचित न रह जाए। इस राष्ट्रव्यापी संकट के दौरान यदि नेता लोग एक-दूसरे की टांग खीचेंगे तो वे अपनी ही छवि गिराएंगे। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार, दोनों के फैसलों के पीछे सदाशय ही रहा है। उन्हें साथ मिलकर ही इस संकट को हराना है। जरूरी है कि दिल्ली और दिल्ली की सरकारों के दिल मिलें।    

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