अलगाववादी नेता गिलानी की सोच में देर से आया बदलाव

Wednesday, Aug 23, 2017 - 10:20 PM (IST)

1947 में अपनी स्थापना के समय से ही पाकिस्तानी शासकों ने भारत के विरुद्ध छेड़़े छद्म युद्ध की कड़ी में अपने पाले हुए आतंकियों व अलगाववादियों के जरिए कश्मीर में अशांतिफैलाने, दंगे करवाने, आतंकवाद भड़काने, गैर-मुसलमानों को यहां से भगाने, बगावत के लिए लोगों को उकसाने और ‘आजादी’ की दुहाई देने का सिलसिला जारी रखा हुआ है। 

इन आतंकवादियों तथा अलगाववादियों को पाकिस्तान से आर्थिक मदद मिलती है और भारत सरकार भी इनकी सुरक्षा पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की भारी राशि खर्च करती है। जहां सीमा के दोनों ही ओर के आम लोग जहालत और दुख भरी जिंदगी जी रहे हैं वहीं ये आतंकवादी, अलगाववादी तथा उनके पाले हुए दूसरे लोग मजे कर रहे हैं। ये स्वयं तो आलीशान मकानों में ठाठ से जीवन बिताते हैं और इनके बच्चे देश के दूसरे हिस्सों व विदेशों में सुरक्षित रह रहे हैं। ये घाटी से बाहर ही विवाह रचाते और अपनी शिक्षा-दीक्षा एवं इलाज आदि करवाते हैं परंतु घाटी में अशांति फैलाने के लिए जरूरतमंद बच्चों से पत्थरबाजी करवाते हैं। 

हालांकि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों की तुलना में अधिक सहायता देती है और बाढ़ एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान संकट की घड़ी में भारतीय सेना जान हथेली पर रख कर यहां के लोगों की सहायता करती है। इसके बावजूद ये लोग भारतीय सेना तथा पुलिस कर्मचारियों की जान के दुश्मन बने हुए हैं। जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर्यटन और श्री अमरनाथ, वैष्णो देवी आदि धर्म स्थलों की तीर्थयात्राओं पर आने वाले श्रद्धालुओं से होने वाली आय पर ही टिकी हुई है। इनसे घोड़े, पिट्ठू व पालकी वाले कमाई करते हैं। इसी आय से वे अपने परिवारों में शादियां या नए मकानों का निर्माण तथा खरीदारी करते हैं। यही नहीं इन पर्यटकों तथा तीर्थ यात्रियों से जम्मू-कश्मीर सरकार को भी करोड़ों रुपए की आय होती है। 

परन्तु राज्य के बिगड़े हुए माहौल के चलते यहां आय के सबसे बड़े स्रोत ‘पर्यटन’ का भट्ठा बैठ गया है। घाटी के होटल पर्यटन के ‘पीक सीजन’ में भी खाली पड़े हैं और मात्र 5 प्रतिशत बुकिंग ही हुई है जबकि किसी समय इस मौसम में उनमें तिल धरने को जगह नहीं मिलती थी। विशेषज्ञों के अनुसार कश्मीर में 95 प्रतिशत लोग भारत से प्रेम करते हैं और जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी कुछ समय पूर्व कहा था कि ‘‘कुछ मुट्ठी भर लोग घाटी में अशांति फैला रहे हैं जबकि यहां के 95 प्रतिशत लोग शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं...अपने लोग अपने ही तो हैं और जब वे संकट में हों तो उनकी मदद करना हमारा फर्ज है।’’ इन दिनों कश्मीर में अफरा-तफरी का माहौल है। जनजीवन पूर्णत: ठप्प है तथा निजी स्वार्थों और मसलहतों को एक ओर रख कर कश्मीर में शांति की बहाली समय की सबसे बड़ी मांग है। 

ऐसे में हुर्रियत कांफ्रैंस (जी) के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी का यह बयान राहत देने वाला है जिसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 2003 के बयान का हवाला देते हुए ‘‘इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत के जरिए कश्मीर विवाद सुलझाने’’ की ‘अपील’ की है। इसके साथ ही गिलानी ने माना कि कश्मीर 2 देशों का अधूरा हिस्सा है व भारत-पाकिस्तान को बातचीत कर इसका हल निकालने की जरूरत है। हालांकि गिलानी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब उनके दोनों बेटों और दामाद से पाकिस्तान से मिले अवैध धन के बारे में राष्ट्रीय जांच एजैंसी ‘एन.आई.ए.’ पूछताछ कर रही है, परंतु यह बयान उनके पिछले स्टैंड के विपरीत है, क्योंकि अभी तक वह श्री वाजपेयी के बयान का विरोध ही नहीं करते रहे बल्कि इसका मजाक भी उड़ाते रहे हैं। 

इस समय जबकि घाटी में जनजीवन अस्त-व्यस्त है और यहां तक कि पाकिस्तान के कब्जाए हुए कश्मीर में भी वहां के शासकों के दमन और अत्याचारों के कारण वहां आजादी के लिए प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो चुका है, गिलानी को अपने उक्त बयान पर कायम रहते हुए घाटी के हालात सुधारने में सहयोग देना चाहिए। गिलानी और उनके साथियों को यह तथ्य स्वीकार करना चाहिए कि समूचा कश्मीर भारत का है और भारत के साथ रहने में ही कश्मीर और कश्मीर के लोगों की भलाई है।—विजय कुमार

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