कर्नाटक में कांग्रेस-जद (एस) में ‘उठापटक’ और कुमारस्वामी का ‘विलाप’

Tuesday, Jul 17, 2018 - 12:31 AM (IST)

देश में गठबंधन की राजनीति की शुरूआत 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार के गठन के साथ मानी जाती है। 1 मई, 1977 को संगठन कांग्रेस, जनसंघ, भालोद व सोशलिस्ट पार्टी ने एक साथ मिल कर जनता पार्टी को जीवन प्रदान किया और संघीय स्तर पर कांग्रेस के एकछत्र शासन को पहली बार जनता पार्टी की सरकार से चुनौती मिली। वैसे इससे पूर्व उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों में मिली-जुली सरकारें बन चुकी थीं।

फिर 1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन की राजनीति को दोबारा मौका मिला। श्री वाजपेयी ने एन.डी.ए. के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया। इस गठबंधन की राजनीति का उस समय और विस्तार हुआ जब भाजपा नीत एन.डी.ए. और कांग्रेस नीत यू.पी.ए. अस्तित्व में आए। इसी का परिणाम है कि आज देश में केंद्र के अलावा 23 राज्यों में गठबंधन सरकारें चल रही हैं जिनमें मुख्यत: भाजपा और कांग्रेस का विभिन्न क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन है।

उल्लेखनीय है कि अमरीका में सिर्फ 2 मुख्य राजनीतिक दल ही हैं जबकि कुछ अन्य छोटे दल हैं और इंगलैंड में मुख्य राजनीतिक दल तो 3 ही हैं जबकि छोटे राजनीतिक दलों की संख्या एक दर्जन के लगभग है। इसके विपरीत भारत में राजनीतिक दलों की संख्या बहुत अधिक होने और सभी दलों की महत्वाकांक्षाएं भी अलग-अलग होने के कारण गठबंधन में शामिल होने के बावजूद विभिन्न घटक दलों के हितों में टकराव होते रहते हैं।

इसी कारण ज्यादातर मामलों में गठबंधन सरकारों की आयु भी कम होती है तथा कई बार गठबंधन की सरकारें टिकती नहीं। इसका नवीनतम उदाहरण हमें हाल ही में जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी. और भाजपा की गठबंधन सरकार के पतन के रूप में देखने को मिला है। वहां गठन के मात्र सवा दो साल बाद ही भाजपा द्वारा महबूबा से समर्थन वापस ले लेने के कारण पी.डी.पी. नेता महबूबा मुफ्ती ने 19 जून को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और तभी से दोनों दलों के बीच पुरानी कसमें और वादे भुला कर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है।

अब नया मामला नवगठित कर्नाटक की जद (एस) और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का है जहां 23 मई को कुमारस्वामी के नेता चुने जाने के बाद गठबंधन सहयोगी कांग्रेस और जद (एस) में उठा-पटक दिखाई देने लगी है। 28 मई को कुमारस्वामी ने कहा था कि, ‘‘मैं कांग्रेस की दया से मुख्यमंत्री बना हूं। राज्य के विकास की जिम्मेदारी मुझ पर है। मुझे मुख्यमंत्री के तौर पर काम करना है लेकिन इसके लिए मुझे कांग्रेस के नेताओं की इजाजत लेना जरूरी है। उनकी इजाजत के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता।’’5 जुलाई को बजट पेश करने के बाद कुमारस्वामी को कांग्रेस के कुछ वरिष्ठï नेताओं के विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा था।
 

अत: 14 जुलाई को एक बार फिर कुमारस्वामी ने एक कार्यक्रम में भावुक होकर कहा, ‘‘आप लोग गुलदस्ता लेकर मेरा स्वागत करने के लिए खड़े रहते हैं। आपको लगता होगा कि आपका भाई मुख्यमंत्री हो गया है। आप सभी खुश हैं पर मैं इससे खुश नहीं हूं। मैं जानता हूं कि गठबंधन का दर्द क्या होता है। मुझे भगवान शिव की तरह गठबंधन सरकार का जहर पीना पड़ रहा है।’’

कुमारस्वामी ने कहा, ‘‘कोई नहीं जानता कि ऋण माफी हेतु अधिकारियों को मनाने के लिए मुझे कितनी बाजीगरी करनी पड़ी। अब वे ‘अन्ना भाग्य स्कीम’ में 5 किलो की बजाय 7 किलो चावल चाहते हैं। मैं इसके लिए 2500 करोड़ रुपए कहां से लाऊं? टैक्स लगाने के लिए मेरी आलोचना हो रही है। अगर मैं चाहूं तो 2 घंटे में मुख्यमंत्री का पद छोड़ दूं।’’  कुमारस्वामी को आंसू पोंछते हुए देख भीड़ ने चिल्ला कर कहा, ‘‘हम आपके साथ हैं।’’

नि:संदेह गठबंधन सरकारों के मामले में बहुमत वाली पार्टी अपने हितों को देखते हुए सरकार को काम करने से रोकती है जिससे सरकार के मुखिया पर दबाव पड़ता है और कर्नाटक सरकार के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है। कर्नाटक के मामले में दोनों पाॢटयों की उठापटक बताती है कि देश में गठबंधन धर्म की रीति-नीति को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि केंद्र और राज्यों में गठबंधन सरकारें सुचारू रूप से काम कर सकें। ऐसा न होने पर तथा समय पूर्व सरकारें गिरने से राज्यों में राष्टï्रपति शासन अथवा पुन: चुनाव का ही विकल्प रह जाएगा जिससे देश और राज्य दोनों को ही नुक्सान होगा।     —विजय कुमार 

Punjab Kesari

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