‘अर्श से फर्श पर’ जेट एयरवेज

Monday, Apr 22, 2019 - 03:23 AM (IST)

‘रंक से राजा’ बनने की कहानियां तो अक्सर ही सुनाई जाती हैं परंतु उनसे महत्वपूर्ण तथा आवश्यक ‘अर्श से फर्श’ पर गिरने की त्रासदीपूर्ण कहानियां हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण अथवा प्रेरणादायक शायद वे हैं  जहां कर्मठता विनाश से बचा लेती है। 

महीने भर में जैट एयरवेज एक त्रासदी बन गई जिसने 20 हजार कर्मचारियों को बेरोजगार किया तथा हजारों परिवारों की कमाई का जरिया छीन लिया। सस्ती उड़ानों वाली स्पाइस जैट ने शुक्रवार को कहा कि उसने जैट के 100 पायलटों सहित 500 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी दी है और वह नए हवाई जहाजों के साथ नए मार्गों पर अपनी सेवाएं शुरू करेगा, परन्तु यह किसी बड़ी और पुरानी एयरवेज को बचाने का समाधान नहीं हो सकता। परंतु जैट एयरवेज कोई अकेली नहीं है। 1981 से अब तक भारत में अपना कारोबार बंद करने वाली यह पांचवीं विमानन सेवा है। इससे पहले अन्य लग्जरी विमानन कम्पनी किंगफिशर के साथ ऐसा हुआ था। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि क्यों यह आपदा बस आने का इंतजार कर रही थी। 

सलाहकार कम्पनी के.पी.एम.जी. के अनुसार साल 2020 तक भारत तीसरा तथा 2030 तक पहला बड़ा विमानन केन्द्र होगा। जहां तक आंकड़ों का सवाल है भारतीय विमानन बाजार में सब ठीक प्रतीत होता है। हवाई अड्डे यात्रियों से खचाखच भरे हैं। गत वर्ष 13.8 करोड़ यात्रियों ने उड़ान भरी जिनकी संख्या 2010 में केवल 5.1 करोड़ थी। अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों में तीव्र वृद्धि हुई है। वक्त की पाबंदी बेहतर हुई है। 600 से अधिक विमान सेवा में हैं तथा 859 को शामिल करने की योजना है। फिर भी देश की सबसे पुरानी निजी एयरलाइन्स जैट एयरवेज अतिरिक्त फंङ्क्षडग का इंतजाम न हो पाने के बाद अंतत: बंद हो गई। 

जैट एयरलाइन्स लगभग 1000 घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय मार्गों पर 115 विमान उड़ाया करती थी। कुछ वर्ष पूर्व घरेलू लीडर का पद सस्ती उड़ानें संचालित करने वाली इंडिगो एयरलाइन्स ने इससे छीन लिया था, फिर भी विमानन बाजार के सबसे अधिक 12 प्रतिशत हिस्से पर इसका ही कब्जा था। उसके पास मूल्यवान अनवरत विमान उड़ान कार्यक्रम और प्राइम एयरपोर्ट स्लॉट थे। सबसे मुनाफे वाले अंतर्राष्ट्रीय मार्गों पर भी इसका ही कब्जा था। इसके बावजूद विमानन सेवा एक बिलियन डालर से अधिक के ऋण, जैट एयरवेज में 24 प्रतिशत हिस्सेदारी  वाली ऐतिहाद एयरवेज के साथ इसकी सांझेदारी बिखर रही थी। ऐसा क्यों हुआ, इसका पहला कारण गत वर्ष विमान ईंधन की कीमतों में वृद्धि और रुपए के अवमूल्यन से इसका खर्च बढ़ जाना था। 

अब यह कहा जा रहा है कि कम्पनी के वित्तीय स्वास्थ्य पर पिछले कुछ समय से प्रश्रचिन्ह लगा हुआ था और  इसके ऑडिट भी नहीं किए गए थे। वास्तव में अब नरेश गोयल के निजी अकाऊंटों के फॉरेंसिक ऑडिट की बड़े जोरों से मांग की जा रही है। इसके पश्चात  गोयल की ओर से समय और खरीददार रहते कम्पनी को न बेचने का निर्णय एक दूसरा कारण था और भी अधिक महत्वपूर्ण विभिन्न बैंकों द्वारा (मुख्य रूप से स्टेट बैंक) ऋण दिए जाने पर प्रश्र उठाए जा रहे हैं कि आखिरकार एक घाटा उठा रही कम्पनी पर क्यों और किस प्रकार ऋणों की बरसात होती रही जिसकी जांच अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। 

विमान सेवाओं को सस्ते दाम पर ईंधन न देने की सरकारी नीति भी किसी विमान सेवा के जीवित रहने के रास्ते में बड़ी बाधा है। जहां 1991 में आर्थिक उदारीकरण ने काफी हद तक सरकारी लाइसैंस राज और सहचर पूंजीवाद को कम कर दिया था परन्तु अब भी सिविल एविएशन में यह मौजूद है जिसका उदाहरण सरकार के स्वामित्व वाली विमान सेवा एयर इंडिया है जिसमें न तो घाटे का डर है (क्योंकि सरकार की गहरी जेब इसके लिए हरदम खुली है) और सभी सैक्टरों में इसको उड़ानों की इजाजत है। सच्चाई तो यह है कि भारतीय विमानन कारोबार बेहद कम मुनाफे, अधिक करों, बेहद अस्थिर दाम वाले विमानन ईंधन तथा तेजी से बढ़ती इंफ्रास्ट्रक्चर कीमतों का सामना कर रहा है। 

विशेषज्ञों की मानें तो यह मुनाफारहित विकास है जिसमें ताकतवर ही जिंदा रह सकता है और भारतीय विमानन बाजार के लिए माहौल बेहद विषैला बन चुका है। हवाई अड्डों पर यात्रियों की बढ़ती संख्या का भारी दबाव है और कर्मचारियों की कमी भी है। इतना ही नहीं एयर सेफ्टी के मामले में भी भारत बहुत पीछे है। जैट एयरवेज के बंद होने से भारतीय यात्री विमानों में 20 प्रतिशत की अचानक कमी से किराए बढ़ेंगे। यदि एयरलाइन्स और विमान नहीं ला सकीं तो घरेलू किराए बढऩे से हवाई यात्रियों की संख्या कम होगी। भारी-भरकम एयरपोर्ट टैक्स, सभी सरकारों की पुरानी नीतियों के कारण अलग-अलग उड़ान सैक्टरों की खुली बोली न होना तथा विमानन सेवाओं को अपने तौर पर विस्तार न करने देना मुनाफे पर तो असर डालेगा ही, विदेशी निवेशक भी निवेश से कतराएंगे और अगर ऐसी त्रासदियों की पुनरावृत्ति से बचना है तो भारतीय विमानन क्षेत्र में कुछ बड़े सुधार लाना बेहद आवश्यक हो गया है।

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