चुनावों के बाद जोड़-तोड़ से सरकार बनाने की बजाय पहले ही समविचारक दलों से गठबंधन करना बेहतर

punjabkesari.in Tuesday, Jan 25, 2022 - 05:56 AM (IST)

1977 में अपातकाल की समाप्ति के बाद ‘जनसंघ’ के अन्य दलों के साथ विलय से ‘जनता पार्टी’ बनी, जिसने उसी वर्ष हुए आम चुनावों में केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को हराया, परंतु तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद 1980 में ‘जनता पार्टी’ टूट गई और कई दल अस्तित्व में आए, जिनमें से ‘भारतीय जनता पार्टी’ (भाजपा) भी एक थी। 

यद्यपि शुरूआत में भाजपा असफल रही और 1984 के आम चुनावों में केवल 2 लोकसभा सीटें ही जीत पाई, परंतु कुछ राज्यों में चुनाव जीत कर और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करके 1996 में संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी तथा 1998 के आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’ (राजग) बना।

1998 से 2004 के बीच प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन सहयोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई और श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए लगभग 24 दलों तक पहुंचा दिया। 

श्री वाजपेयी ने अपने किसी भी गठबंधन सहयोगी को किसी शिकायत का मौका नहीं दिया, परंतु उनके सक्रिय राजनीति से हटने के बाद से अब तक शिवसेना सहित इसके कई सहयोगी असहमति के चलते इसे छोड़ गए। 2019 में महाराष्ट्र के चुनावों के बाद भाजपा तथा शिवसेना में मुख्यमंत्री के प्रश्र पर सहमति न बन पाने के कारण इनका 25 वर्ष से भी अधिक पुराना गठबंधन टूट गया और शिवसेना ने राकांपा एवं कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में ‘महा विकास अघाड़ी’ सरकार बना ली। 

तब शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने कहा था कि ‘‘शिवसेना के 50 वर्षों में 25 वर्ष गठबंधन की वजह से बेकार हो गए।’’ और अब एक बार फिर उद्धव ठाकरे ने यही बात दोहराते हुए 23 जनवरी को कहा,‘‘आज भाजपा नीत ‘राजग’ सिकुड़ गया है क्योंकि अकाली दल व शिवसेना जैसे पुराने सहयोगी इससे अलग हो गए हैं। भाजपा जब राजनीतिक दृष्टि से कमजोर थी, तब इसने अनेक क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता किया।’’ 

उद्धव ठाकरे ने भाजपा पर राजनीतिक सुविधा के अनुसार ङ्क्षहदुत्व का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘शिवसेना ने भाजपा से गठजोड़ किया था क्योंकि वह ङ्क्षहदुत्व के लिए सत्ता चाहती थी जबकि भाजपा का अवसरवादी ङ्क्षहदुत्व बस सत्ता के लिए है। इसलिए शिवसेना ने हिंदुत्व को नहीं बल्कि भाजपा को छोड़ दिया। शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन में जो 25 साल बिताए वे बर्बाद चले गए।’’ भाजपा के बाद देश के दूसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस की स्थिति भी कोई बहुत बढिय़ा नहीं है, जो दर्जनों बार टूटन का शिकार होने और गठबंधन सहयोगियों की नाराजगी के चलते मात्र पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि में ही सिमट कर रह गई है। 

किसी समय देश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले वामदल भी हाशिए पर जा चुके हैं। जिस बंगाल पर वामदलों ने 34 वर्षों तक शासन किया था, वहां भी पिछले 11 वर्षों से ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस सत्ता पर कब्जा जमाए हुए है। इस समय जबकि दिल्ली की सत्ता पर कब्जा करने के बाद ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में अपने पांव पसारने की कोशिश कर रही है और सभी दलों के नाराज नेता एक दल से दूसरे दल में आ-जा रहे हैं, भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही अपने साथ समविचारक दलों को जोड़ कर अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाना चाहिए। ऐसा करके ये दोनों ही पाॢटयां देश को एक मजबूत सत्ता पक्ष और मजबूत विपक्ष उपलब्ध करवा कर बेहतर शासन व्यवस्था यकीनी बना सकती हैं। 

उद्धव ठाकरे ने अत्यंत दुखी हृदय से उक्त बातें कही हैं जिन पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए। चुनावों के बाद विभिन्न दलों के साथ जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने के प्रयास करने की बजाय चुनावों से पहले ही समविचारक दलों के साथ गठबंधन करके अपना दायरा बढ़ाना बेहतर है।—विजय कुमार


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