इसरो के नए उपग्रह ‘हाइसइस’ से पृथ्वी के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना होगा आसान

Friday, Nov 30, 2018 - 04:46 AM (IST)

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह डा. विक्रम साराभाई के अथक प्रयासों से 15 अगस्त, 1969 को स्वतंत्रता दिवस पर गठित ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) के वैज्ञानिकों ने अपनी मेहनत से भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी देश बना दिया है। यह आज विश्व के सफलतम अंतरिक्ष संगठनों में से एक बन गया है तथा अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में नित्य नई उपलब्धियां प्राप्त कर रहा है जिनमें से चंद निम्र हैं : 

15 फरवरी, 2017 को इसरो ने 3 भारतीय सहित 104 उपग्रह लांच कर रिकार्ड बनाया। इतनी बड़ी संख्या में एक साथ किसी भी अंतरिक्ष एजैंसी ने उपग्रह लांच नहीं किए। 23 जून को इसरो ने 31 उपग्रह लांच किए जिनमें से 29 विदेशी थे। 12 जनवरी, 2018 को इसने 28 विदेशी सहित 31 उपग्रह लांच किए। 

14 नवम्बर को इसरो ने अपने अत्याधुनिक संचार उपग्रह ‘जीसैट-29’ का सफल प्रक्षेपण करके नया कीर्तिमान बनाया है। और अब इसरो ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से वीरवार को पी.एस.एल.वी.-सी 43 राकेट से स्वदेशी हाईपर स्पैक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट (हाइसइस) उपग्रह लांच किया। इसरो प्रमुख डा. के. सिवन ने इसे अब तक का देश का सबसे ताकतवर इमेजिंग उपग्रह बताया है। इसके साथ 8 देशों अमरीका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, कोलम्बिया, फिनलैंड, मलेशिया, नीदरलैंड और स्पेन के 30 अन्य उपग्रह (1 माइक्रो और 29 नैनो) भी छोड़े गए। पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (पी.एस.एल.वी.) की इस साल में यह छठी उड़ान थी। डा. सिवन के अनुसार यह मिशन इसरो के सबसे लम्बे मिशनों में से एक था। 

‘हाइसइस’ धरती की सतह का अध्ययन करने के साथ ‘चुम्बकीय क्षेत्र’ (मैग्नेटिक फील्ड) पर भी नजर रखेगा तथा इसे रणनीतिक उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जाएगा। पी.एस.एल.वी. तीसरी पीढ़ी का 4 चरण का लांचिंग व्हीकल है जिसमें ठोस ईंधन इस्तेमाल किया जाता है। ‘हाइसइस’ का वजन 380 किलो व 30 अन्य उपग्रहों का वजन 261.5 किलो है। उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए अन्य देशों ने इसरो के व्यावसायिक उपक्रम ‘एंट्रिक्स कार्पोरेशन लिमिटेड’ से करार किया है। डा. के. सिवन के अनुसार ‘हाइसइस’ को पूरी तरह देश में ही बनाया गया है। यह इसलिए विशेष है क्योंकि यह सूक्ष्मता (सुपर शार्प आई) से चीजों पर नजर रखेगा। यह तकनीक कुछ ही देशों के पास है। 

कई देश हाईपर स्पैक्ट्रल कैमरा अंतरिक्ष में भेजने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उससे नतीजे मिलना आसान नहीं है। हाईपर स्पैक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट (हाइसइस) का प्राथमिक लक्ष्य पृथ्वी की सतह का अध्ययन करना है। इस उपग्रह का उद्देश्य पृथ्वी की सतह के साथ इलैक्ट्रोमैग्नेटिक स्पैक्ट्रम में इंफ्रारैड और शार्ट वेव इंफ्रारैड फील्ड का अध्ययन करना है। इस उपग्रह से धरती के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना आसान हो जाएगा क्योंकि लगभग धरती से 630 कि.मी. दूर अंतरिक्ष से पृथ्वी पर मौजूद वस्तुओं के 55 विभिन्न रंगों की पहचान आसानी से की जा सकेगी। हाईपर स्पैक्ट्रल इमेजिंग या हाईस्पेक्स इमेजिंग की एक खूबी यह भी है कि यह डिजीटल इमेजिंग और स्पैक्ट्रोस्कोपी की शक्ति को जोड़ती है। 

हाईस्पेक्स इमेजिंग अंतरिक्ष से एक दृश्य के हर पिक्सल के स्पैक्ट्रम को पढऩे के अलावा पृथ्वी पर वस्तुओं, सामग्री या प्रक्रियाओं की अलग पहचान भी करती है। इससे प्रदूषण पर नजर रखने के अलावा पर्यावरण सर्वेक्षण, फसलों के लिए उपयोगी जमीन का आकलन, तेल और खनिज पदार्थों की खानों की खोज आसान हो जाएगी। नि:संदेह अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत तथा ‘इसरो’ की उक्त सफलता ईष्र्याजनक है। ‘इसरो’ ने यह प्रक्षेपण करके भारत के गौरव में विश्व व्यापी वृद्धि की है जिसके लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक साधुवाद के पात्र हैं।—विजय कुमार 

Pardeep

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