दूध की कमी पूरी करने के लिए ‘राष्ट्रीय गोपाल रत्न’ बूटा सिंह का अमूल्य सुझाव

punjabkesari.in Tuesday, Apr 11, 2023 - 03:23 AM (IST)

देश में इस समय भूख के कारण गायें पेट भरने के लिए कूड़े में फैंका कचरा, पॉलीथीन तथा अन्य अखाद्य वस्तुएं भोजन समझ कर खा लेतीे हैं जिसका उनके शरीर पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे न सिर्फ उनके शरीर में संक्रमण हो जाता है बल्कि न खाने योग्य पदार्थ खाने वाली गायों के दूध की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है तथा प्रदूषित दूध और उससे बने उत्पादों का सेवन करने से लोगों को लाभ की बजाय हानि होती है और वे बीमार हो जाते हैं। 

हालांकि किसी समय भारत विश्व में सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश था लेकिन अब पिछले कुछ समय के दौरान अनेक कारणों से देश में दूध का उत्पादन ठहराव पर आ गया है जबकि विभिन्न कम्पनियों द्वारा दूध से आइसक्रीम, दही तथा अन्य उत्पाद बनाना शुरू कर देने के कारण इसकी मांग बढ़ गई है। इसी कारण विभिन्न दूध उत्पादक सोसायटियां दूध की कीमतों में लगातार वृद्धि कर रही हैं। हाल के समय में जितनी तेजी से दूध की कीमत बढ़ी है उतनी तेजी से पिछले 6-7 वर्षों में नहीं बढ़ी थी। पिछले 10 महीनों के दौरान दूध उत्पादक सोसायटियां दूध की कीमतेंं 9 रुपए प्रति लीटर बढ़ा चुकी हैं। 

इस तरह के माहौल के बीच जिला फिरोजपुर के ‘धीरा पत्तरा’ गांव की ‘फार्मर्स हैल्प सोसायटी’ के श्री बूटा सिंह भुल्लर से हमारी मुलाकात हुई जिन्हें गौ संवर्धन में उनके योगदान के लिए 1 जून, 2017 को केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय गोपाल रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इन्होंने बताया कि देसी गायों की नस्ल में सुधार बारे विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए इन्हें व इनकी सोसायटी के एक अन्य सदस्य जगदेव  समरा को पंजाब सरकार ने अपने 4 अधिकारियों के साथ 2016 में ब्राजील भेजा था। 

श्री बूटा सिंह भुल्लर के अनुसार लगभग 130 वर्ष पूर्व ब्राजील के किसान भारतीय (देसी) गिर तथा अन्य नस्ल की गायें लेकर गए थे जो अब वहां बेहतरीन नस्ल सुधार के कारण रोजाना लगभग 70 लीटर तक दूध दे रही हैं। इसके विपरीत भारत में देसी नस्ल की गायें एक दिन में औसतन 8 से 10  लीटर दूध ही दे पाती हैं और बहुत कम गायें ही 20 लीटर दैनिक तक दूध देती हैं। पंजाब सरकार ने वहां से उन्नत (गिर) नस्ल के सांडों का सीमन मंगवाया था जिसे कुछ गौ पालकों में बांटने पर अच्छेे नतीजे मिले हैं। 

उन्होंने बताया कि यदि भारतीय देसी गायों का वहां से मंगवाए हुए उन्नत नस्ल के देसी (गिर) सांडों के सीमन से गर्भाधान कराया जाए तो भारतीय देसी गायें भी ब्राजील की गिर नस्ल की गायों की भांति अपने जीवनकाल में 17-18 बार गर्भ धारण करके उतनी ही मात्रा में दूध और बच्चे दे सकती हैं। उनका यह भी कहना है कि वर्तमान में पंजाब में पाली जाने वाली विदेशी नस्ल की गायों के तीन-चार बार गर्भ धारण के बाद ही बांझ हो जाने के कारण उनके मालिक उन्हें बेसहारा छोड़ देते हैं। 

परंतु लम्बी अवधि तक बांझ होने से भी बची रहने के कारण गौ पालकों द्वारा इन्हें बेसहारा छोड़ देने की संभावना बहुत कम हो जाएगी। इससे लोगों को सड़कों पर बेसहारा घूमने और सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनने वाले बेसहारा गौवंश की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी। श्री भुल्लर का यह भी कहना है कि समय बीतने के साथ-साथ विदेशी गिर सांडों के सीमन से उसी नस्ल के बछड़े पैदा होने के कारण विदेशी सीमन के आयात में भी कमी आनी शुरू हो जाएगी। 

ब्राजील से मंगवाए हुए वीर्य से देसी गायों को गर्भ धारण कराने से दूध की कमी दूर होने के अलावा इसकी क्वालिटी और फैट में भी वृद्धि होगी। इससे किसानों को भी फायदा होगा। दूध उत्पादक किसान और सोसायटियां अधिक स्वास्थ्यकर कैल्शियम युक्त दूध व अन्य उत्पाद बाजार में दे सकेंगी। उन्नत नस्ल की इन देसी गायों के मूत्र व गोबर से जमीन की उर्वरता भी बढ़ेगी। 

श्री भुल्लर का कहना है कि गाय बचेगी तो देश बचेगा। ऐसी उन्नत नस्ल की दो-चार गायें पाल लेने से ही किसानों की आय काफी बढ़ सकती है। इससे देश में प्राकृतिक आपदाओं से फसलों के नष्ट होने पर किसानों की  सरकार पर निर्भरता भी कम होगी व उन्हें मुआवजे के लिए सरकार का मुंह नहीं देखना पड़ेगा, जैसे कि इस समय पंजाब में गंदम की फसल नष्ट होने के दृष्टिगत राज्य के किसान सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं। 

देश में दूध का उत्पादन बढ़ाने और गौवंश की रक्षा के लिए श्री भुल्लर का सुझाव अच्छा है। इस पर अमल करने से जहां देश में दूध की कमी दूर हो सकेगी, वहीं इसकी कीमतों में भी कमी आएगी तथा लोगों को बेहतर गुणवत्ता का दूध और दूध से बने उत्पाद प्राप्त होंगे।-विजय कुमार


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