प्रेरणा स्रोत और दया के सागर जैन मुनि तरुण सागर जी का महानिर्वाण

Sunday, Sep 02, 2018 - 03:16 AM (IST)

अपने कड़वे और कल्याणकारी प्रवचनों के लिए विख्यात दिगम्बर जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज का शनिवार सुबह लगभग 3.18 बजे दिल्ली में शाहदरा के कृष्णा नगर में 51 वर्ष की आयु में देवलोक गमन हो गया। 

महाराज श्री को 20 दिन पहले पीलिया हुआ था। वीरवार 30 अगस्त को मुनिश्री को अस्पताल से छुट्टïी के बाद कृष्णानगर के राधेपुरी स्थित चातुर्मास स्थल पर लाया गया जहां उनका पहले से ही चातुर्मास का कार्यक्रम तय था। मुनिश्री की देखरेख कर रहे ब्रह्मïचारी सतीश के अनुसार औषधियां देने के बाद भी उनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा था और उनकी गंभीर हालत को देखते हुए दिल्ली में उनके समाधि मरण की तैयारियां शुरू हो गई थीं। 

इनके प्रवचनों की शृंखलाबद्ध पुस्तकें भारत की 14 भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं जिनकी 7 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। वह अपने प्रवचनों को ‘कड़वे प्रवचन’ कहते थे जो जीवन को उत्तम बनाने के लिए औषधि का कार्य करने वाले हैं। इन कड़वे प्रवचनों में भी एक प्रकार का मधुर रस है जिस कारण लोग उनको सुनने के लिए आतुर रहते थे। अपने प्रवचनों में महाराज श्री ने अंधविश्वासों, मान्यताओं और गलत आचरण की कटु आलोचना की जिसके कारण इनके श्रद्धालुओं ने इन्हें ‘क्रांतिकारी संत’ की उपाधि दी। 26 जून, 1967 को मध्य प्रदेश के दमोह जिले के गुहजी गांव में जन्मे जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज का वास्तविक नाम पवन कुमार जैन है। इन्होंने 14 वर्ष की आयु में 8 मार्च, 1981 को घर छोड़ दिया था। 

श्री तरुण सागर जी महाराज परिवार, समाज और राजनीति से जुड़े देश-विदेश के महत्वपूर्ण और ज्वलंत मुद्दों पर बेबाक राय देते थे। उन्हें अनेक राज्यों की विधानसभाओं में भी प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया जाता था। मध्य प्रदेश और गुजरात सरकारों द्वारा राजकीय अतिथि घोषित महाराज श्री के कड़वे प्रवचनों के 4 नमूने निम्र में दर्ज हैं :

प्याज और ब्याज : पसीना बहाना सीखिए। बिना पसीना बहाए जो हासिल होता है, वह पाप की कमाई है। ब्याज मत खाइए। ब्याज पाप की कमाई है, क्योंकि इसमें पसीना नहीं बहाना पड़ता। लेकिन हम बड़े चतुर लोग हैं, आज हमने प्याज खाना तो छोड़ दिया पर ब्याज खाना जारी है। 

क्रोध का खानदान : क्रोध का अपना पूरा खानदान है। क्रोध की एक लाडली बहन है-जिद। वह हमेशा क्रोध के साथ-साथ रहती है। क्रोध की पत्नी है-ङ्क्षहसा। वह पीछे छिपी रहती है, लेकिन कभी-कभी आवाज सुनकर बाहर आ जाती है। क्रोध का बड़ा भाई है अहंकार। क्रोध का बाप भी है, जिससे वह डरता है। उसका नाम है-भय। निंदा और चुगली क्रोध की बेटियां हैं। एक मुंह के पास रहेगी, तो दूसरी कान के पास। बैर बेटा है। ईष्र्या इस खानदान की नकचढ़ी बहू है। इस परिवार में पोती है घृणा जो सदा नाक के पास रहती है। नाक-भौं सिकोडऩा काम है इसका। उपेक्षा क्रोध की मां है। 

सत्कर्म जरूर करना : अपने होश-हवास में कुछ ऐसे सत्कर्म जरूर कर लेना कि मृत्यु के बाद तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए किसी और को भगवान से प्रार्थना न करनी पड़े, क्योंकि औरों के द्वारा की गई प्रार्थनाएं तुम्हारे बिल्कुल भी काम आने वाली नहीं हैं। क्या तुम्हें पता नहीं कि अपना किया हुआ और अपना दिया हुआ ही काम आता है? आज मन की भूमि पर ऐसे बीज मत बोना कि कल उनकी फसल काटते वक्त आंसू बहाने पड़ें। 

कुत्ते का काटना और चाटना : कुत्ता-कल्चर समाज में तेजी से बढ़ रहा है। पहले लोग गाय पालते थे, अब कुत्ते पालते हैं। एक समय हमारे घर के बाहर लिखा होता था, ‘‘अतिथि देवो भव:।’’ फिर लिखा जाने लगा, ‘शुभ-लाभ’। समय आगे बढ़ा, तो इसके बाद लिखा गया, ‘‘वैलकम’’ और अब लिखा जाता है,-‘‘कुत्ते से सावधान।’’ यह सांस्कृतिक पतन है। कुत्ते को रोटी देना, मगर उससे प्रेम मत करना। प्रेम करोगे तो मुंह चाटेगा, लाठी मारोगे तो पैर काटेगा, उसका चाटना और काटना दोनों बुरे हैं। वर्ष 2016 में जब इन्होंने हरियाणा विधानसभा को संबोधित किया तो राजनीतिक गलियारों में कई दिनों तक इसकी चर्चा चलती रही। महाराज श्री की वाणी में जितना ओज और तेज था उतने ही वह लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत, दया एवं करुणा के सागर थे। जैन समाज ही नहीं समूचे देश और संत समाज के लिए उनका निर्वाण एक शून्य पैदा कर गया है जो कभी भरा नहीं जा सकेगा।—विजय कुमार 

Pardeep

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