‘नशों से तबाह’ हो रहा राजधानी दिल्ली में ‘मासूम बचपन’

Saturday, Mar 18, 2017 - 11:58 PM (IST)

‘बलात्कारों की राजधानी’ के साथ-साथ दिल्ली नशों की राजधानी भी बनती जा रही है। यहां वयस्क नशेडिय़ों की बात तो एक ओर, 9-9 वर्ष तक की छोटी आयु के बच्चे भी नशों की चपेट में आ रहे हैं। 

कुछ समय पूर्व ‘दिल्ली राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी’ द्वारा करवाए गए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि यहां सड़कों, रेलवे स्टेशनों के प्लेटफार्मों और बस स्टैंडों आदि पर रहने वाले 7 से 18 वर्ष आयु वर्ग तक के 70,000 से अधिक बच्चे तरह-तरह के नशों की लत के शिकार हो चुके हैं।

सर्वेक्षण में शामिल सर्वाधिक 20,000 बच्चों को तम्बाकू, 9450 को अल्कोहल, 7910 को सूंघ कर लेने वाले नशे (इन्हेलैंट), 5600 को भांग-गांजा और 840 बच्चों को हैरोइन जैसे नशे की लत का शिकार पाया गया। अनेक बच्चे ‘फ्लूड’ पीने के आदी पाए गए। अपने परिवारों या रिश्तेदारों के साथ रहने वाले बच्चों में से 20 प्रतिशत के लगभग अपने परिवारों को सहारा देने व रोजी-रोटी कमाने के लिए मेहनत-मजदूरी या छोटे-मोटे काम-धंधे करते हैं। 

अपने परिवारों के अलावा सड़क और रेलवे प्लेटफार्मों तथा रेलगाडिय़ों के खाली डिब्बों आदि में रहने वाले 30 प्रतिशत के लगभग बच्चों ने नशे की लत के शिकार हो जाने के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी है। देश के विभिन्न भागों से यहां आकर अपने माता-पिता से बिछुडऩे और मानव तस्कर गिरोहों द्वारा यहां लाए गए ऐसे बदनसीब बच्चे भी इनमें शामिल हैं जिनका फिर कभी भी अपने माता-पिता से पुनर्मिलन नहीं हो सका और जो समाज विरोधी गिरोहों को बेच दिए गए हैं।

चूंकि किसी को भी अपराध की दुनिया में धकेलने का सबसे आसान तरीका उसे नशे की लत लगा देना ही माना जाता है, अत: इनसे अपना काम बेहतर ढंग से करवाने के लिए ये गिरोह उन्हें नशों की लत लगाने और तरह-तरह के समाज विरोधी कार्यों का प्रशिक्षण देकर इस धंधे में कब धकेल देते हैं और ये कब अपराधी गिरोहों का हिस्सा बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता। 

अपराधी गिरोहों के हत्थे चढऩे के बाद ये उनके इशारों पर चोरी, जेबतराशी, उठाईगिरी, नशीली दवाओं के कोरियर और यहां तक कि पेशेवर भिखमंगे  बन कर अपने मालिकों को कमाई करके लाकर देने के लिए विवश हो जाते हैं और जीवन भर उनके जाल से बाहर निकल नहीं पाते। नशे की लत और कुसंग के कारण ये आपस में गलत काम भी करते हैं जिस कारण एड्स और हैपेटाइटिस बी के अलावा अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियों, पाचन प्रणाली के विकार, शरीर के विभिन्न भागों में सूजन, स्मृतिलोप के शिकार हो कर अकाल मृत्यु का ग्रास बन रहे हैं। 

बच्चों में बढ़ रही नशे की लत को देखते हुए गत वर्ष 14 दिसम्बर को एन.जी.ओ. ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ने सुप्रीम कोर्ट से देश में नशेडिय़ों के पुनर्वास एवं नशा छुड़ाओ केन्द्रों में विशेष रूप से नशों के शिकार बच्चों के लिए अलग व्यवस्था करने के निर्देश देने का अनुरोध किया था। इस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर और न्यायमूॢत डी.वाई. चंद्रचूड़ ने केन्द्र सरकार को इसके लिए एक राष्ट्रीय सर्वे करवाने का आदेश देने के अलावा स्कूली पाठ्यक्रमों में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी देने पर भी बल दिया था। 

अब दिल्ली में लगातार बढ़ रहे नशे के कारोबार और इसकी चपेट में आने वाले बच्चों की लगातार बढ़ रही संख्या को देखते हुए दिल्ली के बड़े अस्पतालों में ‘जुवेनाइल ड्रग रिहैब्लिटेशन सैंटर’ खोलने की योजना बनाई जा रही है जहां प्रत्येक बच्चे के लिए एक अटैंडैंट की व्यवस्था भी की जाएगी। यह योजना कब फलीभूत होगी, इस बारे कहना अभी मुश्किल है पर बच्चों के भविष्य को देखते हुए इसे जितनी जल्दी लागू किया जाए उतना ही अच्छा होगा क्योंकि बच्चे ही किसी देश की नींव होते हैं और जब नींव ही कमजोर हो तो एक सशक्त देश की कल्पना कैसे की जा सकती है!                                       —   विजय कुमार

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