भारत सरकार पहले अपने घर में छिपे आतंकवादियों का सफाया करे

Friday, Sep 23, 2016 - 01:45 AM (IST)

अपनी स्थापना के समय से ही पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध प्रत्यक्ष व परोक्ष युद्ध छेड़ रखा है और पाकिस्तानी सेना या उसके पाले आतंकवादी बड़े पैमाने पर भारत में रक्तपात कर रहे हैं जिसकी भयानकता के कुछ प्रमाण निम्र हैं:

* 13 दिसम्बर, 2001 को लश्कर-ए-तोयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने भारतीय संसद पर हमला करके 14 लोगों को शहीद कर दिया।

* 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में आतंकी हमले में समुद्र मार्ग से आए पाकिस्तानी आतंकवादियों ने 164 लोगों की हत्या कर दी।

* 2 जनवरी, 2016  को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने पठानकोट एयरबेस पर हमला करके हमारे 3 जवानों को शहीद कर दिया। 
और अब 18 सितम्बर को तड़के 5.30 बजे के आस-पास पाकिस्तानी आतंकवादियों ने उड़ी सैक्टर में नियंत्रण रेखा के निकट भारतीय सेना के 12 ब्रिगेड मुख्यालय पर हमला करके 20 जवानों को शहीद कर दिया। 

इस हमले के फौरन बाद ही ‘सुरक्षा संबंधी चूक’ की आशंका जताई जा रही थी जिसका उल्लेख हमने 20 सितम्बर के संपादकीय ‘सेना की भारी चूक : उड़ी के सैन्य ठिकाने पर बड़ा आतंकी हमला’ में किया था। 

इस आशंका की पुष्टि करते हुए पहली बार 21 सितम्बर को रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने स्वीकार किया कि ‘‘सुरक्षा में कहीं तो चूक हुई है। लिहाजा सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा।’’ 

हर घटना के बाद हमारे नेता देश के सुरक्षा प्रबंध मजबूत करने की इसी तरह बातें कहते हैं परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहता है। इस समय हम पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का ही नहीं बल्कि देश के 20 राज्यों के 270 जिलों में फैल चुके नक्सलवादियों के हिंसक आंदोलन का भी सामना कर रहे हैं। 

देश में 1980 से शुरू हुई माओवादियों की समस्या 35 से अधिक वर्षों से लटकती आ रही है और वे अभी तक देश में 12000 से अधिक निर्दोष लोगों की जान ले चुके हैं। 

जहां तक पाक समर्थित आतंकवाद का संबंध है, 26/11 के हमलों के बाद हमारी तटरेखा पर सुरक्षा प्रबंधों संबंधी त्रुटियों का मुद्दा उठा परंतु अभी भी भारतीय कोस्ट गार्ड जरूरी साजो-सामान की कमी से जूझ रही है। पठानकोट हमले में भी भीतरघात का संदेह है। उड़ी हमले के बारे में भी ‘राष्ट्रीय जांच एजैंसी’ को शक है कि चारों आतंकियों ने हमला करने से पहले ही भारतीय कैम्प के किसी व्यक्ति से काफी जानकारियां प्राप्त कर ली थीं। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि मुम्बई हमले सहित भारत में जितने भी आतंकवादी हमले हुए हैं उन सभी के पीछे आतंकवादियों को स्थानीय लोगों द्वारा शरण एवं सहायता देने का संदेह रहा है जिस कारण वे यहां छिपकर रहने के साथ-साथ अपनी करतूतें अंजाम दे सके।   

अत: आवश्यकता इस बात की है कि जिस प्रकार श्रीलंका सरकार ने सेना की सहायता लेकर अपने देश में सक्रिय लिट्टे आतंकवादियों का मात्र 6 महीनों के भीतर सफाया कर दिया उसी प्रकार भारत सरकार भी पहले सेना का सहारा लेकर नक्सलवादियों और जम्मू-कश्मीर में छिपे आतंकवादियों का सफाया करे ताकि शत्रु देश द्वारा की जाने वाली घुसपैठ को समाप्त किया जा सके। 

इस मामले में उस तरह की ढुलमुल नीति अपनाने का कोई लाभ नहीं है जैसी सरकार ने कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन के मामले में अपनाई और जिसे पकडऩे के लिए सरकार लगातार 14 वर्ष तक प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ रुपए के हिसाब से खर्च करती रही और 28 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद 2004 में उसे मारा जा सका।

कश्मीर में कम से कम 40 ऐसे स्थान हैं जहां से घुसपैठ की जा सकती है। अत: सीमा पर अधिक सुरक्षा बल तैनात करने के साथ ही हर मौसम में काम करने वाली इलैक्ट्रॉनिक गुप्तचर प्रणाली स्थापित करना भी जरूरी है। इसके साथ ही भीतरघात करने वालों का पता लगाकर उन्हें समाप्त करने व भारतीय प्रतिरक्षा तंत्र में प्रत्येक स्तर पर घर कर गई अन्य त्रुटियों और सुरक्षा प्रबंधों की चूकों को तुरंत दूर करना आवश्यक है। इसीलिए : कहनी है इक बात हमें इस देश के पहरेदारों से संभल के रहना अपने घर में, छिपे हुए गद्दारों से।    
                        

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