‘एक के बाद एक’ समस्याओं के ‘चक्रव्यूह में फंसा भारत’

Thursday, Apr 19, 2018 - 01:38 AM (IST)

हालांकि मई, 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद लोगों को अच्छे दिनों की उम्मीद बंधी थी परंतु सरकार द्वारा उठाए चंद बड़े सुधारात्मक पगों का भी अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है। सरकार ने काला धन निकालने, नकली करंसी व आतंकवादियों की आय का स्रोत समाप्त करने के लिए 8 नवम्बर, 2016 को 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट बंद करके 500 और 2000 रुपए के नए नोट जारी किए थे। 

बिना तैयारी के लागू की गई नोटबंदी के पहले महीने में ही पैदा हुए धन के अभाव से ए.टी.एम्स की कतारों में खड़े 100 से अधिक लोग मारे गए। जाली करंसी के धंधे और आतंकी घटनाओं में भी कमी नहीं आई। वर्ष 2016-17 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमलों में 54.81 प्रतिशत वृद्धि हुई और नए 500 व 2000 रुपए के नकली नोट भी बाजार में आ गए। इसी प्रकार एक बड़े कर सुधार के रूप में 1 जुलाई, 2017 को वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू किया गया जो 10 करोड़ छोटे कारोबारियों के लिए दु:स्वप्र सिद्ध हुआ तथा इसके विरोध में देश में व्यापक प्रदर्शन हुए। 

जी.एस.टी. लागू करने में अड़चनों को देखते हुए सरकार ने इसके नियमों में कुछ राहत दी परंतु अभी भी यह प्रणाली पटरी पर नहीं आ पाई है और अब तो वेतन भोगियों को भी जी.एस.टी. के अंतर्गत लाने की चर्चा सुनाई दे रही है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ‘‘जी.एस.टी. प्रणाली के अंतर्गत रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया पहाड़ पर चढऩे के समान कठिन है।’’ रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के अनुसार, ‘‘नोटबंदी का कदम अच्छी तरह सोच-समझ कर और योजना बनाकर लागू नहीं किया गया। जी.एस.टी. और नोटबंदी जैसे सुधार बेहतर ढंग से लागू किए जाते तो अच्छा था।’’ 

यही नहीं, हाल ही में देश में विभिन्न परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक होने के कारण शिक्षा का ढांचा ही प्रश्रों के घेरे में आ गया। सी.बी.एस.ई. की 12वीं, पं. दीन दयाल उपाध्याय शेखावाटी वि.वि. के बी.एससी.-ढ्ढ, गोरखपुर वि.वि. के बी.एससी. ढ्ढ और ढ्ढढ्ढ के विभिन्न विषयों के पेपर लीक होने से बवाल मचा। मध्यप्रदेश में एफ.सी.आई. की परीक्षा का पेपर लीक हुआ तथा कर्मचारी चयन आयोग की ग्रैजुएट लैवल परीक्षा में धांधली के विरुद्ध 31 मार्च को दिल्ली में प्रदर्शनकारी परीक्षाॢथयों पर पुलिस लाठीचार्ज से कई छात्रों को चोट पहुंची। 

इसके साथ ही देश में प्रमुख हस्तियों की मूर्तियां तोडऩे की घटनाएं भी लगातार जारी हैं। 5 मार्च को त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़े जाने से वहां ङ्क्षहसा भड़क उठी तथा 6 मार्च को तमिलनाडु में महान समाज सुधारक ई.वी. रामास्वामी पेरियार और पश्चिम बंगाल के कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि की प्रतिमाओं को खंडित किया गया। 29 मार्च को बिहार के नवादा में एक मूर्ति तोड़े जाने से भड़की हिंसा के दौरान कई दुकानों को जला दिया गया जबकि 31 मार्च को उत्तर प्रदेश में बाबा साहब की मूर्तियां तोड़े जाने से तनाव फैल गया और प्रदर्शन शुरू हो गए। रामनवमी पर पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक उपद्रवों में कम से कम 5 लोग मारे गए जबकि बिहार में कम से कम 8 जिले साम्प्रदायिक हिंसा से प्रभावित हुए। 

30 मार्च को गुजरात में सूरत के कोसाड में 2 समुदायों में हिंसक झड़प के बाद ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगे। 2 अप्रैल को दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान विभिन्न राज्यों में हिंसा के दौरान कम से कम 9 लोग मारे गए। देश में  महिलाओं व बच्चों के विरुद्ध अपराधों की बाढ़-सी आई हुई है। कठुआ व उन्नाव की वारदातों पर देश में आए उबाल के बीच 17 अप्रैल को यू.पी. में 5 नाबालिगों से बलात्कार की वारदातें सामने आईं जिनमें से 3 बच्चियों की बाद में हत्या कर दी गई। रोज 107 से अधिक महिलाओं से बलात्कार व औसतन 290 बच्चों का यौन शोषण और किडनैपिंग हो रही है। अब एक बार फिर 10 राज्यों में करंसी का संकट पैदा हो गया है। ए.टी.एम्स सूख गए हैं व कई जगह लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। 

विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि ‘‘नोटबंदी और जी.एस.टी. को गलत ढंग से लागू करने के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोटे व्यापारियों की जिंदगी तबाह कर दी है। लोगों को मोदी सरकार के 4 वर्षों में धोखे के सिवा कुछ नहीं मिला।’’ इस समय जबकि देश को सीमा पर पाकिस्तान के हमलों का सामना करना पड़ रहा है और चीन के कारण भारत का लघु उद्योग चौपट होकर रह गया है, ऐसे में देश के नेताओं को गहन ङ्क्षचतन मनन करके लोगों में व्याप्त असंतोष के कारणों को दूर करने की जरूरत है।—विजय कुमार

Pardeep

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