भारत एक नई वैश्विक व्यवस्था का अग्रदूत

punjabkesari.in Friday, Sep 08, 2023 - 06:06 AM (IST)

आम जन का जी-20 
जी-20 की भारत की अध्यक्षता कई मायनों में अनूठी साबित हुई है। इसने विकासशील देशों की प्राथमिकताओं एवं प्रमुख ङ्क्षचताओं पर ध्यान केंद्रित किया है, ग्लोबल साऊथ के देशों की आवाज को मुखर किया है और जलवायु कार्रवाई एवं वित्त, ऊर्जा रूपांतरण, सतत विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) के कार्यान्वयन तथा तकनीकी बदलाव जैसे क्षेत्रों से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं को सशक्त किया है। जिस बात ने जी-20 की भारत की अध्यक्षता को और अधिक असाधारण बनाया है, वह है जी-20 से संबंधित विभिन्न आयोजनों एवं गतिविधियों में देशभर के लोगों की व्यापक भागीदारी या ‘जन भागीदारी’। 

यह अध्यक्षता सिर्फ सरकार के शीर्ष स्तर तक ही सीमित नहीं रही है। विभिन्न राज्यों एवं केंद्र -शासित प्रदेशों के लोगों की सक्रिय भागीदारी के जरिए, जी-20 की भारत की अध्यक्षता सही अर्थों में ‘आम जन का जी-20’ साबित हुई है। कुल 60 शहरों में आयोजित लगभग 220 बैठकें,जी-20 की विभिन्न बैठकों में लगभग 30,000 प्रतिनिधियों की उपस्थिति, इन बैठकों से जुड़े विभिन्न सहयोगी कार्यक्रमों में 100,000 से अधिक प्रतिभागियों के साथ-साथ देश के सभी कोनों से नागरिकों की भागीदारी, जी-20 की अध्यक्षता विभिन्न तरीकों से आम लोगों के साथ जुड़ी हुई है। विभिन्न संबंधित मंत्रालयों ने पूरे उत्साह के साथ सक्रिय भागीदारी को प्रेरित किया है। शिक्षा मंत्रालय ने जनभागीदारी पर आधारित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया है। 

इन कार्यक्रमों में विद्यार्थियों, शिक्षकों, अभिभावकों एवं बड़े पैमाने पर समाज के विभिन्न हितधारकों की उत्साहपूर्ण भागीदारी रही है। राज्य और जिले से लेकर प्रखंड, पंचायत व स्कूल स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों ने जी-20, राष्ट्रीय शिक्षा नीति तथा बुनियादी शिक्षा एवं संख्यात्मकता, जोकि जी-20 की भारत की अध्यक्षता की प्रमुख प्राथमिकताएं हैं, के बारे में जागरूकता पैदा की है। इन आयोजनों में सामूहिक रूप से 23.3 करोड़ से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया है। इनमें 15.7 करोड़ विद्यार्थी, 25.5 लाख शिक्षक और 51.1 लाख समाज के सदस्य शामिल हैं। 

विभिन्न कार्य समूहों ने सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए नवीन साधनों का उपयोग किया है। विशेष रूप से, जी-20 बुनियादी ढांचे से जुड़े कार्य समूह ने राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर जी-20 साइक्लोथॉन और एक मोटरसाइकिल रैली का आयोजन किया। इसके अलावा, जी-20 की भारत की अध्यक्षता ने देश के सहकारी संघवाद के विशिष्ट मॉडल को रेखांकित किया है। विभिन्न राज्यों और केन्द्र - शासित प्रदेशों ने जी-20 के प्रतिनिधियों का स्वागत करने, स्थानीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर उत्साह जगाने और अपनी-अपनी परंपराओं एवं उपलब्धियों को प्रदॢशत करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा की है। 

कई मामलों में, इसने विकास की उन पहलों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान किया है जिन्होंने इस तरह के आयोजन में योगदान दिया है। मणिपुर में लोकटक झील का जीर्णोद्धार, मुंबई में शहरी स्वच्छता अभियान या लखनऊ में बुनियादी ढांचे का उन्नयन इसके कुछ उदाहरण हैं। इस प्रकार के समन्वय ने न केवल वैश्विक मंच पर स्वदेशी सांस्कृतिक विरासतों एवं कारीगरों के कौशल को प्रदर्शित किया है, बल्कि विविध समुदायों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ाए हैं। कई प्रतिनिधियों ने खुद जाकर ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओ.डी.ओ.पी.) की समृद्ध पहल को देखा और विभिन्न कारीगर केंद्रों का अवलोकन किया।

निश्चित रूप से जी-20 कार्यक्रम को जिस तरह से देशभर में लागू किया गया है, उसके आॢथक लाभ निरंतर सामने आ रहे हैं। देशभर में जी-20 का उत्सव मनाकर, हमने समग्र रूप से राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश की है जो भारत और दुनिया, दोनों के लिए लाभदायक साबित हो। ‘मन की बात’ कार्यक्रम में बोलते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जी-20 की भारत की अध्यक्षता को ‘जनता की अध्यक्षता’ करार दिया।-एस. जयशंकर(केंद्रीय विदेश मंत्री)

वैश्विक कल्याण के लिए जी-20  
भारतज्ञान सभ्यता के रूप में अपने डी.एन.ए. में प्रतिभा का एक स्वाभाविक भंडार रखता है। अपने पूरे इतिहास में,भारत ने गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, दर्शन और साहित्य सहित ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।  भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान, चाहे वह कार्यकारी समूह में हो या मंत्रिस्तरीय सभा में-सभी चर्चाओं में व्यापक वैश्विक कल्याण संयोजक रहा है। वसुधैव कुटुम्बकम के हमारे प्राचीन मूल्यों में निहित जी-20 का विषय ‘एक पृथ्वी-एक परिवार -एक भविष्य’ इस बात को रेखांकित करता है कि भारत की प्रगति और विकास न केवल अपने लोगों के लिए है, बल्कि वैश्विक कल्याण के लिए है।  जिसे हम ‘विश्व कल्याण’ कहते हैं-पूरे विश्व का कल्याण। 

भारत की अर्थव्यवस्था में वैश्विक विश्वास : विश्व ने भारत की अर्थव्यवस्था की सहज शक्ति और लचीलेपन को पहचाना है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को विश्व अर्थव्यवस्था में ‘उज्ज्वल स्थान’ के रूप में चिन्हित किया है। भारत के मैक्रो-इकोनॉमिक का आधार काफी मजबूत है।  वैश्विक चुनौतियों के बावजूद भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत अब कम समय में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता के साथ पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 

शिक्षा की जननी : ज्ञान और कौशल के माध्यम से मानव पूंजी जुटाना भारत की क्षमता को साकार करने की कुंजी है। शिक्षा ‘जननी’ है जो विकास की गति को चलाएगी और बनाए रखेगी। शिक्षा वह मातृ-शक्ति है जो नागरिकों को सशक्त बनाएगी।

नई शिक्षा नीति (एन.ई.पी.) मातृ दस्तावेज : भारत में शिक्षा को समावेशी और संपूर्ण, निहित, भविष्योन्मुखी, प्रगतिशील और अग्रगामी बनाने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तैयार की गई है। मजबूत वैचारिक समझ और स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए मातृभाषा में सीखने को एन.ई.पी. में प्राथमिकता दी गई है। मातृभाषा में शिक्षा संपर्क भाषाओं को प्रतिस्थापित नहीं करेगी, बल्कि उनका पूरक बनेगी। यह ज्ञान के लिहाज से कम संपन्न छात्रों सहित, सभी छात्रों के शैक्षिक मार्गों को सुचारू और आसान बनाएगी। अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उद्योग-अकादमिक सहयोग एन.ई.पी. का एक और प्राथमिकता वाला क्षेत्र है। राष्ट्रीय अनुसंधान फाऊंडेशन की स्थापना शैक्षिक संस्थानों में अनुसंधान को बीज, विकास और सुविधा प्रदान करने के लिए की जा रही है। फोकस भारत को अनुसंधान और विकास केंद्र बनाने पर है। सरकार न केवल व्यवसाय की सुगमता बल्कि अनुसंधान की सुगमता सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयास कर रही है। 

इसके अतिरिक्त भारत की संयुक्त राज्य अमरीका, आस्ट्रेलिया, जापान और यूरोप के प्रमुख देशों के साथ शैक्षिक सांझेदारी है, जहां भारत के प्रतिभा पूल को मान्यता दी जाती है। महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (आई.सी.ई.टी.) तथा क्वाड फैलोशिप के अंतर्गत उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है। 

कौशल और उद्यमिता : भारत में 18 से 35 वर्ष की आयु के 600 मिलियन से अधिक लोग हैं,जिसमें 65 प्रतिशत 35 वर्ष से कम आयु के हैं। बहु-विषयक और बहु-कुशल, गंभीर रूप से सोचने वाले, युवा और भविष्य के लिए तैयार कार्यबल के साथ जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करना प्राथमिकता है। 
स्कूल में कौशल : कौशल को कक्षा 6 से स्कूली शिक्षा में एकीकृत किया गया है। यह अब क्रैडिट फ्रेमवर्क का अभिन्न अंग है। सिंगापुर का कौशल ढांचा तकनीक-संचालित औद्योगिक वातावरण में बनाए रखने के लिए स्कूल स्तर से ही एक कुशल कार्यबल बनाने के लिए अनुकरणीय है।धर्मेंद्र प्रधान (शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री)

-ग्लोबल साऊथ की आवाज भारत 
जी-20 के सदस्य देशों के नेता जब इस महीने की 9 और 10 तारीख को मिलेंगे, तो उनकी प्रमुख चिंता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाने की होगी। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न तात्कालिक खतरे के साथ ही साथ कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए त्वरित गति से जीवाश्म ईंधन से गैर-जीवाश्म ईंधन का रुख करने की तत्काल आवश्यकता और वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिकीकरण स्तर से 1.5 डिग्री तक सीमित करने के प्रयास को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया है। 

भारत दुनिया में सबसे कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वाले देशों में से एक है। हमारा प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2.40 टी.सी.ओ.-2-ई. (टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य) है, जबकि वैश्विक औसत 6.3 टी.सी.ओ.-2-ई. है। कार्बन डाइऑक्साइड भार में हमारा योगदान केवल 4 प्रतिशत है जबकि हम दुनिया की आबादी का 17 प्रतिशत हिस्सा हैं। हम एकमात्र प्रमुख अर्थव्यवस्था हैं जिसकी ऊर्जा परिवर्तन गतिविधियां तापमान में 2 डिग्री से कम वृद्धि के अनुरूप हैं। सी.ओ.पी. 21 पैरिस में, हमने वर्ष 2030 तक 40 प्रतिशत गैर-जीवाश्म बिजली उत्पादन क्षमता हासिल करने का संकल्प लिया था, इस लक्ष्य को हमने 9 साल पहले 2021 में ही हासिल कर लिया। हमारी गैर-जीवाश्म उत्पादन क्षमता 187 गीगावॉट है और 103 गीगावॉट निर्माणाधीन है। ग्लासगो में सी.ओ.पी. 26 में, हमने 2030 तक 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म बिजली उत्पादन तक पहुंचने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है। 

ऊर्जा दक्षता से संबंधित कदम उठाने की दिशा में हम अग्रणी हैं। हमारे उद्योग-केंद्रित प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (पी.ए.टी.) कार्यक्रम के माध्यम से हमने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वार्षिक 106 मिलियन टन की कमी की है। उपकरणों पर स्टार लेबलिंग से संबंधित हमारे कार्यक्रम से कार्बन उत्सर्जन में सालाना 57 मिलियन टन, जबकि हमारे एल.ई.डी. कार्यक्रम से हर साल 106 मिलियन टन की कमी आई है। पिछले 9 वर्षों में, हमने अपनी बिजली उत्पादन क्षमता में 190 गीगावॉट की वृद्धि की है और 1,97,000 सॢकट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनें स्थापित कर दुनिया का सबसे बड़ा एकीकृत ग्रिड बनाया है। हमने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है।ऊर्जा परिवर्तन के संबंध में दुनिया के सामने कई चुनौतियां हैं। चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भंडारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज विश्व में बैटरी भंडारण विनिर्माण क्षमता केवल 1163 जी.डब्यू.एच. है। भंडारण की लागत वर्तमान में बहुत अधिक है। 

परमाणु ऊर्जा निरंतर, स्वच्छ बिजली उत्पादन प्रदान करती है। हालांकि, हमें छोड़कर अधिकांश विकासशील देशों के पास महत्वपूर्ण परमाणु क्षमताओं का अभाव है। छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर इस दिशा में समाधान हो सकते हैं, लेकिन यह अभी तक विकास के चरण में है। दूसरा समाधान कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (सी.सी.यू.एस.) है लेकिन यह भी शुरूआती चरणों में है। अधिग्रहण का प्रश्न लागत के प्रश्न की तरह ही बरकरार है। एक अन्य चुनौती आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने की है। वर्तमान में, सौर सेल और मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा एक ही देश तक केंद्रित है। हमने बड़े पैमाने पर विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए एक उत्पादन लिक्ड प्रोत्साहन योजना (पी.एल.आई.) की स्थापना की  और 2026 तक 100 गीगावॉट विनिर्माण क्षमता हासिल करने की राह पर हैं। 

उपर्युक्त मुद्दे ऊर्जा परिवर्तन की राह में आने वाली बाधाओं को रेखांकित करते हैं, जिन्हें  मेरी अध्यक्षता में गोवा में संपन्न जी-20 ऊर्जा मंत्रियों की बैठक के दौरान हल किया गया। पिछली किसी भी जी-20 बैठक की तुलना में अधिक मुद्दों पर सहमति होने के कारण यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही। भारत ऊर्जा परिवर्तन के क्षेत्र में अग्रणी और ग्लोबल साऊथ की आवाज बनकर उभरा है।-आर.के. सिंह(केंद्रीय विद्युत एवं नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री)
 


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