जेलों में बढ़ रहीं मारपीट, हिंसा और तोड़-फोड़ की घटनाएं

Sunday, Apr 07, 2019 - 03:05 AM (IST)

हमारी जेलें वर्षों से घोर कुप्रबंधन की शिकार हैं। जेलों में रहते हुए ही विभिन्न अपराधों में गिरफ्तार कैदी न सिर्फ क्रियात्मक रूप से अपनी अवैध गतिविधियां चला रहे हैं बल्कि वहां बंद कैदी गिरोहों के बीच मारपीट की घटनाएं भी आम हैं जिसके चंद ताजा उदाहरण निम्र में दर्ज हैं : 

09 जनवरी को भिवानी जिला जेल के कैदियों के दो गुटों में हुई गैंगवार में दो कैदी चोटिल हो गए। 05 मार्च को उत्तर प्रदेश में बागपत जिला जेल में कैदियों के दो गुटों के बीच संघर्ष में 2 जेल कर्मचारियों सहित 5 से अधिक कैदी घायल हुए।  09 मार्च को उक्त जेल में ही एक बार फिर हुए कैदियों के 2 गुटों के बीच संघर्ष में 2 कैदियों को गंभीर चोटें आईं। 16 मार्च को आजमगढ़ जिले की इटोरा जेल में अनेक कैदी आपस में भिड़ गए और उनमें जम कर हुई मारपीट के परिणामस्वरूप कई कैदी घायल हो गए। जेल के अंदर पुलिस पर पथराव भी किया गया। कैदियों को काबू करने के लिए सुरक्षा बलों को आंसू गैस और मिर्ची बम का इस्तेमाल करना पड़ा। बताया जाता है कि घटना का वीडियो भी शूट किया गया जिसकी जेल प्रशासन को भनक भी नहीं लगी। 

19 मार्च को दुर्ग जेल में एक हत्याकांड के आरोपी पर एक अन्य आरोपी ने कातिलाना हमला करके उसे घायल कर दिया। 23 मार्च को जमशेदपुर स्थित घाघीडीह सैंट्रल जेल में गैंगवार के दौरान दोनों गुटों के बीच भारी मारपीट हुई और एक गिरोह के कैदी पर दूसरे गिरोह के कैदियों ने हमला करके उसे घायल कर दिया। 30 मार्च को जयपुर सैंट्रल जेल में कैदियों के दो गुटों के बीच झगड़े में आधा दर्जन कैदी लहूलुहान हो गए। 04 अप्रैल को होशियारपुर स्थित बाल सुधार घर में नाश्ते के समय बाल कैदियों के दो गुटों में खूनी संघर्ष के चलते 4 बाल कैदी घायल हो गए। इसमें दोनों पक्षों ने फिल्मी स्टाइल में एक-दूसरे के विरुद्ध लोहे की छड़ों, ईंटों और तेजधार हथियारों का इस्तेमाल किया।

04 अप्रैल को ही श्रीनगर की हाई सिक्योरिटी सैंट्रल जेल में कुछ कैदियों को कश्मीर घाटी से बाहर शिफ्ट करने की अफवाह फैलने के बाद दंगा हो गया। बवाल उस समय शुरू हुआ जब कैदियों ने उन्हें 2 बैरकों से निकाल कर दूसरी जगह ले जाने के जेल अधिकारियों के फैसले का विरोध किया। बताया जाता है कि उन बैरकों की मुरम्मत की जानी थी इसलिए वहां रखे गए कैदियों को दूसरी जगह स्थानांतरित करना था परंतु कैदियों को लगा कि उन्हें घाटी के बाहर बनी जेलों में भेजा जाएगा। इसके बाद कैदियों ने तोड़-फोड़ शुरू कर दी और भागने के इरादे से जेल के मैस, एक कैंटीन तथा मेन गेट के एक हिस्से को आग लगा दी। 

एक पुलिस अधिकारी के अनुसार कैदियों ने जेल के बुनियादी ढांचे और सर्वेलांस उपकरणों सहित जेल की लाखों रुपए की प्रापर्टी को भारी क्षति पहुंचाई जिसमें 2 बैरकें, एक रसोई घर और टीन का एक शैड शामिल है। स्थिति उस समय गंभीर हो गई जब कैदियों ने हमला करने और जेल के सिक्योरिटी ग्रिड को क्षति पहुंचाने के लिए उसके लिए ज्वलनशील वस्तुओं का इस्तेमाल किया। 10 बैरकों से 400 से अधिक कैदी आंतरिक गेट तोड़ कर निकास एवं प्रवेश स्थलों को तोडऩे के लिए इकट्ठे हो गए ताकि वे वहां से भाग सकें। कैदियों ने गेट के निकट 4 धमाके करने के लिए सांझी रसोई में से एल.पी.जी. सिलैंडरों का इस्तेमाल करने के अलावा पथराव भी किया। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि जेल के भीतर क्या हुआ परंतु घटना की रात उन्हें धमाकों की आवाजें सुनाई देती रहीं।

रात भर चला यह हंगामा 5 अप्रैल को शांत हो गया परंतु इस दौरान 2 कैदियों और 3 सुरक्षा कर्मचारियों सहित 5 लोग घायल हो गए। इस बीच स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए प्रशासन ने अनेक पग उठाए हैं। भारतीय जेलों में ऐसी घटनाओं का लगातार होना इस बात का प्रमाण है कि कैदियों के बढ़ चुके हौसले के सामने भारतीय जेलों का प्रबंधन कितना बेबस है। अत: ऐसी घटनाएं रोकने के लिए जहां भारतीय जेलों में निगरानी अधिकतम करने की आवश्यकता है वहीं किसी भी प्रकार की घटना के लिए जिम्मेदारों को कठोरतम शिक्षाप्रद दंड देने की भी जरूरत है।—विजय कुमार 

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