सोशल मीडिया के दुरुपयोग से घाटी में बढ़ रही हिंसा व अशांति

Sunday, May 28, 2017 - 10:37 PM (IST)

आज के गतिशील दौर में लोगों को एक-दूसरे के करीब लाने में सोशल मीडिया बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है परन्तु इसी सोशल मीडिया का इस्तेमाल जब हिंसा भड़काने, अफवाहें फैलाने और इसी प्रकार के अन्य देश और समाज विरोधी कार्यों के लिए होने लगता है तब समस्या होती है। अर्से से अशांति, आतंकवाद और हिंसा के शिकार जम्मू-कश्मीर में ऐसा ही हो रहा है जिसकी सदा बहार सरजमीं इंसानी खून से लाल हो रही है। 

इसीलिए जम्मू-कश्मीर सरकार ने ‘राष्ट्र विरोधी’ तत्वों को भड़काऊ संदेश प्रसारित करने से रोकने के लिए वीरवार 26 अप्रैल को घाटी में फेसबुक, ट्विटर तथा व्हाट्सएप जैसे 22 सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर एक महीने के लिए प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही अधिकारियों ने 300 से अधिक व्हाट्सएप ग्रुपों को भी यह कहते हुए ब्लॉक कर दिया कि वे कश्मीर में अशांति के दिनों में युवाओं को प्रदर्शन करने के लिए उकसाने वाली अफवाहें फैला रहे थे। 

हालांकि जम्मू-कश्मीर में छात्रों ने इस पर यह कहते हुए अपना आक्रोष व्यक्त किया है कि वे अपनी 12वीं और अन्य प्रवेश परीक्षाओं के लिए इंटरनैट द्वारा प्रदान की जाने वाली ऑन लाइन क्लासें लेते थे और इस प्रतिबंध से उनकी पढ़ाई प्रभावित हुई है। पिछले 5 वर्षों के दौरान घाटी में असंतोष को फैलने से रोकने के लिए इंटरनैट को 25 बार ब्लॉक किया गया है लेकिन सरकार द्वारा कश्मीर में  सोशल मीडिया पर इतनी फुर्ती से प्रहार करने का यह पहला मौका हैै। इसके अलावा प्रदेश की पुलिस ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करने के आरोप में 250 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। व्हाट्सएप से भेजे गए संदेशों के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर पहुंचने वाले पत्थरबाज सरकार के लिए बहुत बड़ी समस्या पैदा कर रहे थे। 

लगभग एक महीने बाद 27 मई को जम्मू-कश्मीर सरकार ने पुन: इंटरनैट पर प्रतिबंध वापस लेने का निर्णय कर लिया। प्रदेश में आमतौर पर सरकार और सी.आर.पी.एफ. के बीच तालमेल कुछ धीमा है। उदाहरण के तौर पर सरकार ने जब 26 अप्रैल को प्रतिबंध लगाया तो इसे पहले 4 दिनों तक पूरी तरह लागू ही नहीं किया जा सका लेकिन पहली बार सशस्त्र सेनाओं द्वारा 10 आतंकवादियों का सफाया, विशेषकर सेना द्वारा किए गए कोवर्ट आप्रेशन में जैसे ही हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर सबजार अहमद भट्टï के मारे जाने का समाचार आया वॉयस मैसेजों के प्रसारण,  जिनमें युवाओं को एक बार फिर पत्थरबाजी के लिए इकट्ठे होने के लिए उकसाया जा रहा था, के परिणामस्वरूप ङ्क्षहसक प्रदर्शन भड़क उठे। 

उल्लेखनीय है कि पिछली बार पत्थरबाजों द्वारा सुरक्षाबलों के लिए समस्या उत्पन्न कर देने के कारण यही सबजार अहमद निकल भागने में सफल हो गया था। सोशल साइटों पर प्रतिबंध हटाने के 7 घंटों के भीतर ही हिंसा को फैलने से रोकने के लिए इन पर पुन: प्रतिबंध लगा दिया गया। जिस फुर्ती से सरकार ने इस संबंध में कार्रवाई की वह आश्चर्यजनक है क्योंकि अभी तक महबूबा मुफ्ती की सरकार ने बहुत धीमी कार्रवाई ही की है और प्रदर्शनकारियों के प्रति उसका रवैया भी नर्म रहा है।

हालांकि हिंसक प्रदर्शन पुन: शुरू हो जाने की उसी प्रकार इस बार भी आशंका है जैसा कि बुरहान वानी की मौत के बाद हुआ था लेकिन चूंकि पत्थरबाज सोशल मीडिया के माध्यम से मात्र एक संदेश भेज कर आतंकवादी हैंडलरों द्वारा नहीं बुलाए जा सकते, इसलिए ऐसा विश्वास किया जाता है कि संभवत: केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार अब आतंकवाद से निपटने के लिए एक नीति तैयार कर रही हैं। रक्षा मंत्री अरुण जेतली की हाल ही की घाटी की यात्रा से यह संकेत मिलता है कि सरकार कश्मीर के संबंध में कोई नीति तैयार करने पर विचार कर रही है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि प्रत्येक नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है और इसे किसी भी हालत में सरकार को छीनना नहीं चाहिए परन्तु परिस्थितियां असाधारण होने पर असाधारण पग उठाने अनिवार्य हो जाते हैं।

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