बिहार में भाजपा और जद (यू) के बीच बढ़ रही दूरियां

Friday, Jun 29, 2018 - 03:15 AM (IST)

2013 में भाजपा नीत राजग से 17 वर्ष पुराना गठबंधन तोडऩे के बाद नीतीश कुमार राजद के साथ जुड़ गए। 26 जुलाई, 2017 को राजद नेता तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते दोनों दलों का गठबंधन टूट गया और नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया परंतु इसके कुछ ही घंटे बाद वह पुन: राजग में शामिल हो गए और भाजपा को सत्ता में भागीदार बना कर अपनी गद्दी बचा ली। 

शुरू-शुरू में तो जद (यू) और राजग के बीच सब ठीक चलता रहा परंतु मार्च, 2018 में भभुआ विधानसभा सीट पर उपचुनाव में राजद प्रत्याशी की विजय और जद (यू) प्रत्याशी की हार के बाद भाजपा व जद (यू) में मतभेद मुखर होने लगे और नीतीश कुमार विभिन्न मुद्दों पर असहमति जताने लगे। 14 अप्रैल को उन्होंने कहा, ‘‘सत्ता रहे न रहे, भ्रष्टाचार, अपराध व साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे वालों से कोई समझौता नहीं होगा। अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को संविधान ने जो आरक्षण दिया है उसे कोई नहीं छीन सकता। मुझे अपने काम के लिए किसी से सर्टीफिकेट लेने की जरूरत नहीं है।’’ 20 अप्रैल को खुलासा हुआ कि कुछ दिन पूर्व पटना में मुस्लिम संगठन ‘इमारत-ए-शरिया’ द्वारा मुसलमानों को जद (यू) की ओर आकर्षित करने के लिए ‘दीन बचाओ देश बचाओ’ के बैनर तले आयोजित रैली के लिए नीतीश कुमार ने 40 लाख रुपए दिए। 

इस रैली में मुस्लिम नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जी भर कर कोसा और नीतीश कुमार तथा जद (यू) का गुणगान किया गया। इस रैली के संयोजक खालिद अनवर को नीतीश कुमार ने एम.एल.सी. भी बना दिया। 26 मई को नीतीश ने नोटबंदी की आलोचना करते हुए कहा, ‘‘मैं पहले नोटबंदी का समर्थक था परंतु इससे कितने लोगों को लाभ हुआ? कुछ लोग अपने नकद रुपए को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में सफल रहे।’’ 30 मई को उन्होंने विकास के प्रति केंद्र सरकारों के पक्षपातपूर्ण निर्णयों का उल्लेख करते हुए बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग दोहराई। 

21 जून को पटना में राज्य सरकार की ओर से आयोजित योग दिवस समारोह में नीतीश कुमार नहीं पहुंचे। इतना ही नहीं, अगले लोकसभा चुनावों के लिए बिहार में भाजपा और सहयोगी दलों में सीट बंटवारे पर भी रार बढ़ती जा रही है। जद (यू) नेता संजय सिंह ने भाजपा को आगाह किया कि : ‘‘2014 और 2019 के चुनाव में बहुत अंतर है। भाजपा अच्छी तरह जानती है कि बिहार में नीतीश कुमार के बिना चुनाव जीतना इसके लिए आसान नहीं होगा और अगर भाजपा को जद (यू) की जरूरत नहीं है तो वह बिहार में सभी 40 सीटों पर चुनाव लडऩे के लिए स्वतंत्र है।’’ 

उक्त सब बातों को देखते हुए राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बिहार में राजग गठबंधन सरकार में सब ठीक नहीं और संजय सिंह के बयान से बिहार के विपक्षी नेताओं की उस आशंका की पुष्टिï होती दिखाई दे रही है कि कहीं नीतीश कुमार की जद (यू) लोकसभा चुनावों से पहले ही भाजपा से अलग न हो जाए। इस तरह के घटनाक्रम के बीच जहां राज्य में भाजपा-जद (यू) गठबंधन के भविष्य के बारे में अनुमान लगाए जा रहे हैं वहीं नीतीश कुमार द्वारा राजद सुप्रीमो लालू को फोन करके उनकी सेहत की जानकारी लेने से बिहार में राजनीतिक अटकलबाजों को और बल मिल गया है कि कहीं यह नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन में वापसी के प्रयास की शुरूआत तो नहीं और या फिर क्या यह सब जद (यू) द्वारा चुनावों में अधिक सीटें लेने तथा मुसलमान मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है? 

कुल मिलाकर इस समय बिहार की राजनीति कुछ इस तरह के मोड़ पर आ पहुंची है जिसमें एक छोर पर भाजपा दूसरे छोर पर राजद और बीच में नीतीश कुमार हैं। अब यह तो भविष्य के गर्भ में है कि इस घटनाक्रम का अंजाम क्या होगा और भाजपा तथा जद (यू) अपने रिश्ते पर मंडरा रहे संकट बारे उठ रही शंकाओं का निवारण किस तरह करते हैं!  वैसे यह बात तो किसी से छिपी हुई नहीं है कि कांग्रेस, भाजपा और जद (यू) सगे तो किसी के भी नहीं हैं।—विजय कुमार 

Pardeep

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