अपर्याप्त है ‘व्हाट्सएप’ की पहल

punjabkesari.in Monday, Jul 30, 2018 - 03:23 AM (IST)

2016 के राष्ट्रपति चुनावों में 40 प्रतिशत अमरीकियों ने रूसियों द्वारा बनाई गई विभाजक और नस्लवादी खबरों को पढ़ा और आगे विभिन्न सोशल मीडिया के पटल पर फैलाया परंतु भारत में इसका भयंकर रूप उभर कर आया। इस वर्ष अप्रैल से लेकर अब तक देश में कम से कम 18 लोगों की हत्या व्हाट्सएप पर फैली अफवाहों के चलते हुई है। पुलिस का कहना है कि इन सभी मामलों में अफवाहें व्हाट्सएप के जरिए ही फैली थीं। 

जांच के दौरान यह बात भी सामने आई है कि अक्सर लोग झूठे संदेशों तथा जाली वीडियोज और फोटोज को बड़े ग्रुप्स को फॉरवर्ड कर देते हैं जिनमें से कुछ के सदस्यों की संख्या 100 से भी अधिक होती है। भीड़ द्वारा की गई हत्याओं के ऐसे मामलों में अनजान लोगों पर हमला करने के लिए हिंसक भीड़ तेजी से जमा होती है और पुलिस को बड़ी भीड़ को समझाने या उनके चंगुल से निर्दोष लोगों को बचाने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं मिल पाता है। 

हाल ही की एक ऐसी घटना में 13 जुलाई को 32 वर्षीय एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर मोहम्मद आजम एक उग्र भीड़ का शिकार हुआ जो अपने दो दोस्तों के साथ दक्षिण कर्नाटक के एक गांव हांडीकेरा में रिश्तेदारों से मिलने कार में जा रहा था। रास्ते में स्कूल से लौट रहे स्कूली बच्चों के लिए चलती कार से चॉकलेट फैंकने के बाद वे सुस्ताने के लिए इलाके में एक झील के किनारे रुके थे। तभी गांव के लोगों की भीड़ ने वहां पहुंच कर उन्हें घेर लिया और उन्हें बच्चा चुराने वाले कह कर उन पर हमला कर दिया। किसी तरह वहां से जान बचा कर वे अपनी कार में निकल भागे तो भीड़ में से किसी ने अगले गांव में अपने दोस्तों को सूचित कर दिया कि बच्चा चुराने वाले लाल रंग की कार में उनकी ओर ही आ रहे हैं। 

गांव वालों ने सड़क बंद कर दी और तेजी से आ रही उनकी कार रास्ता रोकने के लिए रखे अवरोधों से टकरा कर पलट गई और तरह-तरह के हथियारों से लैस हिंसक भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। मौके पर पहुंचे चंद पुलिस वालों ने किसी तरह उनमें से दो लोगों को बचा लिया परंतु वे मोहम्मद आजम को नहीं बचा सके। यही नहीं वहां पहुंचे पुलिस वाले भी हिंसक भीड़ के कोप से बच न सके और एक कांस्टेबल के पैर की तो कई हड्डियां ही तोड़ दी गईं। पांच गाडिय़ों में भारी पुलिस बल के पहुंचने के बाद ही वहां मौजूद करीब 1000 लोगों की भीड़ तितर-बितर हुई। हालांकि, अधिकतर मामलों में तो पुलिस मौके पर वक्त पर पहुंच तक नहीं पाती है। व्हाट्सएप ने इसी महीने से अपनी पहल के अंतर्गत एक खास बदलाव किया है। 

विश्व के अन्य हिस्सों में जहां अब किसी भी संदेश को एक साथ 20 से अधिक लोगों को फॉरवर्ड नहीं किया जा सकेगा वहीं भारत में उसे केवल 5 लोगों को ही एक साथ फॉरवर्ड किया जा सकता है। व्हाट्सएप ने ऑडियो, वीडियो तथा फोटोज से ‘क्विक फॉरवर्ड’ बटन को भी हटा दिया है। साथ ही फॉरवर्ड हुए मैसेज पर लिखा नजर आने लगा है कि वह ओरिजिनल नहीं फॉरवर्डेड मैसेज है। हालांकि, व्हाट्सएप के इन कदमों का मकसद लोगों को जानकारी शेयर करने से रोकना नहीं बल्कि यह सोचने का मौका देना है कि वे क्या शेयर कर रहे हैं। वे ऐसा कर सकते हैं क्योंकि व्हाट्सएप सेवाएं कमाई के लिए विज्ञापन पर निर्भर नहीं हैं परंतु फेसबुक और ट्विटर जैसी सुविधाएं जो विज्ञापन से पैसे बनाती हैं उन पर अंकुश लगाना मुश्किल होगा। 

ध्यान देने वाली बात है कि आज करीब आधी दुनिया इंटरनैट इस्तेमाल कर रही है। ऑनलाइन होने वाले अगले करोड़ों लोग निम्न वर्ग से संबंधित होंगे तथा उनमें जागरूकता की भी कमी होगी जिनके अफवाहों तथा गलत जानकारी में फंसने की सम्भावनाएं भी काफी अधिक बनी रहेंगी। इंटरनैट पर चीजों को वायरल करने की भूख के चलते भी कई तरह की अफवाहों को बढ़ावा मिल रहा है जिस पर लगाम लगाने की जरूरत है। जाहिर है कि अफवाहों के चलते होने वाली हत्याओं के बीच व्हाट्सएप के द्वारा उठाए गए ये कदम नाकाफी हैं। सरकार को भी इस गम्भीर समस्या से निपटने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियान चलाए जाने की बात की जा रही है परंतु ऐसा बड़े स्तर पर करना होगा ताकि अधिक से अधिक लोगों को अफवाहों के प्रति जागरूक किया जा सके। इस संबंध में सरकार को सख्ती से कानून लागू करने पड़ेंगे। 


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Pardeep

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