नरसिम्हा राव के साथ ‘पाक में’ ‘जहां मुगल-ए-आजम पृथ्वीराज कपूर की हवेली देखी’

Wednesday, Sep 30, 2020 - 02:13 AM (IST)

भारतीय फिल्म जगत के ‘मुगल-ए-आजम’ के तौर पर प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर मूलत: पाकिस्तान के रहने वाले थे और वहां पेशावर के ‘किस्सा ख्वानी बाजार’ में इनकी 100 वर्ष पुरानी पैतृक हवेली है जो इनके पिता दीवान बशेशर नाथ कपूर ने 1918 और 1920 के बीच बनवाई थी। पेशावर में ही अभिनेता दिलीप कुमार का मकान भी है। इन दोनों इमारतों, जिन्हें राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जा चुका है, को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की सरकार ने ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण के उद्देश्य से खरीद कर इनका पुनरुद्धार करने का फैसला किया है जो आज जर्जर हालत में पहुंच जाने के कारण ध्वस्त किए जाने के खतरे का सामना कर रही हैं। 

28 सितम्बर के अखबारों में पृथ्वीराज कपूर की हवेली सम्बन्धी समाचार पढऩे के बाद मुझे वे दिन याद आ गए जब मुझे तत्कालीन विदेश मंत्री नरसिम्हा राव, जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री भी बने, के साथ पाकिस्तान जाने वाले पत्रकार दल के सदस्य के रूप में 1 से 4 जून, 1983 तक पाकिस्तान के चार दिन के दौरे पर जाने का मौका मिला था। प्रतिभाओं के धनी और अनेक भाषाओं के ज्ञाता नरसिम्हा राव को भारत में आर्थिक सुधारों के जनक के रूप में जाना जाता है। कम बोलने के कारण इन्हें ‘मौन प्रधानमंत्री’ भी कहा गया। वह नेहरू तथा गांधी परिवार के बाद पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने पूरे पांच वर्ष तक भारत का शासन संभाला। 

इनके प्रधानमंत्री काल में डा. मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ नीति शुरू की जिसके कारण बैंकों में होने वाले भ्रष्ट्राचार में काफी कमी आई थी। पत्रकार दल में हमारे साथ प्रसिद्ध उर्दू पत्रिका ‘शमां’ के मालिक जनाब यूनुसदेहलवी भी थे। उस समूचे दौरे के दौरान हम इकट्ठे ही रहे और उन्होंने कहा कि कुछ दिनों के लिए मैं भी शाकाहारी हो जाऊंगा। अपने उस दौरे के दौरान हम सबसे पहले रावलपिंडी और इस्लामाबाद के जुड़वां शहरों में घूमे और फिर मैंने हमारे साथ तैनात किए गए अधिकारियों से कहा कि वे हमें ‘कोहमरी’ और ‘पेशावर’ शहर दिखला कर लाएं। वातावरण इतना साफ था कि ‘कोहमरी’ की पहाडिय़ों से भारत के पहाड़ों तक का सुंदर दृश्य दिख रहा था। वहां घूमने के बाद हम पेशावर चले आए। तब तक हमारी भूख भी काफी चमक उठी थी, अत: हमारे साथ गए अधिकारी हमें वहां के ‘किस्सा ख्वानी बाजार’ के एक रेस्तरां में खाना खिलाने ले गए। 

वहां रेस्तरांओं से उठ रहा हल्का-हल्का धुआं और पकाए जा रहे तरह-तरह के पकवानों में प्रयुक्त मसालों की मुग्ध करने वाली महक चारों ओर फैली थी जिससे मुझे आलू, गोभी, पनीर, प्याज आदि के परांठों के लिए मशहूर चांदनी चौक, दिल्ली के प्रसिद्ध परांठों वाले बाजार की याद आ गई। दाल, सब्जी बनने में कुछ देर थी। अत: रेस्तरां वालों ने तब तक हमारे सामने टेबल पर तीन-चार फुट आकार का अत्यंत खस्ता और कुरकुरा नॉन लाकर परोस दिया जो इतना स्वादिष्ट था कि दाल या सब्जी आने से पहले ही हम सब उसे खा गए। खाना खाने के बाद हमारे गाइड हमें पृथ्वीराज कपूर का पुश्तैनी मकान दिखलाने ले गए जो उस समय तक काफी जर्जर हो चुका था, अत: इसे बाहर से ही देख कर हमें संतोष करना पड़ा। गाइड ने हमें अभिनेता दिलीप कुमार का मकान भी दिखाया। पेशावर में ही मेरी बड़ी बहन आदरणीय स्वर्णलता सूरी जी का ससुराल भी था जिनका लाला मईया दास सूरी के सुपुत्र और स्वतंत्रता सेनानी श्री तिलक राज सूरी के साथ विवाह हुआ था। 

श्री तिलक राज सूरी भी स्वतंत्रता सेनानी थे और 1942 में वह भी पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी के साथ जेल में बंद थे जहां उन्होंने लाला जी की अत्यधिक सेवा की। उनकी सेवा, समर्पण भावना तथा सुंदर व्यक्तित्व देख कर ही लाला जी ने स्वर्णलता जी का विवाह तिलक राज जी से करने का निर्णय कर लिया था। उल्लेखनीय है कि पृथ्वीराज कपूर को रंगमंच पर अभिनय से भी बेहद लगाव था और उन्होंने मुम्बई में ‘पृथ्वी थिएटर’ की स्थापना की थी। इसी के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए वह 1958 में जालन्धर आए और उन्होंने यहां के प्रसिद्ध ‘ज्योति थिएटर’ में एक सप्ताह तक चलने वाले ‘नाट्य समारोह’ में 7 नाटकों का मंचन किया था। मैं पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी तथा बड़े भाई श्री रमेश चंद्र जी के साथ पृथ्वीराज कपूर से मिलनेे गया तथा वहां उनके दो-तीन नाटक भी देखे। उनके बेटे तथा परिवार के अन्य सदस्य उनके साथ नाटकों में काम करते थे। 

पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में शहंशाह अकबर, दिलीप कुमार ने उनके बेटे शहजादा सलीम तथा मधुबाला ने सलीम की प्रेमिका अनारकली की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म इतनी सफल हुई कि साल-साल भर सिनेमाघरों से नहीं उतरी। इस फिल्म में मधुबाला का गाया गीत ‘जब प्यार किया तो डरना क्या, प्यार किया कोई चोरी नहीं की, छुप छुप आहें भरना क्या’ बेहद लोकप्रिय हुआ और लोग वर्षों तक इसे गुनगुनाते रहे। बहरहाल लाहौर वापसी पर मैं अपना मकान, अपना प्रैस और स्कूल आदि देखने गया जहां मैंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की थी। मैं लाजपत राय भवन भी गया और वह जगह भी देखी जहां लाजपत राय जी द्वारा स्थापित ‘सर्वेंट्स आफ पीपुल सोसायटी’ के नेता रहते थे तथा हम उनसे मिलने जाया करते थे और यहीं से हम 14 अगस्त, 1947 को भारत के लिए रवाना हुए थे। 

इस दौरान यूनुस देहलवी साहब मुझे प्रख्यात उर्दू लेखिका एवं राजनीतिज्ञ बुशरा रहमान, जो बाद में पंजाब की प्रांतीय असैम्बली तथा पाकिस्तान नैशनल असैम्बली की सदस्य भी बनीं, से मिलवाने के लिए भी लेकर गए। बुशरा जी ने हमारी भरपूर खातिरदारी की। हमें भोजन करवाया और फिर मैंने उनसे अपने अखबारों में प्रकाशित करने के लिए उनके उपन्यास मांग लिए जिस पर उन्होंने मुझे अपने 6 उपन्यास दिए जो हमारे समाचारपत्रों में प्रकाशित हुए और अत्यधिक पसंद किए गए। श्रीमती बुशरा रहमान का लेखन आज भी जारी है तथा वह 27 नवम्बर, 2005 को आयोजित शहीद परिवार फंड के सहायता वितरण समारोह में भी आई थीं। वापसी पर जब हम कस्टम से निकल रहे थे तो अधिकारियों ने मुझसे पूछा कि यह ढेर सारा सामान क्या उठा रखा है? मैंने उन्हें खोल कर दिखा दिया कि किताबें हैं। अपनी उस पाकिस्तान यात्रा से लौटने के बाद मैंने कुछ लेख लिखे थे जिन्हें पाकिस्तान से भारत आए लोगों ने चाव से पढ़ा। पृथ्वीराज कपूर की हवेली की खबर के बहाने ये चंद बातें मुझे याद आ गईं जो मैं आपके साथ सांझी कर रहा हूं। आशा करता हूं कि इन्हें पढ़ कर आपको कुछ अच्छा लगा होगा!—विजय कुमार

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