‘घृणा बयान’, बेघरों की समस्या और भ्रष्टाचार पर सुप्रीमकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां

punjabkesari.in Thursday, Oct 13, 2022 - 04:40 AM (IST)

आज जबकि कार्यपालिका और विधायिका लगभग निष्क्रिय हैं, न्यायपालिका जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारों को झिंझोडऩे के साथ-साथ शिक्षाप्रद टिप्पणियां भी कर रही है। इसी संदर्भ में सुप्रीमकोर्ट द्वारा हाल ही में की गई 3 जनहितकारी और महत्वपूर्ण टिप्पणियां निम्र में दर्ज हैं : 

देश में कुछ समय से विभिन्न राजनीतिक दलों के चंद नेताओं द्वारा ‘घृणा बयान’ (हेट स्पीच) देने की एक बाढ़-सी आई हुई है। हर ‘घृणा बयान’ कमान से निकले हुए उस तीर के समान होता है जिसे वापस नहीं लौटाया जा सकता। वरिष्ठ एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय के अनुसार ‘‘अफवाहों और ‘घृणा बयान’ में लोगों और समाज के बीच आतंकवाद, नरसंहार, जातीय ङ्क्षहसा आदि फैलाने की क्षमता होती है।’’ 

* 10 अक्तूबर को सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित व न्यायमूर्ति एस. रविन्द्र भट्ट ने इस मामले में हरप्रीत मनसुखानी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई की, जिसमें सरकार पर निष्क्रियता का आरोप लगाया गया है। इस बारे उनकी टिप्पणी थी, ‘‘आपकी बात सही है। ‘घृणा बयानों’ से देश का वातावरण बिगड़ रहा है, अत: इन पर रोक लगाने की जरूरत है। प्रत्येक केस की गंभीरता के आधार पर ‘घृणा बयानों’ बारे फौजदारी कानून के अनुसार सामान्य कानूनी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। हमें देखना होगा कि ऐसे मामलों में कौन संलिप्त है और कौन नहीं।’’

* 11 अक्तूबर को वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण ने देश में शहरी बेघरों का मुद्दा उठाया। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित तथा न्यायाधीशों एस.आर. भट्टï एवं बेला एम. त्रिवेदी पर आधारित पीठ को बताया कि शहरी क्षेत्रों में बेघरों के लिए शरणगृहों या रैन बसेरों की संख्या बहुत कम है। श्री प्रशांत भूषण ने कहा कि इसे देखते हुए राज्यों को इस बारे स्टेटस रिपोर्टें दाखिल करनी चाहिएं जिनमें बेघरों की संख्या, उनके लिए उपलब्ध शरणगृह अथवा रैन बसेरों का विवरण और उन्हें प्रदान की जाने वाली सुविधाओं का विवरण दिया गया हो। 

इस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित तथा न्यायाधीशों एस.आर. भट्ट एवं बेला एम. त्रिवेदी पर आधारित पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को 3 सप्ताह में जवाब देने को कहा है कि‘‘सॢदयों के मौसम में बेघर लोगों को शरण प्रदान करने के लिए उनकी क्या योजनाएं हैं?’’ इसके साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि ‘‘देश पर जनसंख्या के दबाव को देखते हुए आज जो भी किया जाएगा वह एक या दो साल बाद कम पड़ जाएगा। दुर्भाग्यवश हमारी इतनी बड़ी जनसंख्या बिना साधनों के बेघर जीने को विवश है।’’ 

* 11 अक्तूबर को ही सुप्रीमकोर्ट में न्यायमूर्तियों बी.आर. गवई तथा पी.एस. नरसिम्हा की अदालत में सरकारी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार तथा अन्य आपराधिक मामलों में मुकद्दमा चलाने में देरी का ज्वलंत मुद्दा भी विचाराधीन आया। इसके दौरान उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों सहित आपराधिक मामलों में सरकारी अधिकारियों पर मुकद्दमा चलाने की स्वीकृति देने के लिए 4 महीने के वैधानिक प्रावधान को अनिवार्य करार दिया और यह भी कहा कि लोक सेवक पर मुकद्दमा चलाने की स्वीकृति देने में देरी से आरोप रद्द तो नहीं होंगे। न्यायमूर्तियों ने कहा, ‘‘भ्रष्ट व्यक्ति पर मुकद्दमा चलाने में देरी होने से देश में सजा से मुक्ति का कल्चर पैदा होता है जो सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के समक्ष समर्पण करने के समान है।’’ 

‘‘इससे भावी पीढिय़ों के भी भ्रष्टाचार को जिंदगी के एक हिस्से के रूप में अपनाने का अभ्यस्त हो जाने का जोखिम मौजूद है इसलिए इस मामले में शीघ्र कार्रवाई आवश्यक है और इसमें देर के लिए संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होगा जिसके लिए उसके विरुद्ध केंद्रीय सतर्कता आयोग (सी.वी.सी.) अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई की जानी चाहिए। देरी होने से भ्रष्ट व्यक्ति के विरुद्ध आरोपों की पड़ताल में बाधा पैदा होती है।’’ न्यायालय ने यह भी कहा, ‘‘लोग कानून के शासन में विश्वास रखते हैं और कानून का शासन न्याय प्रशासन में दांव पर लगा हुआ है। ’’ 

‘घृणा बयान’, बेघरों की समस्या और भ्रष्टाचार के मामलों में दोषियों पर अदालती कार्रवाई शुरू करने में विलम्ब जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सुप्रीमकोर्ट की उक्त तीनों टिप्पणियां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जिन पर ईमानदारी और तेजी से अमल करके देश को दरपेश उक्त तीनों समस्याओं से मुक्ति दिलाने में कुछ सहायता अवश्य मिल सकती है।—विजय कुमार                     


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