भारतीय वायु सेना के विमान की दुर्घटना के प्रति मीडिया का उपेक्षा पूर्ण व्यवहार

Monday, Jul 25, 2016 - 02:06 AM (IST)

शुक्रवार 22 जुलाई की सुबह 8.30 बजे अपने निर्धारित समय पर चेन्नई के तांबरम स्थित वायु सेना के ठिकाने से 29 यात्रियों सहित पोर्ट ब्लेयर जाते हुए वायुसेना का विमान बंगाल की खाड़ी पर उड़ान के दौरान अचानक लापता हो गया। इनमें 3 अधिकारियों सहित 6 चालक दल के सदस्यों के अलावा 1 अधिकारी सहित 11 अन्य वायुसेना कर्मचारी, एक कोस्ट गार्ड नाविक, एक नेवी का नाविक तथा उनके अलावा नेवी के 8 सिविलियन कर्मचारी थे। इसे साढ़े 11 बजे पोर्ट ब्लेयर पहुंचना था। विमान से अंतिम सम्पर्क उस समय हुआ जब यह 23000 फुट की ऊंचाई पर था। 

 
सी-17 ग्लोब मास्टर तथा सी-130 जे. के बाद भारतीय वायुसेना में 1984 में शामिल रूस निर्मित मालवाहक विमान ए.एन.-32 वायुसेना का तीसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा भरोसेमंद मालवाहक विमान है। सी-17 ग्लोब मास्टर तथा सी-130 जे. के बाद भारतीय वायुसेना का यही एक ऐसा विमान है जो सुदूरवर्ती स्थानों तथा छोटी से छोटी हवाई पट्टी पर भी उतरने की क्षमता रखता है तथा थल सेना एवं सिविलियन आपूर्ति दोनों के लिए जीवनरेखा के समान है। 
 
इन्हें आमतौर पर भारतीय वायुसेना के लिए अग्रणी मोर्चों पर कुमुक (सेना की टुकडिय़ों) को ले जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि मात्र इसी एक महीने में इसमें 3 बार खराबी आ चुकी थी परन्तु इसे ठीक कर दिया गया था पर चौथी बार इसमें आई खराबी इसका दुखांत बन गई। 
 
रूसी युद्धास्त्रों पर भारतीय वायुसेना की निर्भरता बहुत अधिक है और इससे पहले भी इस श्रेणी के अनेक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके थे : 
 
22 मार्च, 1986 को जम्मू-कश्मीर में,  25 मार्च, 1986 को मस्कट से जामनगर की उड़ान के दौरान अरब सागर में, 1988 में कानपुर के निकट, 1991-92 में तिरुवनंतपुरम के निकट, 26 मार्च, 1992 को असम के जोरहाट पहाडिय़ों में, 1 अप्रैल, 1992 को पंजाब में खन्ना के निकट, 7 मार्च, 1999 को इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर, 9 जून, 2009 को अरुणाचल प्रदेश में, जनवरी 2012 को असम के जोरहाट में, 20 सितम्बर, 2014 को चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर ये विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं।
 
 विमान के लापता होने का संदेह होते ही इसकी तलाश की कोशिशें तेज कर दी गईं। बंगाल की खाड़ी में जारी तलाशी अभियान में नौसेना, वायुसेना तथा कोस्ट गार्ड तीनों बलों की मदद ली जा रही है जिसमें 16 समुद्री जहाज, 6 विमान तथा एक पनडुब्बी शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार विमान चेन्नई से 280 किलोमीटर पूर्व दिशा में 23000 की ऊंचाई से बंगाल की खाड़ी में गिरा होगा। इसका संबंध राडार से 9.12 बजे टूट गया और एयर ट्रैफिक कंट्रोल को पायलट से आई अंतिम कॉल उड़ान के 16 मिनट बाद की थी। 
 
दिल्ली में नेवी के पी.आर.ओ. कैप्टन डी.के. शर्मा के अनुसार, ‘‘सर्च ऑप्रेशन में अत्याधुनिक यंत्रों से लैस दो पी. 8 आई लांग रेंज मैरीटाइम पैट्रोल एयरक्राफ्ट, 1 डोर्नियर विमान, एक पनडुब्बी तथा हैलीकॉप्टरों से युक्त 12 समुद्री जहाजों को शामिल किया गया है।’’ 
 
अपनी नियमित उड़ान पर निकले दो इंजनों वाला ए.एन.-32 विमान एक बार ईंधन भरने के बाद 4 घंटे से ज्यादा उड़ान नहीं भर सकता। वर्तमान में वायुसेना के पास ऐसे करीब 100 विमान हैं। 
 
रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर 23 जुलाई की सुबह चेन्नई से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित नौसेना के अराकोणम ठिकाने पर पहुंचे और नौसेना के विमान में सवार हो कर बचाव कार्यों की समीक्षा की। 
 
इस बीच यह खुलासा हुआ है कि 2011 में इस विमान का अपग्रेडेशन शुरू हुआ था जो अभी तक जारी है। यह विमान अब अपग्रेड होकर ए.एन. 32 आर.ई. बन चुके हैं। ऐसे 40 विमान अपग्रेड होकर आ चुके हैं जबकि वायु सेना के कुल 104 में से 64 विमानों को कानपुर में एयरफोर्स बेस पर अपग्रेड किया जा रहा है। 
 
इस विमान दुर्घटना ने एक बार फिर भारत में स्वदेशी युद्धास्त्रों के निर्माण और विकास की धीमी गति के परिणामस्वरूप भारतीय प्रतिरक्षा सेनाओं की विदेशी युद्धास्त्र निर्माताओं पर निर्भरता के दुष्परिणामों की ओर इंगित किया है। 
 
अत: जहां हमें अपने आयुद्ध संस्थानों के कार्यकलाप को उन्नत करने की आवश्यकता है, वहीं सेना के तीनों अंगों के लिए वांछित युद्धास्त्रों की अपग्रेडेशन में तेजी लाने की भी जरूरत है ताकि हमें अकारण ही अपनी सीमाओं के रखवालों के मूल्यवान प्राणों की बलि न देनी पड़े। 
 
इसके साथ ही इस दुर्घटना के प्रति मीडिया का उपेक्षापूर्ण व्यवहार भी उजागर हुआ है जो छोटी से छोटी घटना को तो जोर-शोर से उछालता है लेकिन इस जैसी अत्यंत महत्वपूर्ण दुर्घटना को उसने वह महत्व नहीं दिया जिसकी यह अधिकारी है।
 
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