कैसे कम होंगी तेल की कीमतें
punjabkesari.in Monday, Jun 04, 2018 - 03:01 AM (IST)
तेल के दामों में रोजाना होने वाली समीक्षा को कर्नाटक चुनाव के चलते कई दिनों तक रोक कर रखा गया था। चुनाव खत्म होते ही यह फिर से शुरू हो गई और तब से अब तक कई बार तेल के दाम बढ़ चुके हैं। हाल के दिनों में तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर देश भर में काफी हो-हल्ला हो रहा है तथा विपक्ष भी केंद्र सरकार पर तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर जम कर हमले कर रहा है।
वैसे जब केंद्र में यू.पी.ए. की सरकार थी तो पैट्रोल की अधिकतम कीमत 62 रुपए तक पहुंची थी और केंद्र सरकार इस पर 9 रुपए ड्यूटी ले रही थी तथा तेल की बढ़ती कीमतों पर नरेन्द्र मोदी उसे जम कर कोसा करते थे परंतु सत्ता में आने के चार साल गुजर जाने के बाद तेल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने में वह खुद नाकाम रहे हैं। वह भी तब जबकि मोदी के सत्ता में आने के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी कम हुई थीं परंतु इसके बावजूद आम आदमी को किसी तरह की राहत नसीब नहीं दी गई थी।
तेल की कीमतों के नई ऊंचाइयों पर पहुंचने तथा चारों ओर से हो रही अपनी आलोचना के चलते सरकार अब इस बारे में कुछ करने को हाथ-पैर मार तो रही है परंतु वर्तमान हालात में नहीं लगता कि जनता को जल्द किसी तरह की राहत मिल सकेगी। पैट्रोलियम मंत्रालय अपेक्षा कर रहा था कि ऑयल एंड नैचुरल गैस कार्पोरेशन (ओ.एन.जी.सी.) कच्चे तेल को अंतर्राष्ट्रीय दामों से कम पर तेल कम्पनियों को देकर कुछ मदद करे परंतु उसने सरकार से कहा है कि वह यह बोझ वहन नहीं कर सकती क्योंकि हिंदुस्तान पैट्रोलियम कार्पोरेशन को खरीदने और गत वित्त वर्ष के दौरान गुजरात राज्य पैट्रोलियम कार्पोरेशन को बेलआऊट करने के चलते पहले ही उसे काफी वित्तीय बोझ सहना पड़ रहा है। ऐसे में यदि जनता को राहत देनी है तो केंद्र अथवा राज्य सरकारों को ही अपने-अपने टैक्स में कमी करनी होगी।
वैसे हाल के सालों में भारत में तेल के दामों में बढ़ौतरी का कारण यह है कि केंद्र सरकार तेल पर भारी-भरकम टैक्स लगाकर अपने खजाने भरती रही है। गत 4 साल में मोदी सरकार ने 150 गुणा राजस्व कमाया है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. सरकार के दौरान जितनी एक्साइज ड्यूटी थी, उसमें अब तक मोदी सरकार 126 प्रतिशत की वृद्धि कर चुकी है। तेल पर केंद्र सरकार अपने स्तर पर एक्साइज ड्यूटी लगाती है जबकि राज्य सरकार अपने स्तर से वैट तथा सेल्स टैक्स वसूलती है। मौजूदा समय में पैट्रोल पर सैंट्रल एक्साइज ड्यूटी 19.48 रुपए है जबकि डीजल पर 15.33 रुपए है। अंतिम बार इसमें गत वर्ष 4 अक्तूबर को ही परिवर्तन हुआ था जब कीमत बढऩे पर केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपए कमी की थी।
राज्यों में सेल्स टैक्स और वैट की अलग-अलग दरों के आधार पर ही पैट्रोल तथा डीजल की अलग-अलग कीमतें हैं। वैट से राज्यांश के हिसाब से सबसे अधिक राजस्व पाने वाले राज्यों में महाराष्ट्र को प्रति लीटर 24, मध्य प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश को 22, पंजाब को प्रति लीटर 21 तथा तेलंगाना को 20 रुपए मिल रहे हैं। केंद्र सरकार को वैट के हिस्से के रूप में पैट्रोल पर प्रति लीटर 9.48 रुपए मिलते हैं। अब जबकि एक बार फिर से तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि हो रही है तो जनता सरकार से आस लगाए हुए है कि वह उसे इनसे राहत दिलाने के लिए कुछ करेगी परंतु जल्द ऐसा होने के आसार कम ही लगते हैं क्योंकि सरकार के प्रमुख सलाहकार का नजरिया है कि केंद्र के लिए इस वक्त एक्साइज ड्यूटी में कमी करना व्यावहारिक नहीं है तथा राज्यों को पहले अपनी ड्यूटी की दरों में कमी करनी चाहिए।
नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार कहते हैं, ‘‘राज्यों को तेल पर टैक्स कम करना चाहिए क्योंकि उनके टैक्स प्रतिशत आधारित हैं। ऐसे में कीमतों में वृद्धि होने से उन्हें बड़ा मुनाफा हो रहा है जिसे अब आगे नहीं बढ़ाया जा सकता इसलिए उन्हें इसे 27 प्रतिशत के नीचे लाना चाहिए। केंद्र सरकार को पहले अपनी वित्तीय स्थिति को सम्भालना होगा, उसके बाद ही एक्साइज ड्यूटी कम करनी चाहिए।’’ उनके अनुसार एक्साइज ड्यूटी में 1 रुपए की कमी का भी अर्थ है कि सरकार को प्रति वर्ष 13 हजार करोड़ रुपए राजस्व घाटा होगा। वे नहीं चाहते कि तेल की बढ़ती कीमतों के चलते महंगाई बढ़े परंतु केंद्र के लिए अपनी वित्तीय संतुलन को बिगडऩे से बचाना भी जरूरी है। केंद्र को अन्य स्रोतों से अपना राजस्व बढ़ाने के इंतजाम करने होंगे, उसके बाद ही उसके लिए ऐसा कोई कदम उठाना व्यावहारिक होगा।