कितने निष्पक्ष हैं भारतीय चुनाव
punjabkesari.in Monday, Aug 06, 2018 - 04:08 AM (IST)
16 विपक्षी दलों ने संयुक्त रूप से मांग की है कि 2019 में मतदाता ‘बैलट पेपर’ यानी मतपत्र पर मोहर लगा कर ही अपना वोट डालें, न कि ई.वी.एम. का बटन दबा कर। उनका कहना है कि इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन्स (ई.वी.एम.) फिर चाहे वे ‘वोटर वैरीफाइएबल पेपर ऑडिट ट्रायल’ (वी.वी.पैट) से युक्त ही क्यों न हों, अस्वीकार्य हैं। इस संबंध में ये दल आज सोमवार को बैठक करेंगे तथा संसद में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए जोर देने के साथ ही चुनाव आयोग से इस संबंध में ताजा अपील की जाएगी।
गत 4 वर्षों से विभिन्न विपक्षी दल आवाज उठाते आ रहे हैं कि ई.वी.एम्स के साथ सरकार ने छेड़छाड़ की है जिससे भाजपा को आम चुनावों ही नहीं, विधानसभा चुनावों में भी जबरदस्त जीत मिली है। इस मांग के बीच इस बात पर गौर करना आवश्यक है कि आखिर कौन-सी विशेषताएं लोकतंत्र को जिंदा तथा चलायमान रखती हैं। शर्तिया तौर पर पहली विशेषता निष्पक्ष तथा स्वतंत्र चुनाव हैं। हालिया रूसी चुनावों में जहां 20 प्रतिशत वोटों की गिनती होने से पहले ही पुतिन नेखुद को विजयी घोषित कर दिया था। उसके आत्मविश्वास की वजह यह थी कि उसने सारे विपक्ष को निष्प्रभावी कर दिया था। इस प्रकार स्वतंत्र चुनाव के लिए अच्छी बहुदलीय प्रणाली आवश्यक विशेषता है। दूसरी विशेषता है जोशीले तथा जिम्मेदार मतदाता जो भयमुक्त होकर मतदान केंद्रों पर आएं तथा कम से कम 50 प्रतिशत वोटिंग हो।
प्रैस की स्वतंत्रता भी धांधली रहित चुनावों का एक प्रमुख आधार है और नियमित चुनाव भी लोकतंत्र की एक अन्य प्रमुख विशेषता है। यह भी महसूस किया गया है कि मतदान केंद्रों की व्यवस्था देखने, मतदाता सूचियों के साथ तैयार तथा वोटों की गिनती को उपयुक्त ढंग से अंजाम देने वाले प्रशिक्षित स्टाफ से युक्त एक संगठित व स्वतंत्र चुनाव आयोग भी इसके लिए आवश्यक है। हाल के दिनों में दुनिया भर में हुए चुनावों में धांधली के आरोप लगे हैं। नाजी शासन से लेकर 21वीं सदी के सब-सहारा अफ्रीका (केन्या, रवांडा, जिम्बाब्वे, यूगांडा, ट्यूनीशिया) तथा चीन, रूस, तुर्की, सीरिया, उत्तर कोरिया जैसे तानाशाही देशों ने बहुदलीय प्रणाली को समाप्त कर दिया। इसके साथ-साथ अमरीका तथा यू.के. जैसे देशों में भी चुनावों के निष्पक्ष आयोजन पर सवाल उठते रहे हैं। इन मापदंडों के अंतर्गत यदि हम भारत के चुनावों पर नजर डालें तो आवश्यक मापदंडों को हम पूरा करते हैं।
सबसे पहले तो हमारी बहुदलीय प्रणाली फलफूल रही है। हमारे पास पूरी तरह इलैक्ट्रॉनिक प्रणाली अपनाने वाला विश्व का एकमात्र चुनाव आयोग है। ई.वी.एम्स का उपयोग ऑस्ट्रेलिया, एस्टोनिया, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नामीबिया, नीदरलैंड, नार्वे, पेरू, रोमानिया, स्विट्जरलैंड, यू.के., वेनेजुएला, फिलीपींस सहित 20 देश कर रहे हैं परंतु इनमें से 6 देश अभी भी पूरी तरह से इलैक्ट्रॉनिक नहीं हैं। इतना बड़ा लोकतंत्र होने के नाते सभी मत ई.वी.एम. से डलवाना एक बड़ी उपलब्धि है। वास्तव में भारतीय चुनाव आयोग ने कई देशों को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने में भी मदद की है और ई.वी.एम्स व स्याही भेजने से लेकर उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए अपने अधिकारी भी भेजे हैं।
हालांकि, भारतीय प्रैस को लेकर बहुत कुछ कहा-सुना जाता रहा है परंतु चुनावों से पहले तथा इनके दौरान इसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। चुनावों में धांधली के विपक्षी दलों के आरोपों पर यकीन करना आसान हो जाता यदि इतनी बड़ी संख्या में मतदाता वोट डालने नहीं आते। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि विपक्षी दल तब ऐसे आरोप नहीं लगाते जब जीत स्वयं उनकी हुई हो। जैसा कि कर्नाटक अथवा विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों के दौरान देखा गया है। हैरान करने वाली बात है कि जब पाकिस्तान के हालिया आम चुनावों में आधी ई.वी.एम्स के काम न करने पर मतपत्रों से मतदान करवाना पड़ा तो कई लोगों ने पूछा कि भारतीय चुनाव आयोग से सलाह क्यों नहीं ली गई?
जिस देश के 70 प्रतिशत लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हों, वहां सरकार के लिए चुनावों में धांधली करना कठिन है। किसी भी व्यवस्था में सुधार की मांग हमेशा उचित है परंतु पीछे की ओर कदम हटाने की मांग को किसी भी तरह से सही दिशा में सही कदम नहीं ठहराया जा सकता। फिर भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि इंदिरा गांधी के चुनाव को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गलत करार दिया था। ऐसे में चुनावों में धांधली से बचने के लिए लोकतंत्र की सभी संस्थाओं के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। प्रत्येक पार्टी को मतदान केंद्रों पर लोगों की उपस्थिति को सुनिश्चित बनाना चाहिए।