वैगनर का विद्रोह और प्राइवेट सेनाओं के चलन का इतिहास

Monday, Jul 03, 2023 - 05:14 AM (IST)

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पूर्व सहयोगी येवगेनी प्रिगोझिन के नेतृत्व में भाड़े की प्राईवेट सेना ‘वैगनर ग्रुप’ के पुतिन के विरुद्ध नाकाम विद्रोह और उससे ‘सुलह’ उपरांत बेलारूस चले जाने के बाद निजी मिलिशिया एक बार फिर चर्चा में है। मिलिशिया या प्राईवेट सेनाएं सारी दुनिया भर में विभिन्न रूपों में मौजूद रही हैं और कई सरकारें उन्हें कानून से परे काम करने तथा सहायक बलों के रूप में अपने काम करवाने के लिए उपयोगी मानती हैं। वास्तव में मिलिशिया एक लड़ाकू संगठन होता है जिसमें नियमित, पूर्णकालिक सैन्य कर्मियों के विपरीत गैर-पेशेवर या अंशकालिक सैनिक शामिल होते हैं। 

अमरीका में मिलिशिया की शुरुआत औपनिवेशिक मैसाचुसेट्स में कॉलोनी की रक्षा के लिए जिम्मेदार अंशकालिक सेना से हुई। युद्धकाल में, यह तत्काल रक्षात्मक बल के रूप में कार्य करके नियमित सेना में शामिल करने के लिए सैनिक उपलब्ध कराता था। अमरीकी गृहयुद्ध के समय तक वहां मिलिशिया की कुछ कंपनियां मौजूद थीं जिन्हें 20वीं सदी की शुरुआत में ‘यू.एस. नैशनल गार्ड’ में शामिल कर लिया गया। ईराक में अमरीकी सैन्य हस्तक्षेप के दौरान ईराकी शिया मौलवी ‘मुक्तदा अल-सद्र’ द्वारा गठित ‘महदी सेना’ अप्रैल 2004 में प्रमुखता से उभरी थी। इसने अमरीकी सेना के विरुद्ध पहला बड़ा हमला किया। 

आयरलैंड में ‘आयरिश रिपब्लिकन आर्मी’ (आई.आर.ए.) की स्थापना 1919 में आयरलैंड में ब्रिटिश शासन को कमजोर करने के उद्देश्य से एक उग्रवादी राष्ट्रवादी संगठन के रूप में की गई थी। एंग्लो-आयरिश युद्ध (1919-1921) के दौरान, माइकल कोलिन्स के नेतृत्व में, इसने अंग्रेजों को बातचीत के लिए मजबूर करने के लिए गुरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल किया, जिसके परिणामस्वरूप उत्तरी आयरलैंड का निर्माण हुआ। 

सूडान में सेना और अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आर.एस.एफ.) के बीच चल रहे गृहयुद्ध में भी मिलिशिया मौजूद है। आर.एस.एफ. का जन्म वास्तव में सूडान के जंजावीद मिलिशिया से ही हुआ है। इस पर दारफुर के संघर्ष में  3,00,000 लोगों के नरसंहार का आरोप लगा था। चीन की समुद्री मिलिशिया हजारों मछली पकडऩे वाले जहाजों के जरिए चीनी कोस्ट गार्ड के साथ मिल कर बीजिंग के राजनीतिक इरादों को पूरा करने का काम करती है जिसमें प्रतिद्वंद्वी देशों के जहाजों को घेरना, और आवश्यकता पडऩे पर विदेशी जहाजों को परेशान करना आदि शामिल है। 

इस प्रकार, मिलिशिया न केवल समय के साथ विकसित हुआ बल्कि विभिन्न परिस्थितियों के अनुकूल ढलने का एक रास्ता खोज लिया है। जब तक राजनीति, सत्ता और व्यावसायिक हित एक दूसरे से जुड़े रहेंगे, मिलिशिया काम करती रहेगी। रूस में वैगनर आर्मी को लेकर जो कुछ हुआ उसके बाद यह मामला उभर कर सामने आया है। रूसी लोग यूक्रेन के साथ युद्ध को लेकर काफी परेशान और अपने नेताओं से खुश न होने के बावजूद कम लोग ही वैगनर ग्रुप के सरगना प्रिगोझिन के समर्थन में आगे आए लेकिन उसके उद्देश्यों को कुछ समर्र्थन तो अवश्य प्राप्त था। 

पुतिन यूक्रेन में युद्ध लडऩे के कारण लोकप्रियता इसलिए खो रहे हैं क्योंकि युद्ध सही दिशा में नहीं जा रहा।  यदि रूस में पुतिन की सत्ता गिर भी जाए तो ऐसा नहीं है कि वहां कोई और सत्ता में नहीं आएगा। पुतिन के जाने के बाद रूस  में सत्तारूढ़ होने वाला नेता उससे भी बड़ा तानाशाह हो सकता है क्योंकि वहां लोकतंत्र तो है नहीं तथा विपक्ष को  खत्म कर दिया गया है। लिहाजा जो भी आएगा, वह सेना  का ही कोई मजबूत नेता होगा। 

ऐसे में पुतिन का वहां रहना शायद उन्हें हटाए जाने से अच्छा है और ऐसा ही कुछ अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बुश ने किया था जब उन्होंने अफगानिस्तान में एक्स्ट्रा आर्मी बना कर भेजी थी। उसका नुक्सान अमरीका और अफगानिस्तान दोनों को ही हुआ। जहां-जहां एक्स्ट्रा आर्मी बनती है, वह अंतत: दोनों ही पक्षों को नुक्सान पहुंचाती है। किसी भी देश ने जब किसी अन्य देश में घुसने की कोशिश की है तभी उसने इस तरह की गैरकानूनी आर्मी बनाई है।  

इसके पीछे ऐसी महत्वाकांक्षा होती है कि शायद इसकी मदद से हम समस्या हल कर लें लेकिन आमतौर पर समस्या हल नहीं होती है।  ‘इटली के चाणक्य’ कहलाने वाले निकोलो मैकियावेली से लेकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर तक जब भी कोई गैरकानूनी आर्मी बनी है, उसने उस बनाने वाले देश का नुक्सान भी उतना ही बड़ा किया है। जब कोई अधिक महत्वाकांक्षी हो जाता है और मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत कानूनन सुलझाने की बजाय गैर-कानूनी आर्मी का सहारा लेता है तो उसका हश्र पाकिस्तान, अफगानिस्तान या रूस जैसा हो जाता है।

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